रूस और यूक्रेन अब युद्ध के मुहाने पर आकर खड़े हैं। रूस ने बड़ी संख्या में टैंक, मिसाइल और जवान तैनात कर दिए हैं वहीं यूक्रेन की सीमा पर भी 1.30 लाख से ज्यादा सैनिक तैनात हैं। सोमवार को अमेरिका ने कहा कि उसे विश्वास नहीं हो रहा है कि रूस के राष्ट्रपति इस तरह का कदम उठाएंगे। पेंटागन के प्रवक्ता जॉन किरबी ने कहा कि इस संकट को देखते हुए रक्षा मंत्री यूरोप जाने की योजना बना रहे हैं।
किरबी ने कहा, ‘हमें अब भी विश्वास नहीं हो रहा है कि युद्ध को लेकर अंतिम फैसला ले लिया गया है। किसी भी दिन युद्ध शुरू हो सकता है। हो सकता है रूस कोई चेतावनी दे या फिर यह भी हो सकता है कि बिना वॉर्निंग ही हमला हो जाए। फिर भी मेरा मानना है कि डिप्लोमेसी बंद नहीं होनी चाहिए और युद्ध को टालने के यही एक तरीका है।’
यूक्रेन से तनातनी के बीच चीन रूस का साथ दे रहा है। इस बात को लेकर भी अमेरिका ने कहा कि यह बेहद खतरनाक होने वाला है। किरबी ने कहा, ‘अगर इस तरह चीन चालाकी दिखाता है और वह रूस का समर्थन करता है तो और ज्यादा अस्थिरता आएगी और यूरोप में सुरक्षा की स्थितियां गंभीर हो जाएंगी। इसका असर पूरे यूरोप पर पड़ेगा।’
चीन रूस का समर्थन इसलिए कर रहा है क्योंकि वह पश्चिमी यूरोप में अपना फायदा तलाश रहा है। जानकारों का कहना है कि रूस और चीन के बीच संबंध आगे बढ़ रहे हैं। चीन का मानना है कि NATO अमेरिका के नेतृत्व में रूस और चीन जैसे देशों के खिलाफ काम कर रहा है। कुछ जानकारों का यह भी कहना है कि स्टालिन और माओ के दिनों से ही रूस और चीन में वैचारिक करीबी रही है। रूस और चीन दोनों ही देशों की पश्चिमी देशों के साथ तनाव है।
चीन चाहता है कि रूस के साथ मिलकर वह अमेरिका को कई मोर्चों पर पीछे धकेले। अगर तनाव के बीच अमेरिका रूस पर प्रतिबंध लगाता है तब भी चीन उसका मददगार बनकर खड़ा होगा। अगर युद्ध के बीच अमेरिका का ध्यान बंटेगा तब व्यापारिक स्तर पर भी चीन फायदा उठाने की कोशिश करेगा।