मंडी: हिमाचल प्रदेश विधानसभा चुनाव के इतिहास में यह पहला मौका होगा कि प्रदेश सरकार में मंडी जैसे बड़े ज़िले की हिस्सेदारी सबसे कम होगी। ऐसा प्रदेश में पहली बार हुआ है जब कोई पार्टी दस में से नौ सीटें जीतने के बावजूद भी सत्ता से बाहर हो गई। आमतौर पर मंडी जिला उसी दल के साथ चलता है जो सत्ता के सिहांसन पर विराजमान होता है। और यह भी रिकार्ड रहा है जब भी मंडी में जिस भी दल को नौ से ज्यादा सीटें मिलती है वह सरकार बनाता है। मंगर इस बार मंडी में नया इतिहास बना है।
मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर के गृह जिला में भारतीय जनता पार्टी को दस में से नौ सीटें मिली है। इसके बावजूद पार्टी कुल्लू ,कांगड़ा, सोलन, शिमला, सिरमौर, ऊना और हमीरपुर में भाजपा को उतनी सपफलता नहीं मिल पाई है। जिसके चलते भाजपा रिवाज बदलने के बजाय ताज गवां बैठी। मंडी जिला से सदैव मुख्यमंत्री पद की दावेदारी जताई जाती रही है। जिसमें ठाकुर कर्म सिंह और पं. सुखराम के लगातार प्रयास के बाद आखिरकार 2017 में जयराम ठाकुर मंडी से मुख्यमंत्री बनें। इसके अलावा मुख्यमंत्री न भी होने के बावजूद मंडी जिला का राजनैतिक कद कभी कम नहीं रहा है।
सरकार चाहे कांग्रेस की रही हो अथवा हिविकां-भाजपा गठबंधन की हो। मंडी से हर सरकार में तीन से चार मंत्री, सीपीएस और निगमों व बोर्डों के चेयरमैन बनते रहे हैं। यहां तक कि ठाकुर कर्म सिंह, पं. गौरी प्रसाद, मनसा राम, पं. सुखराम, रंगीला राम राव, पीरू राम, कौल सिंह ठाकुर, गुलाब सिंह, रूप सिंह ठाकुर, दिले राम, नत्तथा सिंह ठाकुर, महेंद्र सिंह, अनिल शर्मा, जयराम ठाकुर, सोहन लाल ठाकुर, टेक चंद डोगरा आदि मंत्री, राज्य मंत्री और सीपीएस जैसे औहदों पर विराजमान रहे हैं। कौल सिंह ठाकुर और गुलाब सिंह ठाकुर तो महत्वपूर्ण औहदों के अलावा विधानसभा अध्यक्ष के गरिमापूर्ण औहदों पर भी रहे हैं।
सरकार कोई भी हो मंडी से दो या तीन मंत्री तो अवश्य ही बनते। सियासी संतुलन के लिए यह जरूरी भी होता यह तभी होता रहा जब सत्ता बदलने के साथ ही मंडी का जनादेश भी पांच साल बदलता रहता था। मगर इस बार जीत-हार के इस मकडज़ाल में मंडी जिला के कांग्रेसी औ भाजपाई बुरी तरह से फंस गए हैं। मंडी जिला से नौ सीटें जीतने के बाद भी भाजपा वाले सत्ता से बाहर हो गए हैं और प्रदेश में कांग्रेस की सरकार बनने के बावजूद कांग्रेस एक सीट पर सिमट गई है। इस बार मंडी वालों का दर्द भी अनोखा है ,पांच साल तक मंडी जिला ने जयराम ठाकुर के रूप में मुख्यमंत्री का पद हासिल तो किया ।
मगर ठीक पांच साल बाद वक्त ने ऐसी करवट बदली कि मंडी जीतने के बाद भी राजनैतिक रूप से सत्ता में जिले की भागीदारी नगण्य रह गई है। ले दे कर उम्मीद की किरण धर्मपुर के युवा विधायक चंद्रशेखर के रूप में ही रह गई है। जिन्हें मंडी के कोटे से शायद मंत्री पद नसीब हो जाएगा। जबकि कांग्रेस की सरकार में मुख्यमंत्री व मंत्री पद के दावेदार वरिष्ठ कांग्रेस नेता कौल सिंह ठाकुर अपने ही सियासी गढ़ में अपने चेले से मात खा गए हैं और दूसरे सशक्त दावेदार प्रकाश चौधरी भी लगातार दूसरी बार चुनाव हार गए हैं। मंडी जिला में भाजपा और कांग्रेस के लिए विधानसभा चुनाव अचंभित करने वाले साबित हुए हैं। दोनों ही दलों के कार्यकर्ता असमंजस की स्थिति में हैं भाजपा वाले जीत का जश्र मनाने के बावजूद भी सरकार में नहीं हैं और कांग्रेस वाले अपनी सरकार बनने के बाद भी मायूस हैं। क्योंकि आजादी के बाद से आज तक सत्ता का केंद्र रहा मंडी जिला चुनाव परिणाम के बाद हाशिए पर चला गया है। अब देखना है कि कांग्रेस की नई सरकार में मंडी जिला का राजनैतिक वजूद किस तरह से बहाल हो पाएगा।
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