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विधानसभा चुनावों के नतीजों से कांग्रेस को मिला ऑक्सीज़न, लेकिन दिल्ली अभी दूर है…??

<p>पांच राज्यों में हुए विधानसभा चुनावों के नतीजे आ चुके हैं। इन पांचों राज्यों में तस्वीर भी साफ हो चुकी है। राजस्थान, मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ में कांग्रेस सरकार बनाने जा रही है। वहीं, तेलंगाना में सत्ता टीआरएस के पास ही रहेगी। पूर्वी राज्य मिजोरम में एमएनएफ की सरकार होगी। इन राज्यों के चुनावी नतीजों पर पूरे देश की नजर थी। कारण, 2019 के लोकसभा चुनाव से पहले ये आखिरी राज्य थे, जहां विधानसभा के चुनाव होने थे औऱ इनके नतीजों से प्रत्यक्ष न सही परोक्ष रुप से लोकसभा चुनाव पर असर डालेंगे।</p>

<p>इन नतीजों के बाद आज देश भर में चर्चा दो ही बातों को लेकर हो रही है कि क्या मोदी सरकार की उल्टी गिनती शुरु हो चुकी है या इन नतीजों का आम चुनाव पर कोई असर नहीं पड़ने वाला। दोनों ही बातों को कहने वालों के पास अपने अपने तर्क हैं। वो सही है या नहीं उस पर आप बहस कर सकते हैं। बावजूद इसके इन नतीजों के बाद किसी निष्कर्ष पर पहुंचने से पहले आपको राज्यवर नतीजों को समझना पड़ेगा।</p>

<p>सबसे पहले हम बात करते हैं पूर्वी राज्य मिजोरम की। मिजोरम में&nbsp; MNF की सरकार बनने जा रही है। यहां पहले कांग्रेस की सरकार थी। मिजोरम से आउट होने के साथ ही कांग्रेस का पूर्वोत्तर से सफाया हो गया है। बीजेपी के नजरिये से देखें तो मिजोरम में उनके पास खोने के लिये कुछ नहीं था।</p>

<p>नये नवेले राज्य तेलंगाना में KCR एक दफे फिर से सत्ता में आए हैं। इसका साफ मतलब है कि अलग राज्य की जो लड़ाई उन्होंने लड़ी उसको आज भी जनता मान रही है। बीजेपी कांग्रेस के लिये जमीनी स्तर पर यहां ज्यादा कुछ था भी नहीं। हालांकि बीजेपी ने यहां जोर जरुर लगाया था, लेकिन जनता ने उन्हें खारिज कर दिया ।</p>

<p>अब बात करते हैं हिंदी हार्ट लैंड के तीन राज्यों की जिन पर ज्यादा लोगों की नजरें थी। इन तीनों राज्यों के नतीजों को देखने के बाद ये तो साफ है कि बीजेपी के लिये ये निराशाजनक है और पार्टी के आत्मचिंतन करने का वक्त है। कांग्रेस पार्टी जरुर नतीजों से गदगद है। जनता ने देश की सबसे पुरानी पार्टी को लंबे वक्त के बाद जश्न का मौका दिया है। यहां एक सवाल जरुर खड़ा होता है कि क्या ये जीत बहुत बड़ी जीत है औऱ इससे हम ये तय कर लें कि मोदी सरकार की वापसी का काउंट-डाउन शुरु हो चुका है।</p>

<p>मैं इन दोनों ही बातों से इत्तेफाक नहीं रखता। पहली ये जीत कहीं से भी बहुत बड़ी जीत नहीं है। दूसरी इन नतीजों से ये तय नहीं किया जा सकता की मोदी सरकार की सत्ता से वापसी का काउंट-डाउन शुरु हो चुका है। मैं अपनी बात को साबित करने के लिये कुछ आंकड़े जरुर आपके सामने रखूंगा। देश ने कई बड़ी जीत देखें है। वो 80 के दशक में इंदिरा का दौर हो या इंदिरा गांधी की हत्या के बाद राजीव का दौर, जिसमें देश ने कांग्रेस को 404 सीटें दे दीं। उसके बाद वर्तमान में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का भी दौर आया जब पहली बार केंद्र में बीजेपी की पूर्ण बहुमत की सरकार बनी। अकेले बीजेपी के 283 सांसद सदन पहुंचे। इसी बार के चुनावों के नतीजों को देखे तो तेलंगाना में TRS और छत्तीसगढ़ में कांग्रेस को मिली जीत को बड़ी जीत कहा जा सकता है।</p>

<p>इन नतीजों को मोदी सरकार के इसीलिये भी खिलाफ नहीं कहा जा सकता, क्योंकि मध्य प्रदेश औऱ छत्तीसगढ़ में राज्य सरकारों के खिलाफ एंटी इंकम्बेंसी थी। दोनों ही राज्यों में 15 साल से एक ही पार्टी औऱ एक ही शख्स आसीन थे। इसके बावजूद मध्य प्रदेश में कांग्रेस अपने दम पर बहुमत भी हासिल नहीं कर पायी।</p>

<p>वहीं राजस्थान में पिछले 25 सालों की परिपाटी इस बार भी दिखी। जहां जनता हर पांच साल में सत्ता बदल देती है। यहां इस बार तो सबसे चर्चित नारा भी था, <span style=”color:#27ae60″><em>&#39;मोदी तुझसे बैर नहीं महारानी तेरी खैर नहीं।&#39;&nbsp;</em></span> राजस्थान के नतीजे को भी देखें तो वसुंधरा राजे के प्रति लोगों की इतनी नाराजगी, हर बार सत्ता बदलने का ट्रेंड होने के बावजूद यहां कांग्रेस बड़ी जीत हासिल नहीं कर पायी। जैसे 2013 में केंद्र की मनमोहन सरकार या उस वक़्त के गहलोत सरकार को लेकर लोगों में गुस्सा था तो उसका असर राजस्थान में दिखा था जब जनता ने 200 में से 163 सीट बीजेपी की झोली में डाल दी थी।</p>

<p>इसीलिये इन नतीजों से मोदी सरकार का भविष्य तय करना थोड़ा जल्दबाजी होगा। हालांकि सत्ता पक्ष और विपक्ष दोनों के लिये ही इन नतीजों में कुछ मैसेज है।&nbsp; विपक्षी पार्टियों को जो टॉनिक चाहिये था वो जरूर इन नतीजों के बाद मिला होगा। मसलन, मोदी शाह की जोड़ी की रणनीति को काटा नहीं जा सकता। ये अब मिथक है। कांग्रेस पार्टी के लिये ये ऑक्सिजन होगा। वहीं बीजेपी को अब तय करना होगा कि 2019 के लिये उनकी लाइन क्या होगी..?? आप बदलाव के नाम पर हमेशा जनता को दुखी नहीं कर सकते। कई बार चुनाव जीतने के लिये लोकलुभावन वादे भी करने पड़ते हैं या जनता आपसे जिन उम्मीदों को लेकर बैठी है और जो वादा सत्ता में आने से पहले आपने किया वो पूरा करना ही होगा। ऐसा नहीं होता है तो 2019 में भी 2004 का रीपिटेशन हो सकता है, जब अटलजी की सरकार की शाइनिंग इंडिया की चमक धुमिल हो गई थी।</p>

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