हिमाचल

मंडी के सुकेत में आज भी है नया अन्न खाने नवान्न अनुष्ठान की परंपरा

पश्चिमी हिमालय की सामाजिक परम्परा देवार्चन एवम् देवोपासना से घनिष्ठ रूप से जुड़ी है। लोक जगत का कोई भी उपक्रम देवाज्ञा के बिना आरम्भ नहीं होता। मंडी जिला की सतलुजघाटी का सुकेत जनपद भी लोक परंपराओं में देवाज्ञा के अनुशीलन की विशिष्ट व्यवस्था से संबद्ध है।
यही कारण है कि यहां के प्रत्येक गांव व घर का अपना स्थान देव, वन देव, कुल देव, क्षेत्र देव  व इष्ट देव है जिनके प्रति लोगों की घनिष्ट कृतज्ञता जुड़ी रहती है। पुण्य तिथि देखकर इस वर्ष गण देव की पूजा-अर्चना के साथ सभी पंज्याणु के ग्रामीणों  नें अपनी अपनी फसल का प्रथम अन्न गण देव को अर्पित किया। डॉक्टर हिमेंद्र बाली का कहना  है कि नव वर्ष का आगमन,नई फसल का घर में उपभोग अथवा पर्व व उत्सव जीवन के हर पड़ाव पर देव का अनुग्रह अपेक्षित रहता है।
सुकेत की प्राचीन राजधानी पांगणा के दक्षिण-पश्चिम में स्थित ऐतिहासिक गांव पंज्याणु में नए अन्न के प्रथम उपभोग से पूर्व नए अन्न को देव के निमित अर्पित करने की परम्परा प्रचलित है। वास्तव में हिमलयी क्षेत्र में नए अन्न को अपने इष्ट देव को अर्पित करने की परंपरा सहस्राब्दियों से चली आ रही है। भौतिक उपभोग से पूर्व नई फसल के पहले अन्न का एक निश्चित भाग देवी या देवता के निमित अर्पित किया जाता है।
सुकेत में आषाढ़ संक्रांति को देव मंदिरों में नई फसल गेहूं का प्रथम भाग देव को अर्पित किया जाता है जिसे  राश या नशरावां कहा जाता है। नई फसल पर अपने इष्ट को प्रथम भाग देने के पीछे यह प्रयोजन रहता है कि घर में अन्न-धन की कमी न हो.साथ ही नये अन्न को ग्रहण करने का अधिकार देव को दिया जाता है जिसकी अनुकम्पा से धरती से अन्न घर तक सुलभ हुआ।
पंज्याणु की ब्राह्मण बस्ती भार्गव परशुराम द्वारा स्थापित बस्ती है जहां सनातन परम्पराएं आज भी विद्यमान हैं। पंज्याणु में नए अन्न के घर में आने पर गांव में स्थापित गण देव के प्रति फसल का प्रथम भाग अर्पित किया जाता है। चूंकि गणपति ऋद्धि-सिद्ध के प्रदाता है।अत: इसी भाव से ही अन्न-धन की वृद्धि के लिये गण देव को नवान्न प्रदान किया जाता है।
पंज्याणु के रमेश शास्त्री का कहना है कि इसी परम्परा में पंज्याणु में स्थित हत्या देवी का मंदिर है जो वंश की संरक्षिका भी है। हत्या देवी के प्रति भी नवान्न इसी प्रयोजन से अर्पित किया जाता है ताकि घर में अन्न धन की प्रचुरता बनी रहे। नवान्न अनुष्ठान में सुहागिनों की पूजा का विधान भी संपन्न किया जाता।
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