<p><strong>आशिष नड्डा।</strong> 80 के दशक के शुरआती वर्षों की बात है शिमला नाहन रुट की सरकारी बस सवारियों से खचाखच भरी पड़ी थी। नंबर 2 सीट पर बैठे एक बुजुर्ग ने कंडक्टर से नाहन का टिकट मांगा। टिकट काट कर जैसे ही कंडक्टर ने बुजुर्ग के हाथ में थमाया दोनों की आंखे मिली और कंडक्टर अवाक रह गया। हिमाचल परिवहन निगम की सरकारी बस में बैठकर अपने घर नाहन का टिकट पैसे देकर कटवाने वाले वो बुजुर्ग हिमाचल प्रदेश का निर्माता और तीन दशकों प्रशासक और मुख्यमंत्रीं रहे डॉक्टर यशवंत सिंह परमार थे। "</p>
<p>वर्षों तक प्रदेश के मुख्यमंत्री रहे बाद में मुख्यमंत्रीं से हटे तो अपना सामान ट्रंक में डालकर सरकारी बस में बैठकर अपने गावं में रहने चले गए आज उन्हीं हिमाचल निर्माता डा. यशवंत सिंह परमार की जयंती है।</p>
<p>हिमाचल प्रदेश को अस्तित्व में लाने और विकास की आधारशिला रखने में डा. परमार का महत्त्वपूर्ण योगदान रहा है डाक्टर परमार जानते थे की पंजाब के मैदान के साथ रहकर पहाड़ के हित कभी सुरक्षित नहीं रहेंगे इसलिए हिमाचल प्रदेश को अलग राज्य का दर्जा दिलवाने के लिए वो हमेशा संघर्ष शील रहे।</p>
<p>आज का हिमाचल, जो हम देख रहे हैं, यह तब ऐसा नहीं था। एक छोटा सा पहाड़ी प्रदेश, जहां सड़कें नहीं थी, अस्पताल नहीं थे, स्कूल नहीं थे और तो और हिमाचल के हजारों गांव तो बिजली से भी वाकिफ नहीं थे</p>
<p>परमार के नेतृत्व में घुटनों के बल चलने वाले इस प्रदेश ने दौड़ना सीखा उन्होंने हिमाचल प्रदेश के विकास के लिए नई दिशाएं प्रस्तुत कीं आज अगर प्रदेश शिक्षा, स्वास्थ्य, आर्थिक विकास या बानिकी-बागबानी के क्षेत्र में भारत में एक पहचान रखता है तो यह सब डॉक्टर परमार की तैयार की हुई बुनियाद से संभव हो पाया है।</p>
<p>डॉक्टर परमार बहुत साधारण व्यक्ति थे शिमला में रिज पर अकेले घूमने निकला करते थे, किसी को भी रोककर हाल चाल पूछा करते थे। पहाड़ी नाटियों पर थिरका करते थे। कई बार सड़कों के निर्माण के लिए जमीन देने में आनाकानी करने वाले लोगों को मनाने वो खुद गावं गावं जाते थे।</p>
<p>डॉक्टर परमार को हिमाचल प्रदेश की राजनीति में दलों से ऊपर देखा जाता है बीजेपी हो या कांग्रेस डॉक्टर परमार सबके सम्माननीय रहे हैं। हिमाचल प्रदेश आज इसीलिए भारत के अग्रणी प्रदेशों में हैं क्योंकि उसे मुख्यमंत्रीं के रूप में डाक्टर परमार का लंम्बा साथ मिला।</p>
<p>डॉ. परमार की सादगी और प्रदेश के प्रति ईमानदारी इसी बात से पता चलती है कि कई वर्षों तक प्रशाशक एवं 17 वर्षों तक मुख्यमंत्री पद पर कार्य करने के बावजूद मरणोपरांत उनके बैंक खाते में मात्र 563 रुपए थे।</p>
<p><span style=”color:#d35400″><em><strong>(उपयुक्त लेख आशिष नड्डा ने लिखा है जो कि IIT रिसर्चर हैं और वर्ल्ड बैंक से जुड़े हुए हैं)</strong></em></span></p>
AICC observers in Himachal Pradesh: अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी (AICC) ने हिमाचल प्रदेश में कांग्रेस…
Kangra District disaster management: हिमाचल प्रदेश आपदा प्रबंधन प्राधिकरण ने कांगड़ा जिला को स्वयंसेवियों के…
Karcham-Sangla-Chitkul Road: जनजातीय जिला किन्नौर में चीन सीमा से सटी और सामरिक दृष्टि से महत्वपूर्ण…
Baba Balak Nath Temple Trust: पहले राशन घोटाला फिर बकरा निलामी पर किरकिरी और…
CPI(M) protest in Hamirpur: भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी) ने हमीरपुर में बढ़ती महंगाई, बेरोजगारी, बिजली,…
Hati community tribal status: हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट ने हाटी समुदाय को जनजाति दर्जा देने के…