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2022 की गजानन संकष्टी चतुर्थी कब होगी, जाने पूजा विधि का शुभ मुहूर्त

सावन महीना शुरु होते ही कई व्रत, त्योहार आते है. और इसी सावन महीने की कृष्ण पक्ष चतुर्थी तिथि को गजानन संकष्टी चतुर्थी के व्रत रखे जाते है. और यह दिन भगवान शिव को समर्पित किया जाता है

डेस्क |

सावन महीना शुरु होते ही कई व्रत, त्योहार आते है. और इसी सावन महीने की कृष्ण पक्ष चतुर्थी तिथि को गजानन संकष्टी चतुर्थी के व्रत रखे जाते है. और यह दिन भगवान शिव को समर्पित किया जाता है. सावन महीना पड़ने से गणेश जी की पूजा की जाती है. कृष्ण पक्ष चतुर्थी के दिन गणेश जी की विधिवत पूजा होती है. इस दिन सभी को व्रत, कथा का पाठ, गणेश जी की पूजा अर्चना करनी चाहिए.और गणेश पूजन के बाद रात को चंद्रमा की पूजा करनी चाहिए. ऐसा करने से गजानन सभी की मनोकामनाएं पूर्ण और कष्ट दूर कर देते है.

आपको बता दें कि सावन की संकष्टी चतुर्थी तिथि का प्रारंभ 16 जुलाई 2022 को 01 बजकर 27 मिनट से शुरु होगा, उसके पश्चात सौभाग्य योग प्रारंभ हो जाएगा जो 17 जुलाई को शाम 05 बजकर 49 मिनट तक रहेगा. इस दिन का शुभ समय दोपहर 12:00 बजे से लेकर दोपहर 12 बजकर 55 मिनट तक है. संकष्टी चतुर्थी के दिन आयुष्मान योग और सौभाग्य योग का सुंदर संयोग बना है. आप सुबह से ही गजानन संकष्टी चतुर्थी व्रत की पूजा कर सकते हैं. और रात के समय चंद्रमा के उदय होने के लिए इतजार करना होगा. गजानन संकष्टी चतुर्थी पर करें वक्रतुण्ड महाकाय सूर्यकोटी समप्रभ मंत्रो का जाप. इन मंत्रो का जाप करने से गजानन अत्यधिक प्रसन्न हो जाते है. और मनोकामना पूर्ण होने का आशीर्वाद देते है.

गजानन संकष्टी चतुर्थी की पूजा करने की विधि

1.आयुष्मान योग रहेगा- 16 जुलाई सुबह 12 बजकर 21 मिनट से रात 08 बजकर 49 मिनट तक

2.सौभाग्य योग रहेगा- 16 जुलाई रात 08 बजकर 49 मिनट से शुरु होकर 17 जुलाई शाम 5 बजकर 49 मिनट तक

गजानन संकष्टी चतुर्थी के दिन समय पर उठकर सभी कामों को करने के पश्चात स्नान करके साफ-सुथरे कपड़े डाल लें. उसके बाद गणेश जी की पूजा शुरु करें, घर में किसी साफ से स्थान पर गणेश जी की प्रतिमा स्थापित करें और फिर भगवान गणेश जी को गंगा जल ,फूल की माला, सिंदूर, भोग में लड्डू चढ़ा दें. अंत में गणेश जी की आरती कर लें. इसके साथ ही आपका व्रत प्रारंभ हो जाएगा, पूरा दिन आप भगवान गणेश जी का ध्यान करते रहें, शाम होते ही सूर्यअस्त से पहले गणपति जी की पूजा कर लें और फिर रात को चंद्रदेव की पूजा करने के बाद व्रत खोल लें. इसके साथ ही एक बात का विशेष ध्यान रखें कि सावन महीने की कृष्ण पक्ष चतुर्थी तिथि के दिन, गजानन संकष्टी चतुर्थी वाले दिन और किसी भी व्रत के दिन मांस-मदिरा प्रयोग न करें.