<p>विक्रम अंबालाल साराभाई भारत के प्रमुख वैज्ञानिक थे। इन्होंने 6 वैज्ञानिक शोध पत्र लिखे एवं 40 संस्थान खोले। इनको विज्ञान एवं अभियांत्रिकी के क्षेत्र में सन 1966 में भारत सरकार द्वारा पद्म भूषण से सम्मानित किया गया था। डॉ. विक्रम साराभाई के नाम को भारत के अंतरिक्ष कार्यक्रम से अलग नहीं किया जा सकता। यह जगप्रसिद्ध है कि वह विक्रम साराभाई ही थे जिन्होंने अंतरिक्ष अनुसंधान के क्षेत्र में भारत को अंतर्राष्ट्रीय मानचित्र पर स्थान दिलाया। लेकिन इसके साथ-साथ उन्होंने अन्य क्षेत्रों जैसे वस्त्र, भेषज, आणविक ऊर्जा, इलेक्ट्रानिक्स और अन्य अनेक क्षेत्रों में भी बराबर का योगदान किया।</p>
<p><span style=”color:#c0392b”><strong>विक्रम साराभाई का जन्म, शिक्षा</strong></span></p>
<p>विक्रम अंबालाल साराभाई का जन्म 12 अगस्त 1919 को अहमदाबाद में एक समृध्द जैन परिवार में हुआ था। अहमदाबाद में उनका पैत्रिक घर ''द रिट्रीट'' में उनके बचपन के समय सभी क्षेत्रों से जुड़े महत्वपूर्ण लोग आया करते थे। इसका साराभाई के व्यक्तित्व के विकास पर महत्वपूर्ण असर पड़ा। उनके पिता का नाम श्री अंबालाल साराभाई और माता का नाम श्रीमती सरला साराभाई था। विक्रम साराभाई की प्रारंभिक शिक्षा उनकी माता सरला साराभाई द्वारा मैडम मारिया मोंटेसरी की तरह शुरू किए गए पारिवारिक स्कूल में हुई। गुजरात कॉलेज से इंटरमीडिएट तक विज्ञान की शिक्षा पूरी करने के बाद वे 1937 में कैंब्रिज विश्वविद्यालय में पढ़ने के लिए इंग्लैंड चले गए, जहां 1940 में प्राकृतिक विज्ञान में ट्राइपोज डिग्री प्राप्त की।<br />
<span style=”color:#c0392b”><strong>आरंभिक जीवन</strong></span></p>
<p>उन्होंने अपना पहला अनुसंधान लेख ''टाइम डिस्ट्रीब्यूशन ऑफ कास्मिक रेज़'' भारतीय विज्ञान अकादमी की कार्य विवरणिका में प्रकाशित किया। सन् 1940-45 की अवधि के दौरान कॉस्मिक रेज़ पर साराभाई के अनुसंधान कार्य में बंगलौर और कश्मीर-हिमालय में उच्च स्तरीय केन्द्र के गेइजर-मूलर गणकों पर कॉस्मिक रेज़ के समय-रूपांतरणों का अध्ययन शामिल था। द्वितीय विश्व युद्ध की समाप्ति पर वे कॉस्मिक रे भौतिक विज्ञान के क्षेत्र में अपनी डाक्ट्रेट पूरी करने के लिए कैंब्रिज लौट गए। 1947 में उष्णकटीबंधीय अक्षांक्ष (ट्रॉपीकल लैटीच्यूड्स) में कॉस्मिक रे पर अपने शोधग्रंथ के लिए कैंब्रिज विश्वविद्यालय में उन्हें डाक्ट्ररेट की उपाधि से सम्मानित किया गया। इसके बाद वे भारत लौट आए और यहां आ कर उन्होंने कॉस्मिक रे भौतिक विज्ञान पर अपना अनुसंधान कार्य जारी रखा।</p>
<p>भारत में उन्होंने अंतर-भूमंडलीय अंतरिक्ष, सौर-भूमध्यरेखीय संबंध और भू-चुम्बकत्व पर अध्ययन किया। द्वितीय विश्व युद्ध शुरू होने पर वे भारत लौट आए और बंगलौर स्थित भारतीय विज्ञान संस्थान में नौकरी करने लगे जहां वह सीवी रमण के निरीक्षण में कॉसमिक रेज़ पर अनुसंधान करने लगे। यह भारत के प्रमुख वैज्ञानिक थे। इन्होंने 6 वैज्ञानिक शोध पत्र लिखे एवं 40 संस्थान खोले। इनको विज्ञान एवं अभियांत्रिकी के क्षेत्र में सन 1966 में भारत सरकार द्वारा पद्म भूषण से सम्मानित किया गया था।</p>
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<span style=”color:#c0392b”><strong>विशेषताएं और उपलब्धि</strong></span></p>
