हिमाचल प्रदेश में विधानसभा चुनावों की कभी भी घोषणा हो सकती है। बीजेपी लगातार सरकार के ऊपर भ्रस्टाचार और कानून व्यवस्था को लेकर हमले कर रही है। लेकिन इस चुनावी माहौल में प्रदेश के युवाओं और आम जनता के मुद्दे दबते हुए नज़र आ रहे हैं। पहले युवाओं की बात करें तो हिमाचल में पिछले दस साल से यही सुना जा रहा है कि प्रदेश में दस लाख युवा वेरोजगारों की फौज है। वहीं, घोषणापत्र में राजनीतिक दल बेरोजगरी दूर करने का वायदा तो करते है लेकिन होता कुछ नहीं है। इस चुनावी माहौल में भी युवा वोट बैंक की बात तो सभी करते हैं पर रोजगार के लिए ठोस नीति किसी दल के पास नहीं है। यहां तक कि रोजगार देने के बड़े-बड़े वायदे करने वाली मोदी सरकार भी इस मामले पर फिसड्डी साबित हुई है।
देश में आज सबसे बड़ा मुद्दा मंहगाई है लेकिन इस पर भी कहीं चर्चा नहीं है हिमाचल के चुनाव में भी मंहगाई कोई मुद्दा नज़र नहीं आ रहा है या फिर कांग्रेस इस मुद्दे को प्रभावी ढंग से उठा नहीं पा रही है। चुनाव से पहले प्रधानमंत्री मंहगाई को लेकर UPA सरकार पर जोरदार हमले करते रहे उसके बाद सत्ता तो बदली लेकिन हालात नहीं बदले।
प्रदेश में जंगली जानवरों से किसान बागवान परेशान है 50 फीसदी के ज्यादा उपजाऊ जमीन बंजर हो चुकी है लेकिन सरकार और विपक्ष के पास इस समस्या का कोई स्थाई हल नहीं हैं। इस चुनाव में अभी तक ये भी नज़र नहीं आ रहा है कि हिमाचल में विकास भी कोई मुददा है और न ही विकास को लेकर ऐसा लग रहा है कि सरकार के खिलाफ पिछले पांच साल में कोई विरोध है। विरोध दिख रहा है तो नेताओं की आपसी खींचतान का, अपने-अपने हित साधने का, कुर्सी की लड़ाई का जनता और प्रदेश की फिक्र किसको है।