हिंदू धर्म में कृष्ण जन्माष्टमी का खास महत्व है। पूरे देश में ये पर्व बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है। आइए जन्माष्टमी के पवित्र अवसर पर जानते हैं कि कृष्ण भगवान और राधा ने प्यार होने के बावजूद भी शादी क्यों नहीं की थी?
जब भी प्रेम की मिसाल दी जाती है तो श्रीकृष्ण-राधा के प्रेम का नाम सबसे ऊपर लिया जाता है। राधा-श्रीकृष्ण के प्रेम को जीवात्मा और परमात्मा का मिलन कहा जाता है। सदियों से पीढ़ी दर पीढ़ियां राधा-कृष्ण की प्रेम कहानी पढ़ती चली आ रही हैं लेकिन जब भी हम राधा-श्रीकृष्ण की प्रेम कहानी सुनते हैं तो मन में यही सवाल आता है कि श्रीकृष्ण ने राधा से विवाह क्यों नहीं किया? इसके पीछे कई तरह की व्याख्याएं दी जाती हैं। आइए जानते हैं उन सभी कहानियों के बारे में…
इसलिए कृष्ण ने राधा से नहीं किया था विवाह
कुछ विद्वानों के मुताबिक, राधा-कृष्ण की कहानी मध्यकाल के अंतिम चरण में भक्ति आंदोलन के बाद लोकप्रिय हुई। उस समय के कवियों ने इस आध्यात्मिक संबंध को एक भौतिक रूप दिया। प्राचीन समय में रुक्मिनी, सत्यभामा, समेथा श्रीकृष्णामसरा प्रचलित थी जिसमें राधा का कोई जिक्र नहीं मिलता है। 3228 ईसा पूर्व देवकी पुत्र श्रीकृष्ण का जन्म हुआ। कुछ समय तक वह गोकुल में रहे और उसके बाद वृंदावन चले गए थे।
श्रीकृष्ण राधा से 10 साल की उम्र में मिले थे। उसके बाद वह कभी वृंदावन लौटे ही नहीं। इसके अलावा कहीं यह जिक्र भी नहीं मिलता है कि राधा ने कभी द्वारका की यात्रा की हो। दक्षिण भारत के प्राचीन ग्रन्थों में राधा का कोई उल्लेख नहीं मिलता है।
राधा ने श्रीकृष्ण से विवाह करने से किया था इनकार-एक मत यह भी है कि राधा ने श्रीकृष्ण से विवाह करने से मना कर दिया था क्योंकि उन्हें लगता था कि वह महलों के जीवन के लिए उपयुक्त नहीं हैं। राधा एक ग्वाला थीं, जबकि लोग श्रीकृष्ण को किसी राजकुमारी से विवाह करते हुए देखना चाहते थे। श्रीकृष्ण ने राधा को समझाने की कोशिश की लेकिन राधा अपने निश्चय में दृढ़ थीं। राधा-श्रीकृष्ण के विवाह नहीं करने के पीछे एक व्याख्या ऐसी भी की जाती रही है।
एक अन्य प्रचलित व्याख्या के मुताबिक, राधा ने एक बार श्रीकृष्ण से पूछा कि वह उनसे विवाह क्यों नहीं करना चाहते हैं? तो भगवान श्रीकृष्ण ने राधा को बताया कि कोई अपनी ही आत्मा से विवाह कैसे कर सकता है? श्रीकृष्ण का आशय था कि वह और राधा एक ही हैं। उनका अलग-अलग अस्तित्व नहीं है।
राधा को यह एहसास हो गया था कि श्रीकृष्ण भगवान हैं और वह श्रीकृष्ण के प्रति एक भक्त की तरह थीं। वह भक्तिभाव में खो चुकी थीं, जिसे कई बार लोग भौतिक प्रेम समझ लेते हैं। इसलिए कुछ का मानना है कि राधा और श्रीकृष्ण के बीच विवाह का सवाल पैदा ही नहीं होता है, राधा और श्रीकृष्ण के बीच का रिश्ता एक भक्त और भगवान का है। राधा का श्रीकृष्ण से अलग अस्तित्व नहीं है। विवाह के लिए दो लोगों की आवश्यकता होती है।
समाज आया आड़े?
