देश की सबसे पुरानी राजनीतिक पार्टी भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस पर नव निर्वाचन अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे की पकड़ धीरे-धीरे बड़ रही है. 80 वर्षीय कन्नड़ नेता की छवि अगले साल 2023 में पार्टी के 88वें अध्यक्ष के रूप में मुखर होने की उम्मीद है.जब उनके गृह राज्य कर्नाटक में पार्टी विधानसभा चुनावों में बेहतर प्रदर्शन कर सकेगी.
हांलाकि कर्नाटक में चुनावी जीत डीके शिवकुमार और सिद्धारमैया के साथ-साथ नई कांग्रेस कार्य समिति और नए पार्टी पदाधिकारियों द्वारा पार्टी में खड़गे युग को भी चिन्हित करेगी. माना जाता है कि खड़गे द्वारा पार्टी पर नियंत्रित स्वायत्तता मई 2024 तक जारी रह सकता है, जब 18वीं लोकसभा के चुनाव होगें. उस चुनाव के परिणाम और कांग्रेस का प्रदर्शन ही पार्टी में खड़गे के लिए आगे की दशा तय करेगा.
इसी के साथ मौजूदा कांग्रेस का कार्यालय भले ही इंदिरा, राजीव या सोनिया गांधी द्वारा संचालित पार्टी दफ्तर जितना वजनदार ना हो, लेकिन गैर-गांधी अध्यक्षों यानी पीवी नरसिन्हा राव और सीताराम केसरी की तुलनी में खड़गे से अधिक निर्णायक तरीके से कार्य करने की उम्मीद की जा रही है. इस मामले में, फिलहाल खड़गे का पलड़ा भारी है. उन्होंने 4 नेताओं को अपने समन्वयक के रूप में नियुक्त किया है.
वहीं, खड़गे के 4 समन्वयक की पंसद में सैयद नासिर हुसैन, गुरप्रीत सिंह सप्पल, प्रणव झा और गौरव पांधी शामिल हैं. नसीन और सप्पल से कांग्रेस संगठन और प्रशासन के मामलों में खड़गे की आंख और कान के रूप में कार्य करने की उम्मीद है. जबकि झा और पांधी को मुख्यधारा की मीडिया और सोशल मीडिया पर आजमाया और परखा जा चुका है. माना जा सकता है कि इन चार लोगों की नियुक्ति से कांग्रेस के कई दिग्गजों की नाराजी और परेशानी बढ़ सकती है.