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OPINION: कांग्रेस का कोल्ड-वॉर, क्लाइमेक्स वीरभद्र के हाथ

अमृत कुमार तिवारी |

दुनिया भर में मशहूर टीवी सीरियल 'गेम ऑफ थ्रोन्स' का एक डायलॉग याद आ रहा है। जिसमें ऑरेल नाम का पात्र कहता है, " People work together when it suits them. They're loyal when it suits them. They love each other when it suit them and they kill each other when it suit them. (लोग तब तक आपके साथ काम करते हैं, जब उनका हित पूरा हो रहा हो। आपके प्रति वफादारी भी तभी तक रखते हैं जब तक उन्हें सूट करता है। आपसे प्यार भी तभी निभाते हैं, जहां तक उनका स्वार्थ पूरा होता है और अपने हित को देखते हुए ही वे एक दूसरे की हत्या भी करते हैं.)

आदि काल से लेकर वर्तमान तक सत्ता का संघर्ष इसी बात पर आधारित रहा है। सभी सभ्यताओं में राजनीति इसी आधार पर फलती-फूलती रही है। कांग्रेस आलाकमान भी इस राजनीतिक थ्यौरी को बढ़िया से समझता है। यही वजह है पार्टी के ताक़तवर राजनेता वीरभद्र सिंह के तमाम दबावों को दरकिनार करते हुए हाईकमान आगे की ओर बढ़ रहा है। हालांकि, राजनीति का कोई सेट पैमाना नहीं रहता।  लेकिन, मायने यह रखता है कि एक बड़े तबके का स्वार्थ किससे जुड़ रहा है। आज के दौर को देखते हुए कहा जा सकता है कि वर्तमान में समूचे प्रदेश कांग्रेस का स्वार्थ मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह से हट चुका है। यही वजह है कि वीरभद्र सिंह के तमाम पैंतरों के बावजूद पीसीसी अध्यक्ष सुक्खू संगठन में जस के तस बने हुए हैं। ऊपर से प्रदेश प्रभारी ने भी यह साफ कर दिया है कि संगठन में चुनाव तक तो कोई तब्दिली नहीं होने वाली है।

यानी कहा जा सकता है कि दिल्ली में जो नेताओं की जमघट लगी थी, उसमें कांग्रेस के शीर्ष नेतृत्व ने प्रदेश में संगठन की जो यथा स्थिति है उसी को हरी झंडी दे दी है। लेकिन, कांग्रेस हाईकमान की मज़बूरी में कहीं ना कहीं वीरभद्र सिंह शामिल हैं। वीरभद्र सिंह को दरकिनार करना उसके लिए बड़ा डैमेज साबित हो सकता है। लिहाजा, मध्य-मार्ग को ही सही चुना गया है। ऊपर से वीरभद्र सिंह के पास भी 2012 की तरह कई दूसरा विकल्प नहीं है। क्योंकि, राष्ट्रीय परिदृश्य में दूसरे क्षेत्रीय दल छोड़िए खुद कांग्रेस अस्तीत्व की जंग लड़ रही है। ऊपर से जो बीजेपी के साथ व्यक्तिगत स्तर पर युद्ध है (तमाम मुकदमों के मद्देनज़र खुद सीएम बीजेपी पर पॉलिटिकल वेंडेटा का आरोप लगाते रहे हैं।) उसमें वीरभद्र को यह जरूर लगता है कि पार्टी लाइन से बाहर जाना खतरे से खाली नहीं है।

कुल मिलाकर देखा जाए तो वीरभद्र सिंह की ऐसी दशा है कि ना तो वह पार्टी को छोड़ सकते हैं और ना ही बर्दाश्त कर सकते हैं। यही हाल कांग्रेस हाईकमान की तरफ से भी है। ना तो वह वीरभद्र सिंह के नाज-ओ-नख़रे सहना चाहता हैं और उन्हें साइडलाइन करने में भी खुद का हित नहीं समझ रहा है।

लेकिन, कहा जाता है कि राजनीति में सत्ता को पाले में लाने के लिए आपको ठोस लाइन पकड़नी ही पड़ती है और कुशल राजनीतिज्ञ अंत तक अपनी जीत के लिए आशा जरूर बनाए रखता है। यही कारण है कि इन तमाम झंझावातों में वीरभद्र सिंह बयानों की धार कमज़ोर नहीं होने दे रहे हैं। इसका स्पष्ट प्रमाण शिंदे की वर्तमान यात्रा और मुख्यमंत्री के तीखे बयान हैं। वीरभद्र सिंह ने साफ-साफ लफ्जों में फिर से पीसीसी अध्यक्ष सुक्खू को खारिज कर दिया है। उन्होंने यह बयान दिया कि जब वे पीसीसी अध्यक्ष थे तब सुक्खू प्राइमरी स्कूल में पढ़ते थे। हालांकि, यह भी बयान दिया कि वे कांग्रेस के सच्चे सिपाही हैं और एक कार्यकर्ता के रूप में प्रदेश में काम करते रहेंगे।

लेकिन, अपने बयानों से वह लगातार साफ करने की कोशिश कर रहे हैं कि उनकी सुक्खू के साथ व्यक्तिगत खींझ हैं। जबकि, सुक्खू खुद को सेफ जोन में मान रहे हैं और अपनी वाणी पर विराम दिए हुए हैं। हाईकमान से भी उन्हें चुप ही रहने के निर्देश दिए गए हैं। जब दिल्ली में पार्टी के नेता पहुंचे तब वहां पर उनकी भी राय ली गई। माना जा रहा है कि वहां पहुंचे शीर्ष नेताओं ने अपनी वफादारी हाईकमान के प्रति जाहिर की ना कि वीरभद्र सिंह के प्रति। इसके बाद चुनावी रूप-रेख तैयार करने के निर्देश दे दिए गए।

अब यह संदेश भी वीरभद्र सिंह तक पहुंच चुका है। ऐसे में वह लगातार वह अपने बयानों से संदेश देने की कोशिश कर रहे हैं। जबकि, पार्टी लाइन को पकड़ते हुए सुक्खू ना ही उनका पलटवार कर रहे हैं और ना ही इस मुद्दे पर किसी तरह का कोई बयान दे रहे हैं।

अब कांग्रेस का यह कोल्ड वॉर कितने दिनों तक चलेगा…इसकी भविष्यवाणी नहीं की जा सकती। क्योंकि, क्लाइमेक्स को एक अंजाम देना अब सीएम वीरभद्र सिंह के ही हाथ में है।