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विकास के नाम पर पेड़ों की बलि कब तक

पी. चंद |

पहाड़ी प्रदेश हिमाचल में हरे-भरे पेड़ देश की आबो-हवा को तरोताजा बनाएं रखते हैं। मनुष्य जीवन के लिए शुद्ध हवा देने वाले पेड़ों का अस्तित्व  खतरे में है। मनुष्य जान कर भी अनजान है कि पेड़ों के साथ उसके अस्तित्व पर भी खतरा मंडरा रहा है। लेकिन, विकास के नाम पर पेडों की धड़ाधड़ बलि दी जा रही है। कभी सड़कों को चौड़ा करने के नाम पर हज़ारों लाखों हरे-भरे पेड़ों पर आरा चला दिया जाता है तो कभी कंक्रीट की इमारतों के नाम पर पेड़ और पहाड़ों का सीना छलनी किया जा रहा है।

हिमाचल में आजकल राष्ट्रीय उच्च मार्गों के कार्य के चलते हज़ारों पेड़ों को काटा जा रहा है। विकास के नाम पर इस काम का श्रेय लेने की बात कर सरकारें वाहवाही लूटने की कोशिश कर रही हैं लेकिन हकीकत से दूर, विकास और सांस में जरूरी क्या है इसका जबाब किसी के पास नहीं है।

हम विकास विरोधी नही है। लेकिन कम से कम जो पेड़ काटे जा रहे है उनके विकल्प के लिए पेड़ तो लगने चाहिए, सिर्फ लगने ही नही चाहिए बल्कि उनके संरक्षण एवं संवर्धन के लिए भी मापदंड तय होने चाहिए। एक किसान यदि अपने खेत से अपने लिए पेड़ काटता है तो उसको कई तरह की अनुमति लेनी पड़ती है लेकिन, विकास के नाम पर जिस तरह से पेड़ों की बलि दी जाती है उसका हिसाब जनता नहीं मांगती है।