देश के राजनीति में सबसे बड़ी पार्टी बीजेपी में काफी समय से राजनीतिक उथल पुथल देखने को मिल रही है। कभी केंद्र की मोदी सरकार के मंत्री बदले जा रहे हैं तो कभी बीजेपी शासित राज्यों के… इन सभी के बीच इस बदलाव का हवाला ये दिया जा रहा है कि आगामी चुनावों को देखते हुए भाजपा असक्षम और जीत न दिला पाने वाले मुख्यमंत्रियों को बदल रही है। यहां तक कि ये बदलाव बीजेपी ज़मीनी स्तर पर फीडबैक के बाद कर रही है।
वहीं, दूसरी ओर बात करें कांग्रेस की… तो राष्ट्रीय स्तर पर कांग्रेस की हालत और भी बिगड़ती नज़र आ रही है। इसका मुख्य कारण पार्टी की गुटबाजी ही माना जा रहा है। चूंकि हाल ही में पंजाब कांग्रेस में चल रहे घमासान में गुटबाजी खुलकर सामने आ रही है औऱ बड़े बदलाव की बात कही जा रही है। कांग्रेस के ये हालात पंजाब में ही नहीं, लेकिन अंदरखाने कई कांग्रेस शासित राज्यों में होने की ख़बर है। कुछ वक़्त पहले मध्यप्रदेश में हुए कांग्रेस के बदलाव औऱ राजस्थान में दिग्गज नेता सचिव पायलट के पार्टी बदलने की अफवाहें… गुटबाजी की ओर ही ईशारा करती हैं। रही बात पंजाब की तो यहां गुटबाजी खुलकर सामने आ चुकी है।
बीजेपी के मुकाबले कहां स्टैंड करती है कांग्रेस?
दोनों पार्टियों में इन बदलाव की वजह तो अब जनता के सामने आ चुकी है। लेकिन सवाल सिर्फ यही है कि एक ओर बीजेपी राजनीतिक दूरदर्शिता के साथ ग्राउंड लेवल पर चुनावी रण में उतरने की प्लानिंग कर रही है, तो दूसरी ओर कांग्रेस पार्टी और उनके नेता अपनी ही पार्टी या नेताओं से लड़ने में व्यस्त हैं। आगामी राज्य विधानसभा चुनावों में बेश़क कांग्रेस जीत के दावे ठोक रही है, लेकिन ग्राउंड लेवल पर तैयारियां बीजेपी के मुकाबले जीरो मालूम पड़ती हैं। राज्यों में हो रही कांग्रेस की खलबली पार्टी की छवि को ख़राब तो कर ही रही है लेकिन साथ ही साथ वोट बैंक भी बिख़र रहा है।
इसके बरक्स भाजपा दावे से अपने काम न करने वाले मुख्यमंत्रियों को पद से हटा रही है। हालांकि लगातार प्रदेश में मुख्यमंत्रियों को हटाना साफ तौर पर ये ईशारा करता है कि बीजेपी शासन में प्रदेशों में काम नहीं हुआ जिसकी बिनाह में उन्हें हटाया जा रहा है। ऐसे में बीजेपी चुनाव के दौरान राजनीतिक तख़्ते पर कई तरह के हथकंडे अपना सकती है। लेकिन होमवर्क के तौर पर जनता की नज़र से ऐसे चेहरे हटाया जा रहे हैं जिनकी छवि से पार्टी को नुकसान हो रहा है।
क्या कांग्रेस में हर कोई है ठेकेदार?
इसमें कोई दो राय नहीं कि कांग्रेस में हर नेता खुद को पार्टी का ठेकेदार समझता है। कहा जाता है कि एक कुशल नेतृत्व पार्टी या फिर किसी भी जगह बहुत कीमती होता है लेकिन कांग्रेस पार्टी में शायद ऐसा कुछ नहीं..!!! तभी आज पार्टी में छोटे से ओधे पर बैठा नेता अपनी ही पार्टी के नेता के खिलाफ बगावत की आवाज़ उठाता है। कई भाजपा नेता और छोटे नेता भी देश प्रदेश में धौंस जताते हैं औऱ तुष्टिकरण की राजनीति करते हैं, लेकिन हाईकमान की एक फटकार के बाद किसी नेता या मुख्यमंत्री तक की ये मजाल नहीं कि कोई विरोध का स्वर उठा जाए। इसमें कुछ हद तक पार्टी के सख़्त निर्णय भी हैं जो पार्टी मौके पर लेती है। साफ़ तौर पर कहें तो भाजपा में अनुसाशन पार्टी तक जरूर फॉलो होता है फ़िर चाहे पार्टी लाइन से हटकर देश में अनुशासन धज्जियां क्यों न उड़ जाएं…!!!!
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