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श्री नैना देवी मंदिर में है दुनिया का पहला ज्वलंत कुंड, यहां जितना भी करो हवन नहीं बचता कोई शेष

आज शारदीय नवरात्रि का छठा दिन मां कात्यायनी को समर्पित है. आज के दिन मां कात्यायनी की आराधना की जाती है. ऐसे में हिमाचल प्रदेश के विश्वविख्यात शक्तिपीठों में शारदीय नवरात्रि के पावन मौके पर श्रद्धालुओं का तांता लगा हुआ है. ऐसे में समाचार फर्स्ट आपको विश्वविख्यात शक्तिपीठ श्री नैना देवी मंदिर के दर्शन करवाएगा. साथ ही मंदिर से जुड़ी कहानियों और चमत्कारों को बताएगा.

श्री नैना देवी मंदिर में चमत्कारी हवन कुंड:

विश्व विख्यात शक्तिपीठ श्री नैना देवी जी में दिन रात इस प्राचीन कुण्ड में हवन चलता है परन्तु यह प्राचीन हवन कुण्ड बहुत ही रहस्यमयी और चमत्कारिक है. ये दुनिया का पहला ज्वलंत हवन कुण्ड है जिसमें जितना मर्जी हवन करते जाओ मगर शेष यानि कि राख को बाहर नहीं निकालना पड़ता. धीरे-धीरे सारी राख, विभूति इसी में समा जाती है. हालांकि हैरान करने वाली बात तो ये है कि ये हवन कुण्ड मात्र एक फुट गहरा है और आम दिनों में या नवरात्रों में हर समय यहां हवन चलता है. ट्रक भर-भर कर लकड़ी के आते हैं परन्तु इसकी राख कहां समा जाती है ये एक रहस्य है.

1200 सालों से जल रहा है ये हवन कुंड…

बताया जा रहा है कि मां नैना देवी के चमत्कार के चलते ही आज के इस वैज्ञानिक युग में भी लोग दैवीय शक्तियों को मानते हैं और उन पर विश्वास करते हैं. यह कुंड लगातार 1200 सालों से दिवाली के उपलक्ष्य पर लगातार दो दिन दुर्गा सप्तशती का हवन यानि सत चंडी महायज्ञ चलता हैं. सालों से ये परम्परा चलती आ रही हैं जिसे आज भी यहां के पुजारी पीढ़ी दर पीढ़ी निभाते आ रहे हैं. यहां के 200 से अधिक पुज्री दिवाली के दिन हवन करते हैं.

इस जगह पर गिरी थी सती की आंखें:

बता दें कि यह स्थान एक सिद्ध पीठ के नाम से भी जाना जाता है. कथाओं के अनुसार, देवी सती ने खुद को यज्ञ में जिंदा जला दिया, जिससे भगवान शिव व्यथित हो गए. उन्होंने सती के शव को कंधे पर उठाया और तांडव नृत्य शुरू कर दिया. इससे स्वर्ग में सभी देवता भयभीत हो गए. इस पर उन्होंने भगवान विष्णु से अपने चक्र से सती के शरीर को 51 टुकड़ों में काटने का आग्रह किया. भगवान विष्णु के सती के शरीर को काटने पर उनकी आंखे इस जगह पर गिरी थी, जिसके बाद से ही यहां का नाम नैना देवी पड़ा.

 

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