<p>चुनावों में पैसे के खेल से सभी वाकिफ हैं। तय मानक के विपरीत पैसे किस तरह से पानी की तरह बहाए जाते हैं, यह चिंता का विषय बना रहता है। सबसे बड़ी चिंता यह रहती है कि आखिर इतना पैसा आता कहां से है और चंदा कौन देता है? हालांकि, ये सवाल अभी भी अपनी जगह कायम हैं, लेकिन मोदी सरकार ने चुनावों में चंदे को पारदर्शी बनाने की कोशिश की है।</p>
<p>केंद्र सरकार ने चुनावी चंदे के लिए 'इलेक्टोरल बॉन्ड स्कीम' का ऐलान कर दिया है। राजनीतिक दलों को बॉन्ड के जरिए चंदा दिया जा सकेगा। वित्त मंत्री अरुण जेटली ने संसद में इसका ऐलान किया और कहा कि भारत का कोई भी नागरिक या कंपनी या संस्था चुनावी चंदे के लिए बॉन्ड खरीद सकेंगे। ये बॉन्ड स्टेट बैंक ऑफ इंडिया की चुनिंदा शाखाओं में मिलेंगे और एक हजार, दस हजार, एक लाख और एक करोड़ रुपये मल्टिपल में खरीदे जा सकेंगे। बॉन्ड कि मियाद इसके खरीदे जाने के 15 दिन तक मान्य रहेगी।</p>
<p><strong><span style=”color:#c0392b”>चुनावी चंदे के बॉन्ड पर कुछ जरूरी पक्ष </span></strong></p>
<p>चुनावी चंदे के लिए बॉन्ड को चुनावों में पारदर्शी बनाने के लिए लाया गया है। लेकिन, इस पर भी कुछ सवाल उठ रहे हैं, जिन्हें आपको जानना चाहिए….</p>
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<li>दानकर्ता चुनाव आयोग में रजिस्टर किसी भी पार्टी को पैसा चंदे के रूप में दे सकता है। लेकिन, यह उसी को मिलेगा जो पिछले चुनावों में कुल वोटों का कम से कम 1 प्रतिशत वोट हासिल किया हो.</li>
<li>बॉन्ड के लिए दानकर्ता को अपनी सारी जानकारी (केवाईसी) बैंक को देनी होगी, लेकिन बॉन्ड में उसकी पहचान गुप्त रखी जाएगी.</li>
<li>चुनाव सुधारों के लिए काम करने वाली संस्थाओं ने चंदा देने वाली की प्राइवेसी पर ऐतराज जाहिर किया है। उनके मुताबिक नाम गुप्त रखना पारदर्शिता का उल्लंघन है.</li>
<li>पारदर्शिता से संबंधित सवाल उठाने वालों का तर्क है कि चुनाव जीतने के बाद कौन सी पार्टी किस संस्था या कंपनी के हितों को गलत तरीके पूरी करती है, इस पर लगाम लगाना मुश्किल होगा.</li>
<li>जबकि सरकार का तर्क है कि बॉन्ड के जरिए चंदे में काले धन के सर्कुलेशन पर रोक लगेगी.</li>
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