<p>पहाड़ी प्रदेश हिमाचल आजकल भले ही चुनावी मौसम में खोया हुआ है और हर जगह सियासत हावी है। नेता घर-घर जाकर वोट के लिए पसीना बहा रहे है लेकिन, इन सबसे दूर हिमाचल का किसान खेतों में मेहनत कर रहा है। क्योंकि, वह जानता है कि चुनावी मौसम तो सिर्फ चार दिन का ही है यूं आया और यूं चला जायेगा, परन्तु उसको तो रोटी खेत में पसीना बहाने के बाद ही मिलेगी। एक तरफ नेता है जो चार दिन वोट मांगते है और पांच साल तक आराम से जनता पर राज करते है।</p>
<p>एक तरफ किसान है जो साल भर मेहनत करते है, आराम उनकी ज़िंदगी में नही लिखा है। लेकिन खेत में पसीना बहाने का सकून अलग ही है, जिसका ऐहसास सिर्फ मेहनतकश ही पा सकता है। इस देश की सबसे बड़ी विडंबना तो शायद यही है कि जो देश के निर्माण में खून पसीना बहाता है उसको न छत नसीब होती है न पेट भर रोटी, जबकि दूसरी तरफ शासक वर्ग है जो नीतियां तो देश के किसान और गरीब के लिए बनाता है लेकिन, उसको इसका लाभ कभी नहीं मिलता है। व्यवस्था बीच में सब चट कर जाती है। बाबजूद इसके देश के किसान का इस तरह खेतों में मेहनत करना देश निर्माण में योगदान दे रहा है। केंद्र और राज्य सरकार को ऐसी नीतियां बनानी चाहिए जिनका किसानों को फायदा मिल सके।</p>
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