हिमाचल की राजनीति में मंडी की भूमिका 1952 से लेकर लगातार अहम रही है. 1952 में जब यहां से जीते पंडित गौरी प्रसाद को मंत्री बनाया गया था तो उनके पास 6 विभाग थे. इसके बाद यहां से जो भी सरकार रही उसमें तीन से चार तक मंत्री रहे हैं. 1993 में तो यहां से वीरभद्र सिंह की सरकार में 6 मंत्री थे. 2017 में मंडी को मुख्यमंत्री मिल गया और सारी पुरानी कसर पूरी हो गई. अब मुख्यमंत्री जिस जिले में रहा हो और वहां एक दम से सत्ता का सूखा पड़ जाए तो उस जिले का क्या हाल होगा,यही बात मंडी में इस समय हो गई है. ऐसा पहली बार होगा कि नई सरकार में मंडी की भागीदारी सबसे कम होगी. अब इसे कैसे बढ़ाया जाएगा यह एक बड़ा सवाल नई सरकार के सामने ख़ड़ा होने वाला है.
सबसे अहम बात तो यह है कि 2017 में मंडी जिले की सभी दस सीटों से कांग्रेस हार कर शून्य हो गई थी. इस बार जहां पूरे प्रदेश में कांग्रेस का प्रदर्शन बढ़िया रहा और कांग्रेस सत्ता तक पहुंच गई मगर मंडी में फिर से वही हाल हुआ. 10 में से महज एक सीट आई और वह भी हमीरपुर संसदीय क्षेत्र के तहत आने वाले धर्मपुर की. अब कांग्रेस के इस किले को जो भाजपा ने पूरी तरह से ध्वस्त कर दिया उसे प्रदेश की सुक्खू सरकार कैसे मजबूत कर पाएगी यह सबसे बड़ी चुनौती होगी, इस पर चिंता व चिंतन करने की जरूरत है. लोक सभा चुनाव सुक्खू सरकार के लिए सबसे पहले इम्तिहान होंगे और उसके लिए अब महज सवा का ही समय बचा है.
ऐसे में मंडी जैसे जिले में पूरी तरह से साफ हो गई कांग्रेस इसे कैसे मजबूत कर पाएगी. यहां से विधायक होते तो उन्हें मंत्री बनाकर यह काम किया जा सकता था. कौल सिंह ठाकुर, प्रकाश चौधरी व सोहन लाल ठाकुर सरीखे बड़े नेता हार गए. दूसरी लाइन वाले नेता भी हार गए. धर्मपुर से चंद्रशेखर जीते जरूर मगर वह भी पहली बार ही विधायक बने हैं यानि कोई बड़स ओहदा मिल जाएगा ऐसी उम्मीद कम ही है.
सुक्खू ने सोमवार को कुर्सी संभाली तो कौल सिंह ठाकुर उनके अंग संग रहे. सुक्खू ने भी उन्हें पूरा सम्मान दिया मगर अब कौल को कैसे ताकत दे पाएंगे यह देखने वाली बात होगी. इतने बड़े नेता को महज किसी बोर्ड या निगम का चेयरमैन बनाना तो सही नहीं होगा कोई बड़ा पद ही उनके लिए तलाश करना होगा. इसके लिए कोई नई भूमिका इजाद करनी होगी. मंडी को ताकत देना सरकार व कांग्रेस संगठन के जहां बहुत जरूरी होगा वहीं यह मजबूरी भी है अन्यथा भाजपा के किले में सेंध कैसे लगाएंगे, लोक सभा चुनाव में कैसे उतरेंगे.
मंडी में चल रही परियोजनाओं को गति कैसे दी जा सकेगी, 175 करोड़ से बन रहे शिवधाम का क्या होगा, 10 हजार करोड़ के प्रस्तावित बल्ह हवाई अड्डे को लेकर क्या करना होगा, अन्य दर्जनों बड़ी परियोजनाओं की गति कैसे आगे बढ़ेगी, इनकी पैरवी कौन करेगा, मजबूत विपक्ष की कितनी बात सुखविंदर सुक्खू मान पाएंगे. यदि कोई काम नहीं किया और निर्माणाधीन परियोजनाओं को बीच में छोड़ दिया तो चुनावों में जनता के बीच कैसे जाएंगे. ऐसे में अब नई सरकार के सामने एक बड़ी चुनौती मंडी को मजबूत करनी की होगी जिसके लिए उसे कोई न कोई रास्ता निकालना ही होगा.