नौकरियों के प्रमोशन में आरक्षण के तर्क पर सुप्रीम कोर्ट ने सवाल उठा दिए हैं। सुप्रीम कोर्ट ने हाई-प्रोफाइल आधिकारिक पदों पर बैठे SC/ST समुदाय के संपन्न लोगों के परिजनों को सरकारी नौकरियों के प्रमोशन में आरक्षण पर अपनी बात कही है। चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा की अध्यक्षता वाली पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने सवाल किया कि अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति के संपन्न लोगों को पदोन्नति में आरक्षण के लाभ से वंचित करने के लिए उन पर ‘क्रीमीलेयर’ सिद्धांत लागू क्यों नहीं किया जा सकता? यह सिद्धांत अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) के संपन्न वर्ग को आरक्षण के लाभ के दायरे से बाहर करने के लिए लागू किया जाता है।
पीठ ने कहा, ‘प्रवेश स्तर पर आरक्षण. कोई समस्या नहीं. मान लीजिए, कोई ‘एक्स’ व्यक्ति आरक्षण की मदद से किसी राज्य का मुख्य सचिव बन जाता है। अब, क्या उसके परिवार के सदस्यों को पदोन्नति में आरक्षण के लिए पिछड़ा मानना तर्कपूर्ण होगा… क्योंकि इसके जरिये उसका वरिष्ठता-क्रम तेजी से बढ़ेगा।’
दिनभर चली सुनवाई के दौरान, अटार्नी जनरल के के वेणुगोपाल, अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता, वरिष्ठ अधिवक्ताओं इंदिरा जयसिंह, श्याम दीवान, दिनेश द्विवेदी और पी एस पटवालिया सहित कई वकीलों ने एससी, एसटी समुदायों के लिए पदोन्नति में आरक्षण का पुरजोर समर्थन किया और मांग की कि बड़ी पीठ द्वारा 2006 के एम नागराज मामले के पांच न्यायाधीशों की पीठ के फैसले पर फिर से विचार किया जाना चाहिए।
क्या है 2006 के फैसले का आधार
साल 2006 के फैसले में कहा गया था कि ST, ST वर्ग को प्रमोशन में आरक्षण देने से पहले राज्यों पर उन समुदायों के पिछड़ेपन पर गणना वाले आंकड़े और सरकारी नौकरियों के साथ-साथ कुल प्रशासनिक क्षमता में उनके अपर्याप्त प्रतिनिधित्व के बारे में तथ्य मुहैया कराने की जिम्मेदारी है।