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ओपिनियन: राहुल गांधी की शिवभक्ति और कैलाश यात्रा से बीजेपी को डर क्यों?

<p><strong><span style=”color:#8e44ad”><em>अमृत कुमार तिवारी।। </em></span></strong>खुद को शिवभक्त बताने वाले कांग्रेस के अध्यक्ष राहुल गांधी कैलाश मानसरोवर यात्रा पर हैं। लेकिन, उनकी यात्रा से देश में राजनीतिक बवंडर मच गया है। इस बवंडर से सबसे ज्यादा ख़तरा बीजेपी को महसूस हो रहा है। जैसा की बीजेपी का पूरा सियासी-महल ही हिंदुत्व की बुनियाद पर टिका है। ऐसे में जनेऊधारी राहुल गांधी जब सांस्कृतिक और धार्मिक आस्थाओं को गले लगाते हैं तो बीजेपी को अपनी बुनियाद हिलने का ख़तरा नज़र आने लगता है। यही वजह है कि राहुल गांधी ने जैसे ही कैलाश यात्रा शुरू की… बीजेपी ने मुद्दे को तुरंत दूसरी ओर शिफ्ट कर दिया। राहुल गांधी के शिवभक्ति को दिखावा और उनकी यात्रा को चाइनीज एंगल दे दिया।</p>

<p>बीजेपी ने राहुल गांधी को &#39;चाइनीज गांधी&#39; का खिताब दिया। बीजेपी के प्रवक्ता संबित पात्रा ने कांग्रेस अध्यक्ष को चीन का प्रवक्ता करार दे दिया। उन पर चीन के विज्ञापन करने के आरोप मढ़ डाले। चीन के रास्ते कैलाश मानसरोवर यात्रा पर सवाल उठाते हुए बीजेपी ने कहा कि आखिर राहुल गांधी को चीन से इतना प्यार क्यों है। पात्रा यहीं नहीं रुके उन्होंने पूछा, &#39;हम कांग्रेस से पूछना चाहते हैं कि राहुल चीन में किन-किन नेताओं से मिलेंगे। राहुल जी आप चीन में किनसे-किसने मिलेंगे, क्या-क्या चर्चा करने वाले हैं। उम्मीद है कांग्रेस इस पर जवाब देगी।&#39;</p>

<p>हालांकि कांग्रेस ने इस पूरे मामले को नॉन इशू बताया है। कांग्रेस के वरिष्ठ नेता अशोक गहलोत ने ट्वीट करके इसे बीजेपी की घटिया मानसिकता बताया। उन्होंने आरोप लगाया कि बीजेपी राहुल गांधी की आस्था का राजनीतिकरण कर रही है।</p>

<p>इसमें कोई दो राय नहीं भारतीय राजनीति में धर्म का रोल काफी अहम रहता है। वैसे तो संवैधानिक रूप से यह देश धर्मनिरपेक्ष है। लेकिन, धार्मिक ध्रुवीकरण और तुष्टिकरण देश की राजनीति का स्याह और अफसोसनाक पहलू भी है। देश की आजादी से पहले और आजादी के बाद भी इस पहलू का दबदबा रहा है। स्वतंत्र भारत के आधुनिक राजनीतिक गतिविधियों में यह सभी पार्टियों के लिए प्रासंगिक रहा है। राजीव गांधी का शाहबानों केस में मुसलमानों के आगे घुटने टेकना और फिर इसकी पूर्ति के लिए अयोध्या में मंदिर का ताला खुलवाना इसके जीवंत उदाहरण हैं। उसके बाद भगवा ब्रिगेड का प्रंचडता से आगे बढ़ना और धार्मिक उन्माद फैलाते हुए मंदिर आंदोलन करना। यह दौर भारत ने बाखूबी झेला है। हालांकि, &#39;राम लला हम आएंगे, मंदिर वहीं बनाएंगे&#39; का नारा चिल्लाने वाले सत्ता मिलते ही मंदिर-निर्माण भूल गए। हां, सांप्रदायिक ध्रुवीकरण के लिए मंदिर-मुद्दा आज भी बेस्ट पॉलिटिकल हथियार है।</p>

<p>राहुल गांधी भी राजनीति में अब पुराने चावल बनते जा रहे हैं। लिहाजा, उन्हें बेहतर ढंग से पता है कि विरोधी की ताकत क्या है और कहां चोट करनी है। यही वजह है कि राजनीतिक टर्म में हिंदू-लेब्रोटरी कहे जाने वाले गुजरात में हुए विधानसभा चुनाव के दौरान उनका जनेऊ और मंदिरों के दर्शन काफी चर्चा में रहे। कांग्रेस जानती है कि इस देश में बहुसंख्यक हिंदू वोटर ही है। लिहाजा, इस वर्ग से खुद को जोड़े रखना में ही भलाई है। इस बात की तरफ कांग्रेस की पूर्व अध्यक्ष सोनिया गांधी ने खुद इशारा किया था। एक सवाल के जवाब में सोनिया गाधी ने कहा कि उन्हें खुद नहीं पता कि कैसे कांग्रेस को मुस्लिमों की पार्टी के रूप में प्रचारित कर दिया गया। यह संदेश देश की जनता के बीच घर कर गया है। हालांकि, राहुल गांधी अक्सर कहते रहे हैं कि कांग्रेस सभी की पार्टी। ख़ासकर गरीब और पिछड़ों की पार्टी है।</p>

<p>मगर, कांग्रेस के नए अध्यक्ष को यह पता चल चुका है कि बीजेपी की आंधी को भावनाओं के ज्वार से ही रोका जा सकता है। वो कहते है ना कि लोहा लोहे को काटता है। ऐसे में जिस पिच पर अभी तक बीजेपी बैटिंग कर रही थी। अब राहुल गांधी भी उसी पिच पर आ डंटे हैं। ऐसे में ताबड़तोड़ स्कोर करने वाली बीजेपी को अपनी ही पिच पर खड़े राहुल गांधी से भय होने लगा है। यही वजह है कि दौरा तो कैलाश मानसरोवर का है लेकिन हमला चीन के मद्देनज़र किया जा रहा है।</p>

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<p><em>(उपरोक्त लेख समाचार फर्स्ट के संपादक अमृत तिवारी के व्यक्तिगत विचार हैं। ) </em></p>

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