<p>ऊपर की तस्वीर देख एक स्लोग बहुत ही सटिक बैठता है। मतलब, why should youngster have all the Fun… जाहिर है, वर्चुअल दुनिया के रस्मो-रवायत में घुलने-मिलने का अधिकार हमारे राजनेताओं को भी है। ऊपर से जब कंपनिया डेटा दबा के दे रही हैं, तो नेता लोग भी भला कैसे पीछे रह सकते हैं…। जियो, एयरटेल, वोडाफोन की लड़ाई में नेता भी 'शुद्ध डेटा लाभ' उठा रहे हैं। है कि नहीं?</p>
<p>तस्वीर हमीरपुर में रिपब्लिक डे पर आयोजित एक कार्यक्रम की है, जिसमें मुख्य अतिथि विधानसभा अध्यक्ष राजीव बिंदल के अलावा विधायक नरेंद्र ठाकुर, कमलेश कुमारी, वरिष्ठ नेता प्यारेलाल और एसडीएम अरिंदम चौधरी स्टेज पर विराजमान थे। सामने गणतंत्र दिवस का कार्यक्रम चल रहा था। लेकिन, इन तस्वीरों के चलते ये लोग 'ट्रोलबाजों' के निशाने पर हैं। फोटोग्राफ जमकर वायरल हो रहा है और मजाक तथा ताने का दौर भी तेज है।</p>
<p>वैसे लोगों को समझना चाहिए कि आज के दौर में जब तमाम सांस्कृतिक, राजनीतिक, सामाजिक मुद्दे वर्चुअल हो चुके हैं। लोग फेसबुक, वाट्सअप पर ही एक दूसरे का कांड कर दे रहे हैं। तो ऐसे में वर्चुअल क्रांति का यह वायरल टच हमारे राजनेताओं को भला कैसे पीछा छोड़ सकता है। ऊपर, सबसे ज्यादा राजनीतिक और सामाजिक गतिविधियों की पोल-खोल तो सेलफोन की स्क्रीन पर ही दिखाई देती है। यहा तक कि बधाईयां और शिकवा-शिकायतों का कारोबार भी वाट्सएप के जरिए फल-फूल रहा है। ऐसे में सार्वजनिक जीवन के पुरोधा यानी राजनेता सेलफोन पर व्यस्त नहीं होंगे तो भला कहां होंगे।</p>
<p>अब कहने वाले कह रहे हैं कि भला गणतंत्र दिवस के अतिथियों को यह शोभा देता है कि वे क्रार्यक्रम को इग्नोर कर फोन में घुसे रहें। कुछ लोग यह भी कह सकते हैं कि गणतंत्र दिवस के बोरिंग परफॉर्मेंस से बचने के लिए नेताओं ने फेसबुक, ट्विटर या व्हाट्सअप पर चुटकले, ताने या पद्वमावती डिबेट को देखना उचित समझा। देखिए जनाब अब इतना सीनिकल होने की भी जरूरत नहीं है। आजकल अधिकांश घरों में यही आदत हो गई है। खाने के टेबल पर भी लोग फोन पर ही गप्पे मारते या फेसबुकियाने में मशगूल रहते हैं। एक कमरे में बैठी बहन दूसरे कमरे में बैठे भाई को वाट्सअप पर ही हैप्पी-बर्थडे बोलती है। ऐसे में सोचना होगा कि राजनेता नाम का प्राणी भी हमारे ही समाज के अंग है। लिहाजा, समाज की नई रिवायतें तो इन्हें भी छू कर गुजरेंगी।</p>
<p>खै़र, आज की परिस्थिति में हम सभी को सोचना होगा कि कहीं हम वर्चुअल- ऑब्सेस्ड तो नहीं हो चुके हैं? इसका आंकलन करना होगा कि क्या हम दूसरों से ज्यादा मोबाइल-फोन स्क्रीन को वैल्यू दे रहे हैं? अगर आपको वर्चुअल-लाइफ की भयावहता देखनी हो, तो इस वीडियो को देखिए. (ख़ासकर पिक में सेलफोन यूज करने वाले राजनेता तो ज़रूर गौर फरमाएं)। इस वीडियो का टाइटल है, Are you lost in the world like me. क्लिक करके देखिए, खुद ही समझ जाएंगे कि जरूरत से ज्यादा सेल-फोन ऑब्सेस्ड होना कितना खतरनाक है। यदि समझ जाएं तो कॉमेंट बॉक्स में अपना विचार जरूर दें….</p>
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