<p>भले ही मंडी वालों के पास मुख्यमंत्री है और दूसरे नंबर पर आने वाले वरिष्ठ मंत्री महेंद्र सिंह भी मंडी जिले से ही हैं। लेकिनर दस में दस सीटें बीजेपी को देकर एक नया इतिहास रचने वाले मंडी जिले के लोगों को उम्मीद थी कि उन्हें ज्यादा नहीं तो कम से कम अनिल शर्मा के इस्तीफे से खाली हुई सीट तो मिल ही जाएगी। हालांकि मंडी से खाली हुई इस सीट पर विधायक कर्नल इंद्र सिंह, विनोद कुमार और राकेश जमवाल अपनी नजरें गढ़ाए बैठे थे। बैसे तो किसी को भी मंत्री बनाना मुख्यमंत्री का विशेषाधिकार है और फिर उन पर कई वरिष्ठ विधायकों का दबाव भी रहा है जो अपने को मंत्री बनने की पहली कतार में मान कर चल रहे थे।</p>
<p>चूंकि मंत्रीमंडल के सदस्यों की संख्या तय है और उससे अधिक हो नहीं सकते ऐसे में नए आए तीन चेहरों पर भले ही किसी भी नेता के खास होने की मुहर क्यों न हो मगर इसके बावजूद भी जातीय और क्षेत्रीय संतुलन रखने का पूरा प्रयास मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर ने किया है। मंडी जिले के लोगों को इस बात का संतोष तो है कि मंत्रीमंडल विस्तार को लेकर जो दबाव मुख्यमंत्री पर महीनों से चला आ रहा था उसे उन्होंने सिरमौर, बिलासपुर और कांगड़ा जिलों को प्रतिनिधित्व देकर संतुलन कायम करते हुए कम करने की पूरी कोशिश की है। इसके लिए वह साधुवाद के पात्र भी हैं।</p>
<p>लेकिन बावजूद इसके भी कांग्रेस के कभी उपमुख्यमंत्री स्तर के नेता रहे दिग्गज रंगीला राम राव जैसे नेता को हराकर और फिर लगातार तीन बार गोपालपुर सरकाघाट से विधायक बने आईआईटी के स्टूडेंट रहे कर्नल इंद्र सिंह की दावेदारी किसी और से कम नहीं थी। अनिल शर्मा की खाली सीट पर वह आते तो मंडी जिले को दस सीटें देने की एवज में मिलने वाला पुरस्कार मुख्यमंत्री के साथ साथ मंत्रीमंडल में हिस्सेदारी का भी मिल जाना था। अब इसे कहीं इससे भी जोड़कर देखा जा रहा है कि जब मुख्यमंत्री पद के घोषित उम्मीदवार प्रेम कुमार धूमल सुजानपुर से चुनाव हार गए थे तो सबसे पहले कर्नल इंद्र सिंह ठाकुर ने ही अपनी सरकाघाट की सीट उनके लिए खाली करने की पेशकश की थी। इसके पीछे शायद बड़ा कारण यह भी रहा था कि प्रेम कुमार धूमल का मंडी जिले के भ्रदवाड़ सरकाघाट से सीधा नाता रहा है और वहां पर अभी भी उनके परिवार के लोग हैं।</p>
<p>माना जाता है कि उनके परिवार यहीं से समीरपुर गए थे। इसके बावजूद भी मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर की नजर में कर्नल इंद्र सिंह ठाकुर कभी कम नहीं रहे। मगर मुख्यमंत्री की मंत्रीमंडल विस्तार पर मजबूरी समझी जा सकती है और यदि सरकार को संतुलन में रखना है तो अपनों की कुर्बानी तो देनी ही पड़ती है। लगता है कि अपनों की कुर्बानी से ही मुख्यमंत्री ने जातीय और क्षेत्रीय संतुलन साध कर मंत्रीमंडल विस्तार किया है।</p>
<p>जहां तक विनोद कुमार की बात है तो वह अभी युवा हैं, आरक्षित सीट से लगातार दो बार जीते हैं वह भी दलित कोटे से दावेदार रहे हैं। मगर बात तो वही कि जब मुख्यमंत्री अपना हो तो दूसरे जिलों को प्रतिनिधित्व अपनों की कुर्बानी से ही हो सकता है।</p>
<p>सुंदरनगर के विधायक राकेश जमवाल पहली बार विधायक बने हैं, वह मुख्यमंत्री के नजदीकियों में गिने जाते हैं मगर वर्तमान में उन्हें सरकार से ज्यादा संगठन में लाकर पार्टी अभी काम लेने की इच्छुक लग रही है। कुछ भी हो मंडी जिले ने जो सबसे ज्यादा योगदान वर्तमान सरकार में दिया है उसके बदले में उसका हिस्सा अभी भी बकाया है और माना जा सकता है कि आने वाले दिनों में मुख्यमंत्री किसी ने किसी तरह से इसकी भरपाई करके कुर्बानी देने वालों को भी कोई सौगात जरूर देंगे। </p>
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