<p>ऐतिहासिक जयंती माता मंदिर कांगड़ा में पंच भीष्म मेले सोमवार से शुरू हो चुके हैं। सोमवार को करीब 2000 लोगों ने माता के दर्शन किए थे। यह पर्व भीष्म पितामह की याद में होता है। इसमें गांवों की कन्याएं 5 दिन तक सुहाग गीत गाती हैं। महिलाओं के साथ कन्याएं मिलकर आंगन में बनी हुई तुलसी की क्यारी के आसपास विभिन्न रंगों में चित्रकारी करती हैं, जिसमें विवाह के विभिन्न दृश्य बनाए जाते हैं। कांगड़ा घाटी में पंच भीष्म का मेला भी कांगड़ा के ज्यंती माता के मंदिर में पांच दिनों तक लगता है।</p>
<p>गौरतलब है कि कार्तिक माह की एकादशी में पंच भीष्म का यह पर्व विशेषकर महिलाएं वर्षों से मनाती आ रही हैं। इसमें पांच दिन व्रत रखा जाता है जिसमें सिर्फ फलाहार पर ही निर्भर रहना पड़ता है। तुलसी को गमले में लगाकर उसे घर के भीतर रखकर चारों ओर केले के पत्ते लगाकर दीपक जला दिया जाता है। इसके बाद पांचवें दिन पडया प्रतिपदा को पूजे हुए दीपक को बुझा दिया जाता है।</p>
<p>इसी दीपक को पंच भीष्म के दिन सात साल तक जलाया जाता है। गौरतलब है कि जयंती माता मंदिर से कांगड़ा का इतिहास भी जुड़ा है अज्ञातवास के दौरान पांडवों ने भी कुछ समय इस मंदिर में व्यतीत किया था। इस मंदिर को जाने के लिए करीब चार किलोमीटर की पैदल चढ़ाई चढ़नी पड़ती है।</p>
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