हिमाचल

वर्षा नहीं,अवैज्ञानिक विकास मॉडल के कारण ही हुई तबाही: CPIM नेता

मंडी: हिमाचल प्रदेश में अवैज्ञानिक विकास और प्रकृति से हुई छेड़ छाड़ के कारण पिछले तीन दिनों से हो रही वारिस के कारण ब्यास नदी के साथ लगते क्षेत्रों में भारी नुकसान हुआ है। मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी के नेता व पूर्व ज़िला पार्षद भूपेंद्र सिंह ने इस नुकसान के लिए राज्य व केंद्र सरकारों को जिम्मेदारों की नीतियों को जिम्मेदार ठहराया है।

उन्होंने कहा कि बरसात में हमेशा से ही ऐसी वर्षा होती रही है और ऐसा नहीं है कि इस बार वारिस ज़्यादा हुई है। लेक़िन पिछले बीस वर्षों से जिस प्रकार प्रदेश में पनबिजली परियोजनाओं,राष्ट्रीय उच्च मार्गों, फोर लेन, सुरंगों और यहां तक कि हर गांव के लिए जो सड़कें बनी हैं उन सभी के निर्माण के लिए किए गए भूमि और पहाड़ों के कटाव से लाखों टन मलवा निकला है जिसे नदी नालों में ही फैंका गया है। जबकि ये सब डंपिंग साईटों में वैज्ञानिक तरीके रखा जाना चाहिए था।

पिछले बीस साल से हिमाचल प्रदेश में इस तरह के निर्माण कार्य तेज़ी से हो रहा है लेकिन यहां पर भजपा और कांग्रेस की सरकारों ने इस दिशा में कोई ध्यान नहीं दिया।जिसके परिणामस्वरूप आज ये हालात पैदा हो गए हैं।पहले नदी नालों में केवल पानी ही बहता था लेकिन अब पानी से ज़्यादा मिट्टी पत्थर और अन्य तरह का मलबा मिल जाता है जिस कारण जल स्तर बढ़ जाता है और नुक़सान पहुंचाने की ताकत कई गुना ज्यादा हो जाती है।इसी कारण मनाली, ऑउट, पण्डोह,मंडी इत्यादि शहरों के पास सौ साल पुराने पुल जलमग्न हो गए और गिर गए।

एक और कारण इस नुक़सान का ये भी है कि नदी किनारे सरकार और निजी क्षेत्र में बहुत सा अवैध निर्माण इन वर्षों में हुआ है जिसे रोकने में सरकारों ने लापरवाही बरती है।धर्मपुर में बस स्टैंड,पेयजल भंडारण टाँक,रेशम व बाग़वानी केंद्र से लेकर गौ सदन तक का निर्माण नदी नालों के बहुत नज़दीक किया गया है।ऐसा ही अवैध निर्माण मनाली से लेकर मंडी तक व्यास नदी के तट पर हुआ है। जबकि हिमाचल प्रदेश हाई कोर्ट ने नदी किनारों से 50 मीटर दूर तक निर्माण पर रोक लगाई हुई थी लेकिन किसी भी सरकार ने इसे लागू नहीं किया।

इसी क्षेत्र में बने फोर लेन और सुरंगों का सारा मलवा व्यास नदी में ही डाला गया है।इसके अलावा ग्रामीण क्षेत्रों में बड़े पैमाने पर वनों का कटान हुआ है जिससे भी वारिस का नुकसान बढ़ा है।उन्होंने सरकारों द्धारा अपनाए गए इस विकास के मॉडल की समीक्षा करने की मांग की है और इसे बदलने की मांग की है तभी भविष्य में इस तरह की तबाही से बचा जा सकता है।

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