(यह आर्टिकल दिल्ली में स्थित वरिष्ठ पत्रकार आदर्श राठौर के ब्लॉग से लिया गया है)
हिमाचल प्रदेश सरकार ने खुली छूट दे दी है, अपने आसपास कहीं पर भी सरकारी जमीन देखें, उसपर तुरंत कब्जा कर लें। ज्यादा नहीं तो कम से कम 5 बीघा तो कर ही लें। अगर कोई आपत्ति करे तो कोर्ट चले जाएं और फिर दुआ करें कि फिर से कांग्रेस की सरकार आ जाए या फिर अगली जो भी सरकार है, वह भी मौजूदा सरकार की तरह अवैध कब्जों को नियमित कर दे।
आज हिमाचल प्रदेश के 60 लाख लोग, जो मेहनत की कमाई खाते हैं, ठगे हुए महसूस कर रहे हैं। पछतावा हो रहा है कि हमने भी क्यों नहीं सरकारी जमीन पर कब्जा कर लिया। किया होता तो आज 5 बीघा जमीन के मालिक होते। जी हां, हिमाचल की काबिल सरकार ने 5 बीघा तक के अवैध कब्जों को नियमित कर दिया है। यानी 5 बीघा तक कब्जा करने वालों को उस कब्जाई हुई जमीन का मालिकाना हक मिल जाएगा।
सरकार ने साफ संदेश दिया है कि भैया, आगे भी आप सरकारी जमीन पर कब्जे कर सकते हैं। और नहीं तो क्या? अगर कोई सरकार किसी गैरकानूनी हरकत को कानूनी बना देती है तो इसका यही संदेश जाता है कि आप फिर से वैसा करो।
नैतिकता स्वभाव में होती है। जो एक बार बेईमान होता है वो हमेशा बेईमान रहता है। जो आज 5 बीघा जमीन कब्जाकर बैठा है और उसका वह कब्जा कानूनी हो गया, कागजों के हेरफेर से बाकी की जमीन को वह अपने परिवार के दूसरे सदस्य के नाम कर देगा और इस तरह तरह से एक ही परिवार बीसियों बीघा जमीन का मालिक हो जाएगा।
यही नहीं, जो लोग कानून के डर से घबराए बैठे थे कि यार कैसे गलत काम करें। उन्हें लगेगा कि यार हमें भी कब्जा कर लेना चाहिए था। और अब वो भी खुलकर प्रोत्साहित होंगे सरकारी जमीन पर कब्जा करने के लिए। लूट मचेगी। यह प्रोत्साहन किसी और ने नहीं, सरकार ने दिया है। बहानेबाजी की गई आम और गरीब जनता के मकानों के नाम पर, मगर फायदा पहुंचाया गया अपराधियों को।
क्या आप जानते हैं कि अवैध जमीन के सबसे ज्यादा मामले कहां सामने आए हैं? राज्य सरकार ने इसी साल मार्च में हाई कोर्ट में स्टेटस रिपोर्ट दी थी। अतिक्रमण के मामलों में शिमला जिला सबसे आगे था। यहां 3280 मामले सामने आए थे। इसके बाद कुल्लू में 2392, कांगड़ा में 1757, मंडी में 1218, चंबा जिला में 644, सिरमौर में 540 और सोलन में 120 मामले ऐसे पकड़े गए हैं, जिनमें लोगों ने 10 बीघा से कम भूमि पर अतिक्रमण किया हुआ है।
यही नहीं, दस बीघा से अधिक वन भूमि पर कब्जे के 2526 एफआईआर दर्ज हुए थे। इसके अलावा 2522 मामले न्यायिक दंडाधिकारियों के समक्ष पेश कर दिए गए थे। स्टेटस रिपोर्ट के मुताबिक, 933 मामलों में 867 हेक्टेयर से अधिक भूमि से कब्जा हटाया जा चुका था।
रोहड़ू के डीएफओ ने ही कहा था कि अकेले रोहड़ू में 10 बीघा से कम वन भूमि पर कब्जा करने वाले 1481 मामलों में बेदखली आदेश पारित किए जा चुके हैं और 10 बीघा से अधिक 418 मामलों में से 399 का निपटारा कर लिया गया है।
यानी आप अंदाजा लगा सकते हैं कि कितने बड़े स्तर पर अवैध कब्जे हुए हैं। दरअसल चार साल पहले ऊपरी शिमला के एक व्यक्ति ने हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश के नाम पत्र लिखकर बताया था कि कई लोगों ने वन भूमि पर कब्जा कर सेब के बागीचे विकसित कर लिए हैं। हाईकोर्ट ने इस पत्र पर संज्ञान लेते हुए सरकार से एक-एक इंच भूमि पर से कब्जा हटाने के लिए कहा था।
क्या अब भी आपको समझ नहीं आया कि यह खेल किसके लिए हो रहा है? मुझे तो लगता है कि यह खेल सीधे तौर पर उन लोगों को फायदा पहुंचाने के लिए हो रहा है जिन्होंने जंगलों को काटकर, हरे-भरे देवदार को कत्ल करके सेब के पेड़ लगा दिए हैं। पर्यावरण, प्रकृति और कानून से खिलवाड़ करने वाले लोगों को सजा देने के बजाय सरकार संरक्षण दे रही है और वह भी चुनाव से ठीक पहले। यह बात ध्यान देने लायक है कि वीरभद्र सिंह का जनाधार ऐपल बेल्ट में ज्यादा है। और इसलिए उनकी बेचैनी और सरकार के इस मर्यादाहीन कदम की वजह समझना भी मुश्किल नहीं है।
हैरानी तो यह है कि पूरी की पूरी सरकार, जिसमें न सिर्फ चुने हुए प्रतिनिधि बल्कि अफसर शामिल हैं, उन्हें भी कुछ गलत नहीं लगा। खैर, जब प्रदेश का मुखिया ही स्कूटर पर सेब ढोने के आरोपों में घिरा हो, उससे क्या उम्मीद की जा सकती है?
निजी हित में इस प्रदेश का बंटाधार करने में कोई कसर नहीं छोड़ रहे ये नेता लोग। सही कहा है, एक सड़ा हुआ सेब पूरी पेटी को खराब कर सकता है। ऐसे मामलों में विपक्ष की चुप्पी भी शर्मनाक है। वोटों की राजनीति हम सभी को गर्त में ले जाएगी। अगर हम इसके खिलाफ आज आवाज नहीं उठाएंगे तो कोई फायदा नहीं। नैतिकता का झंडा उठाने से कुछ नहीं होगा, आवाज़ भी उठानी होगी।