प्राचीन भारत और नेपाल में पूरे साल को जिन छह मौसमों में बांटा जाता था उनमें वसंत लोगों का सबसे मनचाहा मौसम था। जब फूलों पर बहार आ जाती, खेतों में सरसों का फूल मानो सोना चमकने लगता, जौ और गेहूं की बालियां खिलने लगतीं, आमों के पेड़ों पर मांजर आ जाता और हर तरफ़ रंग-बिरंगी तितलियां मंडराने लगतीं। भर-भर भंवरे भंवराने लगते।
वसंत ऋतु का स्वागत करने के लिए माघ महीने के पांचवे दिन एक बड़ा जश्न मनाया जाता था जिसमें विष्णु और कामदेव की पूजा होती हैं। यह वसंत पंचमी का त्यौहार कहलाता था। शास्त्रों में बसंत पंचमी को ऋषि पंचमी से उल्लेखित किया गया है, तो पुराणों-शास्त्रों और अनेक काव्यग्रंथों में भी अलग-अलग ढंग से इसका चित्रण मिलता है।
इसी कड़ी में इसी कड़ी में सुंदरनगर में नामधारी संगत के द्वारा आज नगर कीर्तन और शोभायात्रा निकाली गई जो भोजपुर होते हुए बस स्टैंड तक निकाली गई इस शोभायात्रा में प्रबुद्ध शहर के लोगों ने भाग लिया इस सभा में हिंदू समाज और नामधारी समाज खत्री सभा विश्व हिंदू परिषद के गणमान्य लोगों ने इस कार्यक्रम में बढ़-चढ़कर भाग लिया