<p>लौट कर बुद्धू घर को आए… ये कहावत हिमाचल प्रदेश बीजेपी के नेता सुरेश चंदेल पर एक दम फिट बैठती नज़र आती है। क्योंकि, जिस तरह उन्होंने राजनीतिक पार्टियों की चुनावी टीम में एंट्री के लिए गठजोड़ किये और आख़िर में उन्हें कहीं से भी सफ़लता नहीं मिली तो आज फिर वे उसी जगह पर खड़े हैं जहां पहले थे। ऐसे में ये कहना कहीं भी ग़लत नहीं लगता… कि 'लौट कर बुद्धू घर को आए!'…</p>
<p>सुरेश चंदेल ने बीजेपी से टिकट न मिलने पर कांग्रेस में जाने का मन बनाया था औऱ बाद में उन्हें कांग्रेस से भी टिकट नहीं मिला तो फ़िर वे बीजेपी में ही हैं। अब सूत्र बता रहे हैं कि बीजेपी के वरिष्ठ नेता और मुख्यमंत्री उन्हें मनाने का भी प्रयास कर रहे हैं, लेकिन अंदरख़ाते ये सब चुनाव के लिए हो रहा है। इसके लिए बिलासपुर में मुख्यमंत्री और समीरपुर में पूर्व मुख्यमंत्री धूमल ने उनसे मुलाक़ात की। लेकिन, राजनैतिक रूप से देखा जाए तो कोई बड़ा लाभ सुरेश चंदेल को इस मुलाक़ात का नहीं होने वाला है।</p>
<p>बताया तो ये भी जा रहा है कि चुनाव के ठीक बाद सुरेश चंदेल एक बार फ़िर पार्टी के किसी कोने पर पडे नज़र आने वाले हैं। आख़िरकार आएं भी क्यों न… जब कोई नेता चुनावी बेला में भीतरघात की बात करता हो और फिर पार्टी में वापसी करता हो तो उसे बीजेपी क्या तरजीह देगी…?? एक तरफ़ से ये भी कहा जा सकता है कि वे सिर्फ टिकट की लालसा में ही कांग्रेस में जाना चाहते थे। लेकिन अब टिकट नहीं मिला तो इसमें बीजेपी कैंडिडेट को इसका लाभ लाजमी है।</p>
<p>वहीं, इससे पहले भी चंदेल को रोकने के लिए बीजेपी ने उस समय भी प्रयास किया था जब वे दिल्ली में लगातार कांग्रेस के सम्पर्क में थे। लेकिन उस समय बात नहीं बनी और आख़िर में टिकट न मिलने के बाद वे फिर बीजेपी में ही रह गए।</p>
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