हिंदू धर्म में चातुर्मास या चौमासा का विशेष महत्व होता है। चातुर्मास की शुरुआत हिंदू कैलेंडर के अनुसार आषाढ़ माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी से शुरू होती है जोकि कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी तक होती है। चातुर्मास की शुरुआत रविवार 10 जुलाई 2022 से हो रही है। ऐसा कहा जाता है कि चातुर्मास के दौरान भगवान विष्णु पूरे 4 महीना के लिए योग मुद्रा में चले जाते हैं और सृष्टि का संचालन भागवान शिव के हाथों में चला जाता है।
ये चार महीने सावन, भाद्रपद, अश्विन और कार्तिक के होते हैं। इस बार चतुर्मासा 10 जुलाई से शुरू हो रहा है जो 4 नबंवर तक रहेगा। कहा जाता है कि इस अवधि में विवाह, मुंडन, गृह प्रवेश और तिलक जैसे कई कार्यों पर पाबंदी लग जाती है। इन शुभ कार्यों के लिए इस समय पंचांग में कोई शुभ मुहूर्त नहीं होते हैं। इसके अलावा भी चातुर्मास के दौरान कई तरह के कार्यों को वर्जित माना गया है।
हालांकि हिंदू धर्म में इन चारों महीनों का अपना अगल-अलग महत्व और मान्यता होती है। इस चारों महीनों में पहला महीना श्रावण का होता है। कहते हैं कि इस महीने में महादेव की विशेष कृपा रहती है। सावन के महीने में शिव आराधना और उनकी उपासना से हर मनोकामना पूर्ण होती है। इस बार सावन का महीना 14 जुलीई से 12 अगस्त तक रहेगा।
दूसरा महीना आता है भाद्रपद का- इस महीने में भगवान श्रीकृष्ण की विशेष कृपा रहती है। इसी महीने भगवान श्रीकृष्ण का जन्म हुआ था। इसलिए संतान प्राप्ति के लिए ये महीना काफी सर्वोतम माना जाता है। भाद्रपद का महीना 13 अगस्त से शुरू होकर 10 सिंतबर तक चलेगा।
तीसरा महीना आता है अश्विन- ये महीना शक्ति प्राप्ति का होता है। इस महीने देवी की उपासना की जाती है। अश्विन महीने में ही पितरों की भी पूजा की जाती है। इसमें मां दुर्गा के नवरात्रि भी आते हैं। इस बार अश्विन महीना 11 सितंबर से 09 अक्टूबर तक रहेगा।
चौथा महीना आता है कार्तिक- ये महीना हिंदू धर्म में अत्यधिक पवित्र माना जाता है। ये चातुर्मास का अंतिम महीना होता है। इसी महीने से देव तत्व मजबूत होता है। इसी महीने में तुलसी का रोपण और विवाह सर्वोत्तम होता है। इस बार कार्तिक का महीना 10 अक्टूबर से 8 नवंबर तक रहेगा।
चातुर्मास में ये कार्य होते हैं वर्जित
चातुर्मास में शादी-विवाह, मुंडन, तिलक, गृह प्रवेश और नामकरण जैसे सभी 16 संस्कार नहीं किए जाते। इस दौरान कोई भी मांगलिक कार्य करना शुभ नहीं माना जाता। चातुर्मास में पूरे चार महीने के लिए तामसिक या राजसिक भोजन का त्याग करना चाहिए। चातुर्मास में बाल-दाढ़ी बनवाने पर भी मनाही होती है। कहा जाता है कि चातुर्मास में नीले वस्त्र को नहीं देखना चाहिए। साथ ही इस समय काले वस्त्र को भी धारण नहीं करना चाहिए। चातुर्मास में यात्रा से भी बचना चाहिए। अगर बहुत जरूरी न हो तो इस दौरान यात्रा न करें।
चातुर्मास में पड़ने वाले महीनों में जैसे सावन माह में मांसाहार भोजन, पालक और बैंगन का सेवन नहीं करना चाहिए। भाद्रपद में दही का त्याग करना चाहिए। आश्विन माह में तामसिक भोजन और दूध का सेवन नहीं करना चाहिए। कार्तिक माह में मांस-मदिरा, प्याज-लहसुन और उड़द की दाल का त्याग करना चाहए।
चातुर्मास में भले ही शुभ-मांगलिक कार्य वर्जित होते हैं। लेकिन जप-तप, ध्यान, नदी स्नान, व्रत और तीर्थयात्रा पर कोई रोक नहीं होती है। चातुर्मास में दान का भी विशेष महत्व होता है। इसलिए इस दौरान किसी गरीब या जरूरतमंद को दान जरूर दें। साथ ही इस अवधि में पिंडदान या तर्पण करना भी अच्छा माना गया है। इससे पितरों के आत्मा को शांति मिलती है और पितृ प्रसन्न होकर आशीर्वाद देते हैं।
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