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रावण न करता ये भूल, हिमाचल में नहीं लंका में होता बैजनाथ शिव मंदिर

समाचार फर्स्ट |

आज से दो दिन बाद 14 फरवरी को शिवरात्री है, ऐसे में कांगड़ा स्थित बैजनाथ शिव मंदिर भक्तों का तांता अभी से लगना शुरू हो गया है। ये मंदिर विदेशी पर्यटकों और तीर्थ यात्रियों की एक बड़ी संख्या को आकर्षित करता है।बैजनाथ शिव मंदिर’ स्थानीय लोगों के साथ-साथ दूर-दूर से आने वाले लोगों की धार्मिक आस्था का महत्वपूर्ण केंद्र है। यह मंदिर वर्ष भर पूरे भारत से आने वाले भक्तों और तीर्थ यात्रियों की बड़ी संख्या को आकर्षित करता है।

विशेषकर शिवरात्रि में यहां का नजारा ही अलग होता है। शिवरात्रि को सुबह से ही मंदिर के बाहर भोले नाथ के दर्शनों के लिए हजारों लोगों की भीड़ लगी रहती है। इस दिन मंदिर के साथ बहने वाली बिनवा खड्ड पर बने खीर गंगा घाट में स्नान का विशेष महत्व है। श्रद्धालु स्नान करने के उपरांत शिवलिंग को पंचामृत से स्नान करवाकर उस पर बिल्व पत्र, फूल, भांग, धतूरा इत्यादि अर्पित कर भोले बाबा को प्रसन्न करके अपने कष्टों एवं पापों का निवारण कर पुण्य कमाते हैं।

रावण की भूल से स्थापित हुआ ये मंदिर

पौराणिक कथा के अनुसार त्रेता युग में लंका के राजा रावण ने कैलाश पर्वत पर भगवान शिव की तपस्या की। कोई फल न मिलने पर दशानन ने घर तपस्या प्रारंभ की तथा अपना एक-एक सिर काटकर हवन कुंड में आहूति देकर शिव को अर्पित करना शुरू किया। दसवां और अंतिम सिर कट जाने से पहले शिवजी ने प्रसन्न होकर रावण का हाथ पकड़ लिया।

उसके सभी सिरों को दोबारा स्थापित कर शिव ने रावण को वर मांगने को कहा। रावण ने कहा मैं आपके शिवलिंग स्वरूप को लंका में स्थापित करना चाहता हूं। आप दो भागों में अपना स्वरूप दें और मुझे अत्यंत बलशाली बना दें। शिव जी ने तथास्तु कहा और लुप्त हो गए। लुप्त होने से पहले शिव जी ने अपने शिवलिंग स्वरूप के दो चिन्ह रावण को देने से पहले कहा कि इन्हें जमीन पर न रखना।

रावण दोनों शिवलिंग लेकर लंका को चला। रास्ते में ‘गौकर्ण’ क्षेत्र बैजनाथ में पहुंचने पर रावण को लघुशंका का आभास हुआ। उसने ‘बैजु’ नाम के एक ग्वाले को सब बात समझाकर शिवलिंग पकड़ा दिए और शंका निवारण के लिए चला गया। शिव जी की माया के कारण बैजु उन  शिवलिंगों के भार को अधिक देर तक न सह सका और उन्हें धरती पर रखकर पशु चराने चला गया।

इस तरह दोनों शिवलिंग वहीं स्थापित हो गए। जिस मंजूषा में रावण ने दोनों शिवलिंग रखे थे, उस मंजूषा के सामने जो  शिवलिंग था वह ‘चंद्रताल’ के नाम से प्रसिद्ध हुआ और जो पीठ की ओर था वह ‘बैजनाथ’ के नाम से जाना गया। मंदिर के प्रांगण में कुछ छोटे मंदिर भी हैं और नंदी बैल की मूर्त है। नंदी के कान में भक्तगण अपनी मन्नत मांगते हैं।