हिमाचल की सियासत में एक नए ‘पॉलिटकल शोमैन’ की एंट्री हो चुकी है. इसका औपचारिक ऐलान भी नगरोटा बगवां की धरती से हो चुका है. बुधवार को नगरोटा बगवां के गांधी मैदान से बाल मेले के मौके के दौरान कांग्रेस पार्टी ने ‘रोजगार संघर्ष यात्रा’ का बिगुल फूंका. हाई-प्रोफाइल तरीके से रोजगार संघर्ष यात्रा का बिगुल फूंका गया. विरोधी तो विरोधी खुद कांग्रेस के लोग हैरानी से कार्यक्रम को देख रहे थे. यह कार्यक्रम पूर्व मंत्री जीएस बाली के बेटे रघुवीर सिंह बाली यानी आरएस बाली आयोजित करा रहे थे. ‘रोजगार संघर्ष यात्रा’ के आर्किटेक्ट रहे पूर्व मंत्री जीएस बाली के बेटे ने उसी विरासत को आगे बढ़ाने का दम दिखाया और कांग्रेस के शीर्ष नेतृत्व का विश्वास जीतकर दोबारा नगरोटा बगवां की धरती से इसका शंखनाद कर दिया.
राजनीतिक पंडितों की मंडली में अब आरएस बाली एक हॉट केक बने हुए हैं. सभी के लिए जूनियर बाली एक सरप्राइज एलिमेंट की तरह है. लेकिन, जिस अंदाज में उन्होंने राजनीति का युद्धघोष किया है. ऐसे में उन्हें हिमाचल पॉलिटिक्स का ‘शोमैन’ कहा जा रहा है. गौरलब है कि जीएस बाली की छवि भी राजनीति में एक जाइंट पॉलिटिकल फिगर की रही थी. दुनिया कुछ भी सोचे या आलोचनाओं की सूली पर चढ़ाए सीनियर बाली अक्सर अपनी मन की करते थे. वहीं, छवि नगरोटा बगवां के गांधी ग्राउंड में दिखाई दी. शायद स्थिति को मंच पर भाषण दे रहे मुकेश अग्निहोत्री ने बेहतर ढंग से भांप लिया है और वहीं पर आरएस बाली को अपना साथी मंत्री होने का ऐलान भी कर दिया. अग्निहोत्री के बोल ने काफी कुछ स्पष्ट कर दिया, “बड़े मियां तो बड़े मियां, छोटे मियां सुभानल्लाह!”
आज पूर्व मंत्री जीएस बाली जिन्हें विकासपुरुष का खिताब आम जनता ने दिया है… उनके दुनिया से रुख़्सत होने के बाद कांग्रेस की ताकत लोअर हिमाचल में आधीमानी जा रही थी. लेकिन, आज बाली नहीं हैं तो हिमाचल की सियासत में कांग्रेस का बल आधा न माना जाए. ‘रोजगार संघर्ष यात्रा’ में बाली पुत्र अंगद की भांति रघुवीर सिंह बाली ने भी अपना पांव सियासत में गाड़ दिया है. कांगड़ा और हिमाचल के हितों के संघर्ष के लिए यह पांव विरोधियों पर बड़ा भारी मालूम पड़ता दिखाई दे रहा है.
उधर, शिमला और मंडी संसदीय क्षेत्र में पूर्व सीएम वीरभद्र सिंह के निधन के बाद बीजेपी खुद के लिए रास्ता साफ मान रही थी. लेकिन, उपचुनाव के नतीजों में दूध का दूध और पानी का पानी हो गया था. प्रितभा सिंह चेहरे के तौर परआगे हैं. लेकिन, उनकी सियासत में बेटे विक्रमादित्य का हर कदम पर योगदान दिखाई दे रहा है. ऐसे में वीरभद्र सिंह का गैप भी यहां पूरा होता दिखाई दे रहा है. कांग्रेस के बागीचे से जो बड़े पेड़ गिरे थे, लगता है उसकी जगह समय रहते नए पौधों ने जगह ले ली है. आगाज तो अच्छा दिखाई दे रहा है. देखना है यह है कि अभी संघर्ष की खाद-माटी लेकर ये पौधे वटवृक्ष की शक्ल कब तक लेते हैं.
(NOTE: उपरोक्त आर्टिकल लेखक के निजी विचार हैं.)
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