सावन माह भोलेनाथ का प्रिय मास माना जाता है. यह महीना श्रृंगार रस के लिए भी उत्तम माना जाता है. सावन माह में मेहँदी की लालिमा व हरे रंग का महिलाओं के लिए विशेष महत्व रहता है. इस माह महिलाएं एक जगह एकत्रित होकर हाथों में मेहँदी रचाकर सावन के गीतों में झूम उठती है. मेहँदी ने भारतीय संस्कृति में अपना एक अलग स्थान हासिल किया है.
सावन की रिमझिम फुहारों के बीच कोमल हाथों में मेहंदी रचाने का महिलाओं के लिए अलग ही अनुभव होता है. मेहंदी के लालिमा में रंग कर वह अपना दुख दर्द भूल जाती है. कोमल सुंदर रुचि पूर्ण रंगों से सजे मेहंदी वाले हाथ अति आकर्षक दिखाई देते हैं. प्राचीन काल से मेहंदी महिलाओं के हाथों की शोभा बढ़ाती रही है. वैदिक ग्रंथ सुश्रुत संहिता में मदयन्तिका के नाम से मेहंदी का उल्लेख मिलता है. मेहंदी बीजी जाती है, तोड़ी जाती है, फिर पत्थर में पीस दी जाती है, इतने दुख सह कर भी मेहंदी मनोहारी रंग लेकर आती है. मेहंदी पर किसी ने क्या खूब कहा है…
“सुर्ख रूह होता है इंसान ठोकरे खाने के बाद,
रंग लाती है हिना पत्थर में पीस जाने के बाद”…
भारतीय संस्कृति में सौभाग्यवती नारी के जीवन में मेहंदी का महत्वपूर्ण स्थान है. मध्य काल से ही नारी के 16 श्रृंगार में मेहंदी एक अभिन्न श्रृंगार है. श्रावण मास में मेहंदी का हाथों में रचाने का अपना ही महत्व है. मेहंदी सौभाग्य श्रृंगार और और स्वास्थ्य प्रदान करने वाली मानी जाती है. इससे भी बढ़कर हाथों में रची मेहंदी की मनोहर लालिमा प्रेम का प्रतीक है. दांपत्य जीवन में प्रेम का रंग भरने वाला मेहंदी का ही रंग है. जो एक बार चढ़ जाए तो फिर कभी नही उतरता है.