<p>डॉ. साराभाई के व्यक्तित्व का सर्वाधिक उल्लेखनीय पहलू उनकी रूचि की सीमा और विस्तार तथा ऐसे तौर-तरीके थे जिनमें उन्होंने अपने विचारों को संस्थाओं में परिवर्तित किया। सृजनशील वैज्ञानिक, सफल और दूरदर्शी उद्योगपति, उच्च कोटि के प्रवर्तक, महान संस्था निर्माता, अलग किस्म के शिक्षाविद, कला पारखी, सामाजिक परिवर्तन के ठेकेदार, अग्रणी प्रबंध प्रशिक्षक आदि जैसी अनेक विशेषताएं उनके व्यक्तित्व में समाहित थीं। उनकी सबसे महत्त्वपूर्ण विशेषता यह थी कि वे एक ऐसे उच्च कोटि के इंसान थे जिसके मन में दूसरों के प्रति असाधारण सहानुभूति थी। वह एक ऐसे व्यक्ति थे कि जो भी उनके संपर्क में आता, उनसे प्रभावित हुए बिना न रहता।</p>
<p>उन्होंने किसी समस्या को कभी कम कर के नहीं आंका। उनका अधिक समय उनकी अनुसंधान गतिविधियों में गुज़रा और उन्होंने अपनी असामयिक मृत्युपर्यन्त अनुसंधान का निरीक्षण करना जारी रखा। उनके निरीक्षण में 19 लोगों ने अपनी डाक्ट्रेट का कार्य सम्पन्न किया। डॉ. साराभाई ने स्वतंत्र रूप से और अपने सहयोगियों के साथ मिलकर राष्ट्रीय पत्रिकाओं में 86 अनुसंधान लेख लिखे।</p>
<p><span style=”color:#c0392b”><strong>सपनों को हकीकत में बदलने के माहिर</strong></span></p>
<p>डॉ. साराभाई एक स्वप्नद्रष्टा यानि सपनों को हकीकत में बदलने वाले थे और उनमें कठोर परिश्रम की असाधारण क्षमता थी। फ्रांसीसी भौतिक वैज्ञानिक पीएरे क्यूरी (1859-1906) जिन्होंने अपनी पत्नी मैरी क्यूरी (1867-1934) के साथ मिलकर पोलोनियम और रेडियम का आविष्कार किया था। इनके अनुसार डॉ. साराभाई का उद्देश्य जीवन को स्वप्न बनाना और उस स्वप्न को वास्तविक रूप देना था। इसके अलावा इन्होंने अनेक लोगों को सपना देखना और उस सपने को वास्तविक बनाने के लिए काम करना सिखाया। भारत के अंतरिक्ष कार्यक्रम की सफलता इसका प्रमाण है।</p>
<p><span style=”color:#c0392b”><strong>महान संस्थान निर्माता</strong></span></p>
<p>डॉ॰ साराभाई एक महान संस्थान निर्माता थे। उन्होंने विभिन्न क्षेत्रों में बड़ी संख्या में संस्थान स्थापित करने में अपना सहयोग दिया। साराभाई ने सबसे पहले अहमदाबाद वस्त्र उद्योग की अनुसंधान एसोसिएशन (एटीआईआरए) के गठन में अपना सहयोग प्रदान किया। यह कार्य उन्होंने कैंब्रिज से कॉस्मिक रे भौतिकी में डाक्ट्रेट की उपाधि प्राप्त कर लौटने के तत्काल बाद हाथ में लिया। उन्होंने वस्त्र प्रौद्योगिकी में कोई औपचारिक प्रशिक्षण नहीं लिया था। एटीआईआरए का गठन भारत में वस्त्र उद्योग के आधुनिकीकरण की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम था। उस समय कपड़े की अधिकांश मिलों में गुणवत्ता नियंत्रण की कोई तकनीक नहीं थी। डॉ॰ साराभाई ने विभिन्न समूहों और विभिन्न प्रक्रियाओं के बीच परस्पर विचार-विमर्श के अवसर उपलब्ध कराए।</p>
<p><span style=”color:#c0392b”><strong>मृत्यु</strong></span></p>
<p>डॉ॰ साराभाई का कोवलम, तिरूवनंतपुरम (केरल) में 30 दिसम्बर 1971 को देहांत हो गया। इस महान वैज्ञानिक के सम्मान में तिरूवनंतपुरम में स्थापित थुम्बा इक्वेटोरियल रॉकेट लाँचिंग स्टेशन (टीईआरएलएस) और सम्बध्द अंतरिक्ष संस्थाओं का नाम बदल कर विक्रम साराभाई अंतरिक्ष केन्द्र रख दिया गया। यह भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) के एक प्रमुख अंतरिक्ष अनुसंधान केन्द्र के रूप में उभरा है। 1974 में सिडनी स्थित अंतर्राष्ट्रीय खगोल विज्ञान संघ ने निर्णय लिया कि 'सी ऑफ सेरेनिटी' पर स्थित बेसल नामक मून क्रेटर अब साराभाई क्रेटर के नाम से जाना जाता है।</p>
<p><img src=”/media/gallery/images/image(4193).jpeg” style=”height:229px; width:320px” /></p>
<p>भारतीय टपाल विभाग द्वारा उनकी पहली मृत्यु की पहली वरसी पर 1972 में एक डाक टिकट जारी किया गया । जिसमें इनकी फोटो लगी थी।</p>
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