हर लोकसभा की अपनी-अपनी चुनौतियां हैं, पर मंडी के सांसद की चुन्नौतियां इस लोकसभा क्षेत्र जितनी ही बड़ी हैं। हिमाचल के आधे हिस्से में फैले इस संसदीय क्षेत्र में उम्मीदवारों को सुंदरनगर से लाहौल और भरमौर से किन्नौर तक के लोगों की उम्मीदों के ऊपर खरा उतरना पड़ता है।
इस संसदीय क्षेत्र में कुछ इलाके इतने दुर्गम हैं कि आज भी लोगों को शिक्षा, स्वास्थ्य और बाकि मूलभूत सुविधाओं के लिए मीलों पैदल चलना पड़ता है। चिनाब, व्यास और सतलज जैसी विशाल नदियों के कारण आज भी बंजार, उदयपुर, स्पीति, पांगी और किन्नौर के कई गांव सड़कों का इंतजार कर रहे हैं। यही कारण है कि इस संसदीय क्षेत्र में आने वाले अधितकतर जिलों में साक्षरता दर प्रदेश की साक्षरता दर 83.78 प्रतिशत से कम ही है।
वहीं स्वास्थ्य सेवाओं की बात करें तो हाल ही में बंजार तहसील के सिउंड गांव की एक गर्भवती महिला को 5 किलोमीटर कुर्सी पर बैठा कर अस्पताल पहुंचाना पड़ा था। ऐसा ही वाक्या सैंज घाटी के शक्ति गांव में भी हुआ था।
जनजातीय मुद्दों को लेकर भी यहां के लोकसभा सांसद को सजग रहना पड़ता है। अगर वे इस मुद्दे पर सक्षम न रहें तो किन्नौर, लाहौल स्पीति और पांगी के कल्चर की नुमाइंदगी देश की संसद में कौन करेगा ? सामरिक दृष्टि से भी ये क्षेत्र बहुत महत्वपुर्ण है।
और तो और जनजातिय क्षेत्रों में कम जनसंख्या होने के कारण इन इलाकों में महामारियों के कारण आबादी खत्म होने का डर हमेशा रहता है। कोरोना काल में भी इस समस्या का सामना करना पड़ा था। पांगी, लाहौल स्पीति और किन्नौर में बाहरी लोगों के आने पर रोक तक लगानी पड़ी थी। वहीं
सामरिक दृष्टी से भी ये संसदीय क्षेत्र अहम है। आपको बता दें कि प्रदेश की 260 किलोमीटर लंबी चीनी सीमा इसी संसदीय क्षेत्र में पड़ती है। यहीं से होकर मंडी मनाली लेह रोड गुजरता है और प्रस्तावित बिलासपुर मंडी लेह रेलमार्ग का अधिकतर हिस्सा भी इसी लोकसभा क्षेत्र से होकर जाएगा।
चीन के साथ बढ़ती सरगर्मियों का यहां पर एकदम से प्रभाव पड़ता है। चुनौतियां तो बहुत हैं पर यहां के वाशिंदों को अभी भी उस सांसद की तलाश है जो कल्चर से लेकर चीन के मुद्दों को देश के सामने रख सके।