<p>2012 में पुनर्सीमांकन के बाद अस्तित्व में आए शिमला ग्रमीण विधानसभा क्षेत्र से मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह भारी मतों से जीत कर विधानसभा पहुंचे थे। लेकिन, अब समीकरण बदल रहे हैं। वजह यही है कि मुख्यमंत्री अपने बेटे एवं युवा कांग्रेस अध्यक्ष विक्रमादित्य सिंह के लिए राजनीतिक जमीन तलाश रहे हैं। अटकलें ये भी हैं कि पिता पुत्र के बीच बातचीत के बाद शायद ये तलाश खत्म हो गई है।</p>
<p>सूत्रों के मुताबिक, अब शिमला ग्रामीण विधान सभा सीट को मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह अपने बेटे विक्रमादित्य सिंह के लिए छोड़ रहे है। यदि ऐसा नहीं होता तो शिमला में आज ग्रामीण विधानसभा क्षेत्र के पंचायत प्रतिनिधियों से लेकर कांग्रेस के स्थानीय नेताओं का महासम्मेलन नहीं बुलाया जाता। यदि बुलाया भी जाता तो पिता पुत्र शायद चुनावो से एन पहले एक मंच पर शक्ति प्रदार्शन नहीं करते।</p>
<p>जी हां, शिमला ग्रामीण के महासम्मेलन में पिता पुत्र दोनों ने ही इशारों में सब बयां कर दिया कि ग्रामीण से विक्रमादित्य सिंह को भारी मतों से जीत दिलवाकर विधानसभा भेजें। मुख्यमंत्री भी चाहते है कि शिमला ग्रामीण की जनता उनके पुत्र विक्रमादित्य सिंह का साथ दे, ताकि उनका राजनीतिक भविष्य सुरक्षित हो सके। हालांकि, उन्होंने साफ तो नहीं कहा, लेकिन बेटे की तारीफ करते हुए यह जरूर कहा कि एक टाइम आता है जब व्यक्ति को आराम कर युवाओं को आगे करना चाहिए। यही नहीं, ग्रामीण मंडल ने विक्रमादित्य को शिमला ग्रामीण से टिकट देने के लिए प्रस्ताव पारित किया है।</p>
<p>अब सबसे बड़ा सवाल ये है कि यदि आलाकमान विक्रमादित्य सिंह को शिमला ग्रामीण से टिकट देती है तो क्या वीरभद्र सिंह किसी दूसरी जमीन की तलाश में है। खबर तो ये है कि टिकट आवंटन में यदि मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह की चली तो मुख्यमंत्री को सोलन जिला के अर्की विधानसभा क्षेत्र से चुनाव लड़ाया जा सकता है। यहां गौर करने वाली बात ये भी है कि जिस ग्रामीण विधानसभा क्षेत्र से मुख्यमंत्री बीस हज़ार वोटों से जीतकर आए थे, वहां से लोकसभा के चुनाव में उक्त मार्जन से बीजेपी को बढ़त मिली थी। अब सबकी नजरें टिकट आवंटन पर लगी है यदि विक्रमादित्य को ग्रामीण से टिकट मिलता है तो बीजेपी उनके मुकाबले में किसको उतारेगी। क्योंकि, अभी तक शिमला ग्रामीण से बीजेपी के पास कोई सशक्त चेहरा नहीं है। हां बीजेपी से ईश्वर रोहाल एवं सुनील ठाकुर जरूर टिकट की दौड़ में हैं।</p>
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