हिमाचलः 23 की उम्र में कारगिल हीरो संजय ने जीता परमवीर चक्र

<p>कारगिल का ऐतिहासिक युद्ध तो आपको याद ही होगा। 1999 में हुआ यह वही युद्ध था, जिसमें विजय होकर भारत ने कारगिल पर फिर से तिरंगा फहराया था। इस युद्ध में भारत की जीत के कई हीरो ऐसे हैं, जिसमें हिमाचल के इस हीरो का भी नाम है।</p>

<p>जी हां, हम बात कर रहे हैं कारगिल युद्ध के एक हीरो रायफलमैन संजय कुमार की जो इस समय सेना में सूबेदार के पद पर अपनी सेवाएं दे रहे हैं। कैसे एक गुमनाम से गांव में एक सादा जीवन जीने वाले परिवार में पैदा हुए संजय कैसे पूरे देश की शान बन गए।</p>

<p>संजय का जन्म&nbsp;<strong>3 मार्च 1976</strong>&nbsp;में प्रदेश के बिलासपुर जिला के&nbsp;<strong>कलोल बकैण</strong>&nbsp;गांव में हुआ। उनकी प्रारम्भिक शिक्षा गांव के स्कूल में ही हुई, लेकिन उनकी आँखों में फौज में ही जाने का सपना बसता था। संजय कुमार के चाचा फौज में थे और उन्होंने 1965 में पाकिस्तान के ख़िलाफ़ लड़ाई लड़ी थी।</p>

<h4><strong>साहस और निष्ठा के लिए देश के सर्वोच्च सम्मान से सम्मानितः-</strong></h4>

<p>संजय उस समय महज 23 साल के थे, जब उनको उनके साहस और निष्ठा के लिए देश के सर्वोच्च सम्मान परमवीर चक्र से सम्मानित किया गया। इस युद्ध में चार बहादुर सैनिकों को परमवीर चक्र से सम्मानित किया गया, जिनमें दो अधिकारी और दो जवान शामिल थे। इन चार सौभाग्यशाली सेनानियों में दो तो वीरगति को प्राप्त हो गए, जिनमें कैप्टन विक्रम बत्रा भी एक थे।</p>

<p>4 जुलाई 1999 में कारगिल युद्ध के दौरान जम्मू और कश्मीर की 13वीं बटालियन के सदस्य के रूप में मौशकोह घाटी में एरिया फ्लैट टाॅप पर कब्जा करने वाली एक टीम का प्रमुख हिस्सा थे। उस क्षेत्र पर को पाकिस्तानी सैनिकों ने कब्जा जमा रखा था। चट्टानों को पार करने के बाद टीम पर लगभग 150 मीटर की दूरी से एक दुश्मन बंकर ने गोलियां चलानी शुरू कर दी और टीम को रोक दिया गया।</p>

<p>शुरूआत में संजय और उनकी टीम अपने मिशन में कामयाब नहीं हुए। लेकिन, सेना ने 5 जून 1999 को सुबह होने से पहले अंतिम अटैक करने की ठानी और यह संजय के जीवन का अहम पल था, जब उनको अटैक का नेतृत्व करने के लिए कहा गया।</p>

<p>संजय ने स्थिति और उसके दुष्परिणामों को जानते हुए इस मौके&nbsp;को न गंवाते हुए दुश्मनों के बंकर की ओर बढ़ना शुरू किया। तभी अचानक दो गोलियां उनके सीने और बाजू में जा लगी और वे लहुलूहान हो गए। गोलियां लगने से खून में लथ-पथ होने बावजूद उन्होंने रूकने की बजाय उन्होंने आगे बढ़कर दुश्मनों को मार गिराया उनके इस आश्चर्यचकित कर देने वाले साहस से प्रेरित होकर बाकी पलटन भी वहां पहुंच गई और फतेह हासिल की।</p>

<h4><strong>सेना में जाने से पहले थे टैक्सी ड्राइवर थे संजयः- &nbsp;</strong></h4>

<p>संजय कुमार का सपना बचपन से ही सेना में भर्ती होने का था। मैट्रिक पास करने के तुरंत बाद संजय ने इधर-उधर से यह पता करना शुरू कर दिया कि उसे फौज में कैसे जगह मिल सकती है। सेना में जाने से पहले उन्होंने दिल्ली में टैक्सी ड्राइवर के तौर पर काम किया था। उनको सेना में शामिल होने से पहले तीन बार अस्वीकार किया गया था और अंत में 4 जून 1996 में उनको सेना में शामिल कर लिया गया था।</p>

<p>संजय कुमार आज भी 26 जनवरी की परेड में हर साल हिस्सा लेते है l संजय कुमार जैसे सैकड़ों हिमाचली युवा आज भी देश की सेवा में सेना, वायुसेना, नेवी, BSF, CRPF, ITBP आदि में तैनात हैl देश की रक्षा के लिए आज भी ये जवान बॉर्डर पर अपनी सेवाएं दे रहे हैं।</p>

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