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एक झील जहां से बर्फ की परत हटते ही कांप जाती है रूह

समाचार फर्स्ट डेस्क |

 हमारे देश में कई ऐसी जगहें हैं जो रहस्य बनी हुई हैं। इनका रहस्य आज तक कोई नहीं सुलझा पाया है। ऐसी ही एक रहस्यमयी जगह है ‘रूपकुंड झील’। यह झील उत्तराखंड में है और समुद्रतल से करीब 16,500 फीट की उंचाई पर हिमालय के गर्भगृह में स्थित है। वीरान वादियों में स्थित यह पत्थर और बर्फ के गलेशियरों से घिरी यह झील अपने आप में कई रहस्यों को समेटे हुए है। यहां पर जब बर्फ पिघलती है तो करीब 600 के आसपस कंकाल के सामने दिखाई देते हैं।

मान्यता है कि एक बार एक राजा जिसका नाम जसधावल था, नंदा देवी की तीर्थ यात्रा पर निकला। उसको संतान की प्राप्ति होने वाली थी, इसलिए वो देवी के दर्शन करना चाहता था। स्थानीय पंडितों ने राजा को इतने भव्य समारोह के साथ देवी दर्शन जाने को मना किया, लेकिन राजा नहीं माना। इस तरह के जोर-शोर और दिखावे वाले समारोह से राजा को देवी के कोप का शिकार होना पड़ा। देवी ने सबको मौत के घाट उतार दिया। राजा, उसकी रानी और आने वाली संतान को सभी के साथ खत्म कर दिया गया। मिले अवशेषों में कुछ चूड़ियां और अन्य गहने मिले जिससे पता चलता है कि समूह में महिलाएं भी मौजूद थीं। यह कंकाल लगभग 9वीं सदी के बताए जाते हैं।

सबसे खतरनाक क्षेत्रों में शुमार

इस बर्फीली झील के आस-पास और बेहद दुर्गम इलाके में होने की वजह से यहां पहुंचना भी आसान नहीं है। ये इलाका हिमालय के सबसे खतरनाक क्षेत्रों में शुमार है। यह बर्फीली झील ज्यूंरागली पहाड़ी के नीचे मौजूद है। इस झील का आकार अंडे के समान है और इसकी गोलाई लगभग 150 फीट है। इस रहस्यमय झील पर जमी बर्फ की परत साल में केवल तीन-चार महीने के लिए हटती है और जब यह हटती है तो खुलते हैं इन वादियों के राज।

ये कंकाल सन् 1942-43 में वन विभाग की टीम को मिले थे। यह टीम यहां विशेष प्रकार के जंगली फूल की तलाश में पहुंची, लेकिन वहां कंकाल देख कर दंग रह गई। इसके बाद शुरू हुई कंकालों की पड़ताल। एक शोध से खुलासा हुआ था कि इन लोगों की मौत घातक तूफान की वजह से हुई थी। खोपड़ियों के फ्रैक्चर के अध्ययन के बाद पता चला है कि मरने वाले लोगों के ऊपर क्रिकेट की गेंद जैसे बड़े ओले गिरे थे।

यह झील 2 मीटर गहरी है और हर साल कई ट्रैकर्स और श्रद्धालुओं को अपनी ओर आकर्षित करती है। रूपकुंड में 12 साल में एक बार होने वाली नंदा देवी राज जात यात्रा में भाग लेने के लिए श्रद्धालु दूर-दूर से यहां आते हैं। इस दौरान देवी नंदा की पूजा की जाती है। कहते हैं कि लोगों के लगातार आने-जाने से अब यह शव भी कम दिखाई देते हैं।