सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को सवाल किया कि लोग पटाखा उद्योग के पीछे क्यों पड़े हैं? ऐसा लगता है कि आटोमोबाइल प्रदूषण का कहीं ज्यादा बड़ा स्त्रोत हैं। इसके साथ ही शीर्ष कोर्ट ने केंद्र से जानना चाहा कि क्या उसने पटाखों और आटोमोबाइल से होने वाले प्रदूषण के बीच कोई तुलनात्मक अध्ययन कराया है। जस्टिस एसए बोबडे और जस्टिस एस. अब्दुल नजीर की पीठ ने पटाखा निर्माण उद्योग और इसकी बिक्री में शामिल लोगों का रोजगार खत्म होने पर गंभीर चिंता व्यक्त की और कहा, 'हम बेरोजगारी बढ़ाना नहीं चाहते हैं।'
पीठ ने केंद्र सरकार की ओर से पेश अतिरिक्त सालिसिटर जनरल एएनएस नादकर्णी से जानना चाहा, 'क्या पटाखों से होने वाले प्रदूषण और आटोमोबाइल से होने वाले प्रदूषण के बारे में कोई तुलनात्मक अध्ययन किया गया है? ऐसा लगता है कि आप पटाखों के पीछे भाग रहे हैं जबकि प्रदूषण में इससे कहीं अधिक योगदान शायद वाहनों से होता है।' कोर्ट देश भर में पटाखों के इस्तेमाल पर पूरी तरह प्रतिबंध लगाने के लिए दायर याचिका पर सुनवाई कर रहा था।
शीर्ष कोर्ट ने पिछले साल कहा था कि दीवाली और दूसरे त्यौहारों के अवसर पर देश में लोग शाम आठ बजे से दस बजे तक पटाखे चला सकते हैं। मंगलवार को अतिरिक्त सालिसिटर जनरल ने पीठ से कहा कि पेट्रोलियम एवं विस्फोटक सुरक्षा संगठन (पेसो) और दूसरी विशेषज्ञ एजेंसियों ने प्रयोग किया और उन्होंने 'हरित पटाखों' में प्रयुक्त होने वाले मिश्रण का फार्मूला पेश किया है।
उन्होंने सीएसआइआर और नीरी की बैठक की कार्यवाही के विवरण का हवाला दिया और कहा कि पेसो द्वारा संवद्धिर्त फार्मूले की उत्पादन के लिए मंजूरी 21 मार्च तक देने का लक्ष्य रखा गया है। याचिकाकर्ता की ओर से वकील गोपाल शंकरनाराण्यान ने वायु और ध्वनि प्रदूषण का मुद्दा उठाते हुए कहा कि दिल्ली-राष्ट्रीय राजधानी में वार्षिक प्रदूषण का 2.5 फीसद त्यौहारों के दौरान कुछ दिन पटाखे चलाने की वजह से होता है। इस मामले में अब तीन अप्रैल को आगली सुनवाई होगी।