हिमाचल में 3 विधानसभा और 1 लोकसभा सीट पर उपचुनाव होने हैं। प्रदेश की दोनों प्रमुख पार्टियां पूरी तरह से तैयार हैं और गुलाबी ठंड की दस्तक के साथ-साथ सियासी पारा भी चढ़ने लगा है। वहीं बात करें जुब्बल-कोटखाई की तो..ये सीट बीजेपी के कद्दावर नेता नरेंद्र बरागटा के निधन के बाद खाली हो गई थी। लेकिन अब कयास ये लगाए जा रहे हैं कि इस सीट पर पूर्व सीएम ठाकुर राम लाल के पोते और पूर्व विधायक रोहित ठाकुर और दिवंगत नरेंद्र बरागटा के बेटे चेतन बरागटा के बीच मुकाबला हो सकता है। हालांकि पूर्व जिला परिषद नीलम सरैक भी कई बार दावेदारी और खुलेआम टिकट के लिए अपनी बात कह चुकी हैं। सोशल मीडिया पर नीलम को समर्थन भी मिल चुका है। वंशवाद परिवारवाद खत्म करो, आम आदमी तुम्हारे साथ हैं । वहीं कांग्रेस अगर रोहित ठाकुर को चुनावी समर में उतारती है तो उन्हें भी कई युवा नेताओं को साथ लेकर चलना होगा क्योंकि दावेदार कई हैं।
जुब्बल-नावर-कोटखाई सीट का इतिहास
वहीं इस सीट के इतिहास की बात की जाए तो ये कांग्रेस की परंपरागत सीट रही है। यहां अब तक 13 बार चुनाव हो चुके हैं, जिसमें से 10 दफा कांग्रेस पर जनता ने भरोसा जताया। पूर्व सीएम ठाकुर रामलाल सबसे ज्यादा 6 बार विधायक रहे चुके हैं। 2003 और 2012 में ठाकुर राम लाल के पोते ने यहां जीत हासिल की थी और उसके बाद मुकाबला नरेंद्र बरागटा और रोहित ठाकुर के बीच चल रहा था। लेकिन नरेंद्र बरागटा के निधन के बाद जो खबर छन-छन कर आ रही है उससे लग रहा है कि अब मुकाबला 2 बार के विधायक रहे कांग्रेस के रोहित ठाकुर और बीजेपी आईटीसेल के प्रभारी चतेन बरागटा के बीच होगा। दोनों युवाओं नेताओं को अपने विरासत की जिम्मेदारी को आगे ले जाना बड़ी चुनौती होगी। चेतन बरागटा का ये पहला चुनाव है और चेतन अकसर जनता के बीच देखे जाते हैं और एक एक्टिव युवा नेता की पहचान बना चुके हैं साथ ही उन्हें पिता के मौत के बाद सिम्पथी फैक्टर भी मिल सकती है लेकिन राह आसान नहीं है।
सत्ता में रहना पंसद करती जुब्बल-कोटखाई की जनता
इस सीट को लेकर एक और रोचक बात ये है कि 1990 के चुनाव में वीरभद्र सिंह को रामलाल ठाकुर के हाथों हार मिली थी। ये वो ही वीरभद्र सिंह जिन्हें हमेशा जनता का भरपूर प्यार और समर्थन मिलता रहा। हालांकि वीरभद्र सिंह ने उस समय दो सीटों पर ताल ठोकी थी राहडू और जुब्बल-कोटखाई। राहडू से तो वीरभद्र सिंह को जीत हासिल हुई लेकिन जुब्बल-कोटखाई की जनता को भरोसा जीत नहीं पाए। जिस तरह से इस सीट का इतिहास रहा है उससे ये लगता है कि यहां की जनता बड़ी केलकुलेटिव हैं और सत्ता में रहना पसंद करती है। ऐसे में देखना दिलचस्प होगा इस बार यहां के लोग किस पर जीत का सहरा पहनाती हैं।
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