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निर्माण और सृजन का देवता कहा जाता है भगवान विश्वकर्मा को

समाचार फर्स्ट डेस्क |

भारत के प्रमुख त्यौहारों में से विश्वकर्मा पूजा भी एक त्यौहार है, जो श्रम से जुड़े क्षेत्रों में मनाया जाता है। हिंदू धर्म में भगवान विश्वकर्मा को निर्माण और सृजन का देवता कहा जाता है। एक अन्य भाषा में कहें तो इन्हें देवताओं का शिल्पकार माना जाता है। मान्यता है कि सोने की लंका का निर्माण उन्होंने ही किया था। विश्वकर्मा पूजा को लेकर कई भांतियां है। कई लोग विश्वकर्मा पूजा भाद्रपद महीने में शुक्ल पक्ष के चौथे दिन मनाते है, वहीं, कई लोग विश्वकर्मा पूजा दिवाली के दूसरे दिन मनाते हैं। पूरे भारत में विश्वकर्माजयंती को लोग बहुत ही हर्षोल्लास के साथ मनाते है।

विश्वकर्मा जयंती

विश्वकर्मा जयंती हिंदू धर्म में ब्रह्मांड के दिव्य वास्तुकार भगवान विश्वकर्मा को समर्पित है। विश्वकर्मा भाद्र केबंगाली महीने के अंतिम दिन, विशेष रूप से भद्रा संक्रांति पर निर्धारित की जाती है। यही कारण है कि जब सूर्य सिंह सेकन्या पर हस्ताक्षर करता है इसे कन्या सक्रांति के रूप में भी जाना जाता है। ऋग्वेद में विश्वकर्मा सुक्त के नाम से 11 ऋचाऐं लिखी हुई है। जिनके प्रत्येक मन्त्र पर लिखा है ऋषि विश्वकर्मा भौवन देवता आदि। यही सुक्त यजुर्वेद अध्याय 17, सुक्त मन्त्र 16 से 31 तक 16 मंत्रों में आया है। ऋग्वेद मे विश्वकर्मा शब्द का एक बार इन्द्र व सुर्य का विशेषण बनकर भी प्रयुक्त हुआ है। परवर्ती वेदों मे भी विशेषण रूप मे इसके प्रयोग अज्ञत नही है यह प्रजापति का भी विशेषण बन कर आया है।

आइए जानते हैं विश्वकर्मा पूजा क्यों मानते हैं

पौराणिक कथाओं के अनुसार, ब्रह्मा जी के पुत्र “धर्म” का विवाह “वस्तु” से हुआ। धर्म के सात पुत्र हुए इनके सातवें पुत्र का नाम “वास्तु”रखा गया, जो शिल्पशास्त्र की कला में परिपूर्ण थे। “वास्तु” के विवाह के बाद उनका एक पुत्र हुआ जिसका नाम “विश्वकर्मा” रखा गया, जो वास्तुकला के अद्वितीय गुरु बनेऔर उन्हें विश्वकर्मा के नाम से जाना जाने लगा। विश्वकर्मा पूजा जन कल्याणकारी है। सृष्टिकर्ता, शिल्प कलाधिपति, तकनीकी और विज्ञान के जनक भगवान विश्वकर्मा की पूजा-अर्चना करने से व्यक्ति की उन्नति होती है।

हिंदू पौराणिक कथा के अनुसार,काशी में धार्मिक आचरण रखने वाला एक रथकार अपनी पत्नी के साथ रहता था। वह अपने कार्य में निपुण था, परंतु जगह-जगह घूमने और प्रयत्न करने पर भी वह भोजन से अधिक धन प्राप्त नहीं कर पाता था। वही पत्नी भी संतान ना होने के कारण काफी चिंतित रहती थी। संतान प्राप्ति के लिए दोनों साधु-संतों के यहां जाते थे, लेकिन उनकी यह इच्छा पूरी नहीं हुई। तब एक पड़ोसी ब्राह्मण ने रथकार की पत्नी से कहा, तुम भगवान विश्वकर्मा की शरण में जाओ, तुम्हारी अवश्य ही इच्छा पूरी होगी और अमावस्या तिथि को व्रत कर भगवान विश्वकर्मा की कथा सुनो। इसके बाद रथकार और उसकी पत्नी ने अमावस्या को भगवान विश्वकर्मा की पूजा की। जिससे उन्हें धन-धान्य और पुत्र की प्राप्ति हुई और वह दोनों सुखी जीवन व्यतीत करने लगे। तभी से विश्वकर्मा की पूजा बड़े धूमधाम के साथ की जाने लगी।

चार युगों में विश्वकर्मा ने कई नगर और भवनों का निर्माण किया। कालक्रम में देखें तो सबसे पहले सत्ययुग में उन्होंने स्वर्गलोक का निर्माण किया, त्रेता युग में लंका का, द्वापर में द्वारका का और कलियुग के आरम्भ के 50 वर्ष पूर्व हस्तिनापुर और इन्द्रप्रस्थ का निर्माण किया। विश्वकर्मा ने ही जगन्नाथ पुरी के जगन्नाथ मन्दिर में स्थित विशाल मूर्तियों (कृष्ण, सुभद्रा और बलराम) का निर्माण किया।