<p>देवभूमि हिमाचल प्रदेश ऐसी पावन स्थली है जहाँ के चप्पे चप्पे में देवी देवता रमण करते है। यही वजह है कि यहां वर्षभर मेलो त्यौहारों का सिलसिला जारी रहता है।देवभूमि के मंदिरों की गाथा भी हिमाचल के इतिहास से जुड़ी हुई है। ऐसा ही एक मंदिर है शिमला जिला के सराहन में मां भीमाकाली मंदिर जिसकीं काफी मान्यता है।</p>
<p>भीमाकाली मंदिर की पौराणिक गाथा के मुताबिक शोणितपुर का सम्राट बाणासुर शिवभक्त था। ये राजा बलि के सौ पुत्रों में सबसे बड़ा था। माना जाता है कि बाणासुर की बेटी उषा को पार्वती से वरदान मिला था कि उसकी शादी भगवान कृष्ण के पौत्र अनिरुद्ध से होगी। लेकिन इससे पहले अचानक विवाह के प्रसंग को लेकर बाणासुर और श्रीकृष्ण में घमासान युद्ध छिड़ गया। युद्ध में बाणासुर की हालत पतली हो गई। तत्पश्चात मां पार्वती के वरदान का मान रखने के लिए असुर राज परिवार और श्रीकृष्ण में सहमति हुई। उसके बाद से पिता प्रद्युम्न और पुत्र अनिरुद्ध के वंशजों की राज परंपरा चली।</p>
<p>वर्तमान भीमाकाली मंदिर के बारे में माना जाता है कि ये मंदिर सातवीं-आठवीं शताब्दी के बीच बना है। मत्स्य पुराण में भी भीमा नाम की एक मूर्ति का जिक्र आता है। एक ने कथा के अनुसार भगवान शिव के तिरस्कार के बाद माँ पार्वती जब अपने पिता दक्ष के यज्ञ में सती हो गई थीं तो भगवान शिव ने मां की पार्थिव देह कंधे पर उठा ली और भटकने लगे।</p>
<p>विष्णु भगवान ने अपने चक्र से मां के शरीर के टुकड़े-टुकड़े कर दिए। विभिन्न स्थानों पर देवी के अलग-अलग अंग गिरे। देवी का कान शोणितपुर में गिरा और वहां भीमाकाली प्रकट हुई। कहा जाता है कि पुराणों में वर्णन है कि कालांतर में देवी ने भीम रूप धारण करके राक्षसों का संहार किया और भीमाकाली कहलाई। ये मंदिर भी उसी का प्रतीक है।</p>
<p>भीमाकाली हिमाचल प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह की कुलदेवी है जहां हर नवरात्र की अष्ठमी को को वीरभद्र सिंह मां भीमाकाली की आराधना करना नहीं भूलते। कहा तो ये भी जाता है कि भीमाकाली के आशीर्वाद से वीरभद्र सिंह ऊंचाइयों तक पहुंचे और जिसने भी उनकी ख़िलाफ़त की उसका भला नही हुआ। मंदिर परिसर अपनी अद्भुत शैली और काष्ठकला के साथ-साथ दिव्य शांति के लिए विख्यात है। नवरात्रि व अन्य धार्मिक अवसरों पर श्रद्धालुओं की भीड़ भी रहती है।</p>
<p>इस मंदिर के स्तंभ, द्वार, झरोखों पर की गई चित्रकारी मन को मोहित कर लेती है। भीमाकाली मंदिर की सबसे ऊपरी मंजिल पर मां का श्रीविग्रह है। दंतकथाओं के अनुसार भीमा नामक महात्मा ने इस मंदिर की स्थापना की थी। पहले सराहन गांव बुशहर रियासत की राजधानी था। इस रियासत की सीमाओं में प्राचीन किन्नर देश भी था। बुशहर राजवंश पहले कामरू से राज्य का संचालन करता था। राजधानी को स्थानांतरित करते हुए राजाओं ने शोणितपुर को नई राजधानी के रूप में चुना। प्राचीन समय का शोणितपुर ही मौजूदा समय में सराहन के नाम से विख्यात है। कहा जाता है कि बुशहर राजवंश के राजा राम सिंह ने रामपुर को राज्य की राजधानी बनाया।<br />
<br />
सराहन में एक ही स्थान पर भीमाकाली के दो मंदिर हैं। प्राचीन मंदिर किसी कारणवश टेढ़ा हो गया। फिर साथ ही एक नया मंदिर पुराने मंदिर की शैली पर बनाया गया। यहां 1962 में देवी मूर्ति की स्थापना हुई। इस मंदिर परिसर में तीन प्रांगण आरोही क्रम में बने हैं जहां शक्ति के अलग-अलग रूपों को मूर्ति के रूप में स्थापित किया गया है। देवी भीमा की अष्टधातु से बनी अष्टभुजा मूर्ति सबसे ऊपर के प्रांगण में है। सराहन का भीमाकाली मंदिर समुद्र तल से 2200 मीटर की ऊंचाई पर है। मंदिर के आसपास प्रकृति ने अपनी अद्भुत छटा बिखेरी है। सराहन को किन्नौर का प्रवेश द्वार भी कहा जाता है। भीमाकाली मंदिर परिसर में भगवान रघुनाथ, नरसिंह ,पाताल भैरव (लांकड़ा वीर) मंदिर भी हैं।</p>
Sainik School Admission 2025: अखिल भारतीय सैनिक स्कूल प्रवेश परीक्षा (AISSEE) 2025 के लिए आवेदन…
ITBP Recruitment 2024: भारतीय तिब्बत सीमा पुलिस बल (आईटीबीपी) ने हैड कांस्टेबल (मोटर मेकेनिक) और…
मेष🐐 (चू, चे, चो, ला, ली, लू, ले, लो, अ) आज आपका दिन अच्छा रहने…
सफला एकादशी 2024: पौष मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी, जिसे सफला एकादशी के नाम…
CM Sukhu Ridge Visit: शिमला के रिज और माल रोड पर मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खू…
Abhinandan Chandel Selection: हमीरपुर जिले के मोहीं गांव के अभिनंदन चंदेल का चयन भारतीय तट…