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मुख्यमंत्री ने ख़त्म की टोपी की राजनीति, सिर पर दिखी ‘हरी’ टोपी

मनीष कौल |

क्या मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर ने प्रदेश में होने वाली टोपी की राजनीति पर विराम लगा दिया है? असल में मंगलवार को विधानसभा में उनके नए अवतार को देखकर तो कम से कम यही लगता है। सदन में मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर के सिर पर हरी टोपी सज़ी दिखी, जिससे साफ कहा जा सकता है कि मुख्यमंत्री ने अपने बयानों के मद्देनज़र प्रदेश में टोपी की राजनीति को पूरी तरह ख़त्म कर दिया है।

याद रहे कि मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर ने सत्ता में आते ही कहा था कि टोपी की राजनीति ने हिमाचल को ऊपरी और निचले इलाकों में बांटा हैं। जिससे वे टोपी पहनना पसंद ही नहीं करते हैं और इसकी राजनीति ख़त्म करना चाहते हैं। उनके मुताबिक टोपियां हिमाचल की परंपरा को दर्शाती हैं जिनपर राजनीति नहीं की जानी चाहिए।

वीरभद्र-धूमल कार्यकाल में टोपी पर सियासत!

मुकम्मल तौर पर देखा जाए तो टोपी की राजनीति वीरभद्र सिंह और प्रेम कुमार धूमल के कार्यकाल से शुरू हुई है। हिमाचल की अलग-अलग परंपराओं को दर्शाने वाली 'हिमाचली टोपी' के रंग को लेकर राजनीतिक नजरिया बनाए जाने शुरू हुए और यह आज भी कायम हैं। कांग्रेस के लोग हरी टोपी के सिंबल से जाने जाते थे, जबकि लाल टोपी बीजेपी की सिंबल थी। राजनीति का ही असर रहा कि जनता के मानस पटल पर टोपी का रंग देखकर ऊपरी और नीचले हिमाचल की मुहर लगने लगी।

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हाल ही पूर्व मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह ने टोपी की राजनीति का भी जीता-जागता उदाहरण भी दिया था, जब एक मीटिंग में उन्हीं के पार्टी के वरिष्ठ नेता कौल सिंह ठाकुर ने उन्हें लाल रंग की टोपी पहनाने की कोशिश की। वीरभद्र सिंह ने टोपी पहनने के लिए पहले सिर झुकाया, लेकिन जब टोपी के रंग को लाल देखा तो आग-बगुला होकर टोपी को हटा दिया।

ग़ौरतलब है कि 'हिमाचल टोपी' प्रदेश की परंपरा को दर्शाती है और बाहरी राज्यों में भी इसकी अपनी अलग पहचान है। ये तो मानना होगा कि टोपी पर हो रही राजनीति ने व्यक्ति विशेष की सोच पर प्रभाव जरूर डाला है। लेकिन, यदि राजनीति से ऊपर उठकर सोचे तो हमारा हिमाचल, सही मायने में इन्क्रिडेबल हिमाचल जरूर बन जाएगा।