हिमाचल प्रदेश में भूस्खलन, फ्लैश फ्लड और पहाड़ों के दरकने और गिरने की घटनाएं इतनी ज्यादा क्यों हो रही हैं? हालिया दिनों में हिमालय क्षेत्र में पहाड़ दरकने की कई रिपोर्ट्स आई हैं। हिमाचल में भूस्खलन की घटनाओं में बढ़ोतरी हुई है। लेकिन ऐसा क्यों हो रहा है? इसे लेकर वैज्ञानिकों का क्या मानना है? हम आपको बताते हैं।
एक्सपर्ट के अनुसार इसकी वजह संवेदशनशील हिमालयी इलाकों में इंसानों की गतिविधियों का बढ़ना है। हिमाचल के पहाड़ उम्र के हिसाब से युवा हैं। ये अभी मजबूत हो रहे हैं। ऐसे में इन पर हो रहे विकास कार्यों की वजह से दरारें पड़ती हैं, जिससे पहाड़ों का भार संतुलन बिगड़ता है। बारिश के मौसम और बारिश के बाद इनकी नींव कमजोर होकर गिरने लगती है।
हाइड्रोपावर प्रॉजेक्ट्स, सुरंगों और सड़कों के निर्माण के लिए तेज विस्फोट, ड्रिलिंग आदि से पैदा होने वाला कंपन इन पहाड़ों की ऊपरी सतह और पत्थरों को हिला देता है। इतना ही नहीं सड़कों के निर्माण के समय उच्च गुणवत्ता की दीवारें नहीं बनाई जाती। ना ही पत्थरों को रोकने के लिए मजबूत जाल बिछाए जाते हैं। कम से कम इनके सहारे हादसे की तीव्रता को कम किया जा सकता है।
नासा की फरवरी 2020 की एक स्टडी बताती है कि हिमालय क्षेत्र में भारी बारिश और जलवायु परिवर्तन क्षेत्र में भूस्खलन में बढ़ोतरी का कारण बन सकती है। स्टडी टीम को पता चला था कि तापमान में हो रही बढ़ोतरी से चीन और नेपाल के बॉर्डर इलाके में भूस्खलन की गतिविधि बढ़ सकती है। क्षेत्र में विशेष रूप से ग्लेशियर और ग्लेशियल झील वाले क्षेत्र में अधिक लैंडस्लाइड होने से बाढ़ जैसी आपदा आ सकती है और इसका असर सैकड़ों किलोमीटर दूर पड़ सकता है।
इस स्टडी में पिछले कई सालों के डेटा को समझकर लैंडस्लाइड्स के रुझानों का आंकलन किया गया है। स्टडी में बताया गया है कि भविष्य में सामान्य से अधिक बारिश होने की संभावना है क्योंकि जलवायु गर्म होती जा रही है। स्टडी में इस बात पर जोर दिया गया है कि चीन और नेपाल के बॉर्डर इलाके में लैंडस्लाइड्स में 30 से 70 फीसद तक की बढ़ोतरी देखी जा सकती है।
हकीकत तो ये है कि हिमालयी क्षेत्र में भूस्खलन की घटना अब रोजमर्रा की बात हो चुकी है। सामाजिक एवं पर्यावरणीय दुष्परिणामों की चिंता किये बगैर तीव्र गति से सड़क निर्माण और सड़कों के चौड़ीकरण का कार्य संपन्न किया जा रहा है। डायनामाइट के बार-बार इस्तेमाल, गलत तरीके से ढलान की कटाई और अंधाधुंध तरीके से मलबे के निस्तारण ने एक ऐसी स्थिति उत्पन्न कर दी है जो लोगों की जिंदगी खतरे में डाल रही है। अब सवाल ये है कि क्या विकास कार्यों के नाम पर पर्यावरण से खिलवाड़ किया जा रहा है ? अगर ऐसा है तो सरकारों को इस ओर ध्यान देने की जरूरत है।