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डॉ. रीना रवि मालपानी द्वारा श्रावण सोमवार पर लिखित लेख “शिव तत्व की विशेषता”

                                                                        “शिव तत्व की विशेषता

हमारे पुराणों में वर्णित है कि श्रावण मास शिव की प्रसन्नता एवं कृपा प्राप्ति के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है। शिव को जलधारा अति प्रिय है और सावन के महीने में स्वयं इन्द्रदेव प्रभु की आराधना में तत्पर दिखाई देते है।

शिव को सभी देवों में महादेव की संज्ञा प्रदान की गई है, इसका तात्पर्य है कि शिव में कुछ ऐसी अनूठी विशेषताएँ है जो अन्यत्र दुर्लभ है। भूतभावन भोलेनाथ की इन्हीं विशेषताओं पर आज हम दृष्टि डालेंगे।

ध्यान की उत्कृष्ट पराकाष्ठा:- शिव स्वरूप मोहमाया के मिथ्या रूप को जानते है, इसलिए सदैव ध्यान की प्रेरणा देते है। जीवन का अंतिम ध्येय शांतचित्त स्वरूप होना है। आशुतोष जो केवल जलधारा से प्रसन्न हो जाए, जो द्रव्य हर किसी के लिए सहजता से उपलब्ध हो जाए वही शिव स्वीकार कर मनोवांछित फल प्रदान करते है।

प्रत्येक आडंबर से मुक्त जगतगुरु जीवन के सत्य से साक्षात्कार कराते है। शिव संदेश देते है की हम स्वयं पर ध्यान केन्द्रित करके उन्नति के आयाम को खोज सकते है। स्वयं के आनंद स्वरूप को पहचान सकते है। हमें अपनी ऊर्जा को स्वयं के भीतर ही बढ़ाना है। स्वयं में ही आनंद के क्षण को खोजना है।

सत्य का साक्षात्कार स्वरूप:- भोलेनाथ के ललाट पर त्रिपुंड तिलक सुशोभित होता है। यह त्रिलोक और त्रिगुण:- सतोगुण, रजोगुण और तमोगुण को बताता है। त्रिपुंड चंदन या भस्म का होता है। इसी त्रिपुंड में भोलेनाथ का त्रिनेत्र सुशोभित होता है, इसी कारण शिव को त्रिलोचन कहा जाता है।

शिव का तीसरा चक्षु सदैव जागृत रहता है परंतु बंद अवस्था में, ऐसी मान्यता है की यदि शिव का तीसरा नेत्र खुल गया तो शिव प्रलयंकर का रूप धारण कर लेंगे जिसके कारण सृष्टि का विनाश हो जाएगा। उमानाथ के हाथो में स्थित डमरू एक वाद्य यंत्र है एवं भोलेनाथ के एक स्वरूप नटराज को संगीत और नृत्य विधा का देव भी माना जाता है। त्रिशूल शिव का अचूक एवं अमोघ अस्त्र है यह भी त्रिगुण:- सतोगुण, रजोगुण एवं तमोगुण का प्रतिनिधित्व करता है।

ऐसी मान्यता है की त्रिशूल तीनों कालों भूतकाल, वर्तमानकाल एवं भविष्यकाल का भी प्रतीक है। जटाधारी विशाल आकाश का प्रतीक है। इसी जटाधारी में आदिनाथ शिव ने कल्याणदायिनी गंगा को धारण कर रखा है। शिव बाघंबर एवं हस्ति चर्म को वस्त्र के रूप में धारण करते है।

बाघ हिंसा का एवं हाथी अभिमान को परिलक्षित करता है और महादेव इसको धारण कर हिंसा और अभिमान को दबाने की शिक्षा देते है। जगद्गुरू अपने शरीर पर भस्म लगाते है जो कि मोह और आकर्षण से विरक्ति को बताती है। मानव देह तो पंचतत्वो से निर्मित है और इस नश्वर शरीर का अंत भी इन्ही पंचतत्वो में विलीन होकर हो जाता है। शिव भस्म धारण कर संदेश देते है की मनुष्ययोनि का अंतिम लक्ष्य ईश्वर की आराधना करके इसी रूप में परिवर्तित होना है।

आनंद स्वरूप का प्रतिबिंब:- शिव की सबसे अनूठी विशेषता उनका आनंद स्वरूप है। पूरी दुनिया की मोहमाया एवं आकर्षण को छोडकर वे विरक्त स्वरूप में आनंद की खोज करते है, क्योंकि जीवन की सच्ची उत्कृष्टता तो आनंद की प्राप्ति में निहित है। भोले भण्डारी अपने भक्तों को भी संतोषी स्वभाव अपनाने की प्रेरणा देते है। वे छल-कपट से दूर रहकर सदैव अपने इष्ट की आराधना में ध्यानरत रहते है एवं सदैव नीलकंठ बनकर दूसरों को भी आनंदमयी जीवन प्रदान करते है।

