हिमाचल प्रदेश के कांगड़ा जिला में माता श्री ज्वालाजी का मंदिर स्थित है। यहां ज्योति रूप में मां ज्वाला भक्तों को दर्शन देती हैं। मान्यता है कि ज्वालाजी में माता सती की जीभ गिरी थी, इससे यहां का नाम ज्वालाजी मंदिर पड़ा। मंदिर में होने वाले चमत्कारों को सुन अकबर सेना सहित यहां आया था। अकबर ने ज्योति को बुझाने के लिए नहर का निर्माण किया और सेना से पानी डलवाना शुरू कर दिया। नहर के पानी से मां की ज्योतियां नहीं बुझीं।
इसके बाद अकबर ने मां से माफी मांगी और पूजा कर सोने का सवा मन का छत्र चढ़ाया था। माता ने उसका छत्र स्वीकार नहीं किया था। यह छत्र सोने का न रहकर किसी दूसरी धातु में बदल गया था। अकबर की भेंट माता ने अस्वीकार कर दी थी। इसके बाद वह कई दिन तक मंदिर में रहकर क्षमा मांगता रहा। बड़े दुखी मन से वापस गया था। कहते हैं कि इस घटना के बाद ही अकबर के मन में हिंदू देवी-देवताओं के लिए श्रद्धा पैदा हुई थी।
अकबर का चढ़ाया गया छत्र किस धातु में बदल गया, इसकी जांच के लिए साठ के दशक में तत्कालीन प्रधानमंत्री पं. जवाहर लाल नेहरू की पहल पर यहां वैज्ञानिकों का दल पहुंचा। छत्र के एक हिस्से का वैज्ञानिक परीक्षण किया तो चौंकाने वाले नतीजे सामने आए। वैज्ञानिक परीक्षण के आधार पर इसे किसी भी धातु की श्रेणी में नहीं माना गया। जो भी श्रद्धालु शक्तिपीठ में आते हैं, वे अकबर के छत्र और नहर देखे बगैर यात्रा को अधूरा मानते हैं। आज भी छत्र ज्वाला मंदिर के साथ भवन में रखा हुआ है। मंदिर के साथ नहर के अवशेष भी देखने को मिलते हैं।
मंदिर का निर्माण
सबसे पहले इस मंदिर का निर्माण राजा भूमि चंद ने करवाया था। बाद में महाराजा रणजीत सिंह और राजा संसार चंद ने 1835 में इस मंदिर का निर्माण पूरा कराया। कहा जाता है कि पांडवों ने अज्ञातवास के समय यहां समय गुजारा था और मां की सेवा की थी। मंदिर से जुड़ा एक लोकगीत भी है जिसे भक्त अक्सर गाते हुए मंदिर में प्रवेश करते हैं…पंजा-पंजा पांडवां तेरा भवन बनाया, राजा अकबर ने सोने दा छत्र चढ़ाया…।
मंदिर में सात ज्योतियां
मंदिर के गर्भ गृह के अंदर सात ज्योतियां हैं। सबसे बड़ी ज्योति महाकाली का रूप है जिसे ज्वालामुखी भी कहा जाता है। दूसरी ज्योति मां अन्नपूर्णा, तीसरी ज्योति मां चंडी, चौथी मां हिंगलाज, पांचवीं विंध्यावासनी, छठी महालक्ष्मी व सातवीं मां सरस्वती है।
पांच बार होती है आरती
मंदिर में पांच बार आरती होती है। एक मंदिर के कपाट खुलते ही सूर्योदय के साथ सुबह 5 बजे की जाती है। दूसरी मंगल आरती सुबह की आरती के बाद। दोपहर की आरती 12 बजे की जाती है। आरती के साथ-साथ माता को भोग भी लगाया जाता है। फिर संध्या आरती 7 बजे होती है। इसके बाद देवी की शयन आरती रात 9.30 बजे की जाती है। माता की शय्या को फूलों, आभूषणों और सुगंधित सामग्रियों से सजाया जाता है।
ज्वाला चमत्कारिक भी
यहां पर ज्वाला प्राकृतिक न होकर चमत्कारिक है।अंग्रेजी शासनकाल में अंग्रेजों ने पूरा जोर लगा दिया था कि जमीन से निकलती ऊर्जा का इस्तेमाल किया जाए। लाख कोशिश पर भी वे इस ऊर्जा को नहीं ढूंढ पाए थे।