कुछ लोग इसकी इस तरह से भी व्याख्या करते हैं कि सामाजिक नियमों ने राधा-कृष्णा की प्रेम कहानी में खलनायक की भूमिका निभाई। राधा और श्रीकृष्ण की समाजिक पृष्ठभूमि उनके विवाह की अनुमति नहीं देती थी।
राधा को ठीक तरह से समझने के लिए रस और प्रेम के रहस्य को समझना होगा। ये आध्यात्मिक प्रेम की आनंददायक अनुभूति है। एक व्याख्या के अनुसार, कृष्ण और राधा ने बचपन में खेल-खेल में शादी की थी जैसे कि कई बच्चे शादी का खेल खेलते हैं, लेकिन असलियत में दोनों का विवाह कभी नहीं हुआ। वैसे भी उनका प्यार वैवाहिक जीवन के प्यार से ज्यादा स्वाभाविक और आध्यात्मिक था।
श्रीकृष्ण और राधा एक दूसरे रूप से आत्मीय तौर पर जुड़े हुए थे इसीलिए हमेशा उन्हें राधा-कृष्णा कहा जाता है, रुक्मिनी-कृष्णा नहीं। रुक्मिनी ने भी श्रीकृष्ण को पाने के लिए बहुत जतन किए थे। वह अपने भाई रुकमी के खिलाफ चली गई थीं। रुक्मिनी भी राधा की तरह श्रीकृष्ण से प्यार करती थीं, रुक्मिनी ने श्रीकृष्ण को एक प्रेम पत्र भी भेजा था कि वह आकर उन्हें अपने साथ ले जाएं।
प्रेम पत्र में रुक्मिनी ने 7 श्लोक लिखे थे। रुक्मिनी का प्रेम पत्र श्रीकृष्ण के दिल को छू गया और उन्हें रुक्मिनी का अनुरोध स्वीकार करना पड़ा। इस तरह रुक्मिनी श्रीकृष्ण की पहली पत्नी बन गईं। वहीं, दूसरी तरफ श्रीकृष्ण और राधा को विवाह की आवश्यकता ही नहीं थी।
राधा श्रीकृष्ण के बचपन का प्यार थीं। श्रीकृष्ण जब 8 साल के थे तब दोनों ने प्रेम की अनुभूति की। इसके बाद पूरी जिंदगी श्रीकृष्ण से नहीं मिलीं। राधा श्रीकृष्ण के दैवीय गुणों से परिचित थीं। उन्होंने जिंदगी भर अपने मन में प्रेम की स्मृतियों को बनाए रखा। यही उनके रिश्ते की सबसे बड़ी खूबसूरती है।
क्या श्राप ने राधा-कृष्ण का नहीं होने दिया मिलन?
ब्रह्मवैवर्त पुराण के अनुसार, पृथ्वी पर आने से पहले राधा की एक बार कृष्ण की सेविका श्रीदामा से बहस हो गई थी। राधारानी क्रोधित हो गईं और श्रीदामा को राक्षस के रूप में पैदा होने का श्राप दे दिया। बदले में श्रीदामा ने भी राधा को श्राप दे दिया कि वह एक मानव के रूप में जन्म लेंगी और अपने प्रियतम से 100 साल के लिए बिछड़ जाएंगी। उसके बाद तुम्हें फिर से श्रीहरि की संगति प्राप्त होगी और तुम गोकुल को वापस लौटोगी।
ऐसी भी मान्यता है कि श्रीकृष्ण ने राधा से इसलिए विवाह नहीं किया क्योंकि वह साबित करना चाहते थे कि प्रेम और विवाह दो अलग-अलग चीजें हैं। प्रेम एक नि:स्वार्थ भावना है जबकि विवाह एक समझौता या अनुबंध है। एक मत के मुताबिक, श्रीकृष्ण ने राधा से इसलिए विवाह नहीं किया ताकि मानव जाति को बेशर्त और आंतरिक प्रेम को सिखाया जा सके। राधा-श्रीकृष्ण का संबंध कभी भी भौतिक रूप में नहीं रहा बल्कि वह बहुत ही आध्यात्मिक प्रकृति का है। पौराणिक कथाओं में प्रचलित अन्य कथाओं की तुलना राधा-कृष्ण से नहीं की जा सकती है।
हालांकि राधा-कृष्ण के प्रेम की कितनी भी व्याख्याएं क्यों ना कर ली जाए, सब कम ही है। उनका प्रेम हमेशा मानव जाति के लिए आध्यात्मिक प्रकाश की तरह जीवित रहेगा।