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ये चुनाव नहीं आसान आग का दरिया है पार किसने जाना है

पी. चंद, शिमला |

हिमाचल प्रदेश में चार  नगर निगमों के चुनावों का शोर सुनाई दे रहा है। प्रदेश के सबसे बड़े जिला कांगड़ा में दो नगर निगमों धर्मशाला और पालमपुर, सोलन और मुख्यमंत्री के गृह जिला मंडी में चुनाव प्रचार जोरों पर है। इस बार चुनाव पार्टी चुनाव चिह्न पर हो रहे है। हिमाचल की सियासी फ़िज़ाओं में हलचल बढ़ी हुई है। दोनों ही दलों का भविष्य इन चुनावों पर अधिकतर निर्भर करेगा। भाजपा के लिए चुनाव साख का है जबकि कांग्रेस पार्टी के लिए चुनाव नाक का है।

राह दोनों ही दलों की आसान नहीं है। चुनाव में भाजपा के करीब साढ़े तीन साल के कार्यकाल की साख दांव में लगी है तो कांग्रेस पार्टी को संजीवनी की जरूरत है। मुकाबला अभी तक 50-50 का बताया जा रहा है। राजनीतिक विश्लेषक कहते हैं कि चुनावों में कोई बड़ा उलटफेर हो जाए ऐसी संभावना से इंकार नहीं किया जा सकता है। वैसे भी हिमाचल के मतदाता समझदारी से वोट करते हैं।

प्रदेश के सबसे बड़े जिला कांगड़ा में दो नगर निगम है। चूंकि कांगड़ा 15 विधानसभा सीटों के साथ सबसे बड़ा जिला है। जहां से सरकार की दशा और दिशा तय होती है। इसलिए दोनों दल इन चुनावों में जीत के लिए एड़ी चोटी का जोर लगा रहे हैं। मंडी में मुख्यमंत्री की प्रतिष्ठा दांव पर लगी हुई है। क्योंकि मंडी के भाजपा विधायक अनिल शर्मा औपचरिकता के लिए भाजपा के साथ है साथ कांग्रेस पार्टी का दे रहें है। सुखराम परिवार का मंडी गढ़ रहा है। क्या मुख्यमंत्री जय राम ठाकुर सुखराम के क़िले को भेद पाएंगे?

रही बात सोलन की तो सोलन का ज़िम्मा भले ही बेहतर प्रबधंक डॉ राजीव बिंदल के हाथ है लेकिन पार्टी में उनके साथ जो हुआ उसके बाद सभी की नज़र सोलन निगम चुनावों पर है। दोनों ही दलों के लिए मुकाबला कंही भी आसान नही है। बाग़ी कांग्रेस के मुकाबले सत्ता पक्ष का ज़्यादा खेल बिगाड़ सकते है।  क्योंकि चुनाव पार्टी चिन्ह पर है इसलिए जोड़तोड़ से भी काम नहीं चलेगा। ऐसे में सभी की निगाहें 7 अप्रैल के चुनावी नतीज़ों पर टिकी हुई है।