भरमौर स्थित चौरासी मंदिर के बारे में माना जाता है की विश्व में यह एक मात्र मौत के देवता का मंदिर है। इस मंदिर की मान्यता है कि इसमें इंसान अगर जीते जी नही आया तो मौत के बाद उसकी आत्मा को यहां आना कर्मों के लेखेजोखे का हिसाब देने आना पड़ता है। इसी मन्दिर में पाप और पुन्य दोनों का हिसाब कर उसे स्वर्ग और नर्क में भेजा जाता है। इस मंदिर में आने वाली आत्मा को धर्मराज के पास जाने से पहले चित्रगुप्त के पास से होकर गुजरना पड़ता है।
कहा जाता है कि इस मंदिर में एक खाली कमरा है जिसे चित्रगुप्त का कमरा माना जाता है। चित्रगुप्त यमराज के सचिव हैं जो जीवात्मा के कर्मो का लेखा-जोखा रखते हैं। मान्यता है कि जब किसी प्राणी की मृत्यु होती है तब यमराज के दूत उस व्यक्ति की आत्मा को पकड़कर सबसे पहले इस मंदिर में चित्रगुप्त के सामने प्रस्तुत करते हैं। चित्रगुप्त जीवात्मा को उनके कर्मो का पूरा लेखा-जोखा देते हैं। तत्पश्चात आत्मा को वहीं बने एक कमरे में जिसे यमराज की कचहरी कहा जाता है वहां ले जाया जाता है।
चौरासी मंदिर की परिधि में बनाए गए 84 मंदिरों के कारण इसका नाम चौरासी मंदिर पड़ा। इस मंदिर को किसने और कब बनाया इसका कोई ठोस प्रमाण नही हैं। लेकिन इस मंदिर का जीर्णोद्धार चंबा रियासत के राजा मेरू वर्मन ने छठी शताब्दी में कराया था। यह माना जाता है कि जब 84 सिद्ध कुरुक्षेत्र से युद्ध के लिए गए थे, जो लोग मन्नमाशेद की यात्रा के लिए भरमौर से गुजर रहे थे, तो भरमौर की खूबसूरती और शांति के क़ायल हो गए और यहीं पर ध्यानमग्न हो गए।
चौरासी मंदिर परिसर से जुड़ी एक ओर किंवदंती है। कहा जाता है कि साहिल वर्मन के ब्रह्मपुरा (प्राचीन भरमौर का नाम) के प्रवेश के कुछ समय बाद, 84 योगियों ने इस जगह का दौरा किया। वे राजा की आतिथ्य से बहुत प्रसन्न हुए। क्योंकि राजा से कोई संतान नहीं थी। इसलिए प्रशन्न योगियों ने राजन को वरदान दिया की उसके यहां 10 पुत्रो का जन्म होगा। समय बीतने के साथ राजा के महल में दस पुत्रों व एक बेटी का जन्म हुआ। बेटी का नाम चंपावती रखा गया। चंपावती की पसंद से भरमौर की राजधानी चम्बा बनी। भरमौर का 84 मंदिर उन 84 योगियों को समर्पित है। उसके बाद से इसका नाम चौरासी मंदिर पड़ गया।
चौरासी मंदिर परिसर में 84 बड़े और छोटे मंदिर हैं। चौरासी भरमौर के केंद्र में एक बड़ा मैदान है जहां असंख्य शिवलिंग के रूप में मंदिरों की आकाशगंगा मौजूद है। कहते हैं महाशिवरात्रि के दिन पाताल लोक में विराजमान भगवान शिव कैलाश की ओर प्रस्थान करते हैं। इस दौरान भगवान शिव चंबा भरमौर स्थित अति प्राचीन चौरासी मंदिर में विश्राम करते हैं।उनके इस विश्राम को साकार रूप देने के लिए हर साल हजारों श्रद्धालु भरमौर के चौरासी मंदिर में जुटते हैं। साल में यह ऐसा मौका होता है जब रात के चार पहर ढ़ोल नगाड़े व घंटियों की गूंज के साथ मंदिर में विशेष पूजा-अर्चना की जाती है।