आडंबर रहित जीवन:- शिव की वेषभूषा हो या उनका रहने का स्थान, प्रत्येक रूप में आशुतोष आडंबर रहित दिखाई देते है। उनके जीवन में मन की सच्चाई और पावन हृदय की प्रधानता हमें दिखाई देती है। भक्त के लिए भी वे एकदम सहज है।

उन्हें कोई विशिष्ट भोग एवं विशिष्ट सामाग्री की आवश्यकता नहीं है। जो आपके पास है उसे पूर्ण निष्ठा एवं भक्ति-भाव से आप समर्पित कर दीजिए। उमापति तो अनायास भी पूजा करने वालों की प्रार्थना को पूरा कर देते है एवं मनुष्ययोनि में मुक्ति का द्वार खोल देते है।

सहजता, सरलता एवं सहृदयता:- शिव की विशालता और सरलता की कोई तुलना नहीं है। प्रभु के लिंग स्वरूप पर यदि कोई एक लौटा जल भी समर्पित कर देता है तो भी शिव अति प्रसन्न हो जाते है और यदि भक्त इतना भी न कर सके तो अपने अंगूठे को लिंग स्वरूप मानकर शिव को आराध ले, उससे भी महादेव प्रसन्न होकर पूजा स्वीकार कर लेते है और इच्छित वर प्रदान कर देते है।

उत्तम प्रेम का निर्वहन:- शिव-शक्ति का प्रेम तो सभी गृहस्थ के लिए वंदनीय है। जब शक्ति स्वरूपा जगदंबा सती ने अपने आप को प्रताड़ित किया तो भोलेनाथ ने अपना धीरज खो दिया और रौद्र रूप धारण कर विध्वंस करने लगे।

वहीं अनंत वर्षों तक प्रेम और भक्ति की राह को स्वीकारते हुए शिव ने शक्ति को प्राप्त किया। सभी देवताओं में सुखी गृहस्थ जीवन के लिए शिव-शक्ति की जोड़ी को ही सर्वश्रेष्ठ माना जाता है क्योंकि उमा ने भी कभी शिव की वेषभूषा एवं जीवन में आडंबर को महत्व नहीं दिया। वे सदैव महादेव के गुणों को ही प्रधान मानती है।

दयालुता को देदीप्यमान स्वरूप:- शिव की आराधना देव, दानव, राक्षस इत्यादि सभी ने की और शिव ने सभी को मनोवांछित फल प्रदान किया। शिव के समान को भी दयालु नहीं है। सिर्फ यह साधक की निष्ठा भक्ति पर निर्भर है की वह किस तरह भोलेनाथ को अपने भावों की माला से ध्याता है। यहाँ तक की शिव मानस पूजा के द्वारा भी शिव की आराधना की जा सकती है।

शिव तत्व की विशेषताएँ अनंत है। शिव का आनंद स्वरूप होना भी हमें सीख देता है कि जीवन की जीवंतता प्रसन्नता में ही निहित है। भक्तवत्सल भूतभावन भोलेनाथ की स्तुति सर्वाधिक सुलभ है। यदि भक्त प्रभु को अपना सर्वस्व मानकर पूर्ण निष्ठा भाव से अपनी मनोकामना महादेव के प्रत्यक्ष रखता है तो उसके भाग्य के कपाट अनायास ही खुल जाते है।

शिव तत्व काल को स्मरण रखने पर भी बल देता है। संतोषी जीवन की सच्चाई को भी उजागर करता है। देने के भाव के महत्व को भी समझाता है। शिव सदैव अन्तर्मन में झाँकने और ध्यान की प्रेरणा देते है। वे बाहरी दुनिया के दिखावे से दूर रहने को हमें प्रेरित करते है। मान-अपमान, मोह-माया, राग-द्वेष इन सब से ऊपर उठकर महादेव हमें सत्य का साक्षात्कार कराते है।

श्रावण मास में शिव की आराधना हमें शिव तत्व को जानने और उसे जीवन में आत्मसात करने की ओर प्रेरणा देती है। हम सभी संसारी सांसरिक बंधनों में फँसे हुए है पर जो प्रत्येक बंधन से मुक्त है वही शिव है। प्रारम्भ, मध्य और अंत सब कुछ शिव है।

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