Follow Us:

IIT मंडी के शोधार्थियों ने लगाया परस्पर आणविक प्रक्रिया का पता

बीरबल शर्मा, मंडी |

आईआईटी मंडी के शोधकर्ताओं की एक टीम ने स्कूल ऑफ बेसिक साइंसेज में एसोसिएट प्रोफेसर डॉ. प्रोसेनजीत मंडल के नेतृत्व में पूरक प्रायोगिक प्रक्रिया से पता चला है कि ज़्यादा मीठा खाने का फैटी लीवर होने से जैव रासायनिक संबंध है। चिकित्सा विज्ञान में फैटी लीवर को नॉन-अल्कोहलिक फैटी लीवर डिजीज एनएएफएलडी कहते हैं। शोध इस लिहाज से अधिक प्रासंगिक है कि भारत सरकार ने हाल में राष्ट्रीय कैंसर, मधुमेह, हृदय रोग एवं स्ट्रोक रोकथाम एवं नियंत्रण कार्यक्रम में एनएएफएलडी को भी शामिल किया है।

आईआईटी मंडी टीम के इस अभिनव शोध के परिणाम जर्नल ऑफ बायोलॉजिकल कैमिस्ट्री में प्रकाशित किए गए हैं। डॉ. प्रोसेनजीत मंडल के साथ शोध पत्र के सह-लेखक हैं उनके शोध विद्वान – आईआईटी मंडी के विनीत डैनियल, सुरभि डोगरा, प्रिया रावत, अभिनव चौबे, जामिया हमदर्द संस्थान नई दिल्ली के डॉ. मोहन कामथन और सुश्री आयशा सिद्दीक खान और एसजीपीजीआई लखनऊ के संगम रजक।

उन्होंने बताया कि एनएएफएलडी लीवर में बहुत ज़्यादा चर्बी जमा होने की चिकित्सकीय समस्या है। शुरू में बीमारी का कोई पता नहीं चलता। दो दशकों तक कोई स्पष्ट लक्षण नहीं दिखते हैं। लेकिन इलाज नहीं किया गया तो ज़्यादा चर्बी लीवर की कोशिकाओं को बुरी तरह प्रभावित कर सकती है। परिणामस्वरूप लीवर जख्मी हो सकता है और अधिक गंभीर होने पर लीवर कैंसर भी हो सकता है। एनएएफएलडी के अधिक गंभीर होने पर इलाज कठिन हो जाता है। डॉ. प्रोसेनजीत मंडल, एसोसिएट प्रोफेसर, स्कूल ऑफ बेसिक साइंसेज, आईआईटी मंडी ने इस शोध के बारे में बताया कि ज़्यादा मीठा खाने से हेपैटिक डीएनएल बढऩे की प्रक्रिया के बारे में अब तक स्पष्ट जानकारी नहीं है। उन्होंने कहा कि हमारा लक्ष्य ज्यादा मीठा खाने और फैटी लीवर की समस्या शुरू होने और डीएनएल के माध्यम से ज़्यादा गंभीर होने के बीच परस्पर प्रक्रिया को स्पष्ट करना है।

इसे रोकने वाला भारत दुनिया का पहला देश

एनएएफएलडी की गंभीरता समझने और इसे रोकने का प्रयास करने वाला भारत दुनिया का पहला देश है। देश की लगभग 9 प्रतिशत से 32 प्रतिशत आबादी में यह समस्या है। केवल केरल में 49 प्रतिशत आबादी इससे ग्रस्त है और स्कूली बच्चों में भी जो मोटे हैं उनमें 60 प्रतिशत में यह समस्या है। एनएएफएलडी के विभिन्न कारणों में एक ज़्यादा मीठा खाना है। सामान्य चीनी और कार्बोहाइड्रेट के अन्य रूप में चीनी दोनों इसकी वजह है। ज़्यादा मीठा और अधिक कार्बोहाइड्रेट खाने पर लीवर उन्हें चर्बी में बदल देता है। इस प्रक्रिया को हेपैटिक डी नोवो लाइपोजेनेसिस या डीएनएल कहते हैं। इस तरह लीवर में चर्बी जमा हो जाती है।

आईआईटी मंडी टीम ने चूहों के मॉडलों पर पूरक प्रायोगिक प्रक्रिया से यह दिखाया कि कार्बोहाइड्रेट की वजह से एक जटिल प्रोटीन के सक्रिय होने और डीएनएल बढऩे के बीच परस्पर संबंध है जो अब तक अज्ञात रहा है। शोध के प्रमुख वैज्ञानिक ने बताया कि हमारे डेटा से स्पष्ट है कि शर्करा के जरिए हेपैटिक एनएफ-पीबी पी 65 के सक्रिय होने से एक अन्य प्रोटीन सॉर्सिन कम हो जाता है जिसके चलते कैस्केडिंग जैव रासायनिक मार्ग से लीवर का डीएनएल सक्रिय हो जाता है। अधिक मीठा खाने लीवर में चर्बी जमा होने के बीच आणविक संबंध स्पष्ट होने इस बीमारी का इलाज ढूंढना आसान होगा।

आईआईटी मंडी टीम द्वारा लीवर में चर्बी जमा होने में एनएफ-केबी की खास भूमिका होने के बारे में पता लगाने के बाद चिकित्सा विज्ञान के सामने एनएएफएलडी के इलाज का नया रास्ता खुल गया है। दअरसल सूजन संबंधी अन्य बीमारियों में भी एनएफ-केबी की भूमिका है जैसे कि कैंसर, अल्जाइमर रोग, एथेरोस्क्लेरोसिस, आईबीएस, स्ट्रोक, मांसपेशियों का खराब होना और संक्रमण। पूरी दुनिया के वैज्ञानिक एनएफ-केबी रोकने के चिकित्सा उपचार ढूंढ़ रहे हैं।

आईआईटी मंडी के शोध से यह भी स्पष्ट है कि एनएफ-केबी को रोकने की दवा से जिन बीमारियों का इलाज होता है अब उनमें एनएफएलडी भी शुमार हो सकता है। हालांकि जहां तक फैटी लीवर से बचने का प्रश्न है आईआईटी मंडी टीम के इस शोध ने यह पुष्टि कर दी है कि ज़्यादा मीठा नहीं खाना लाभदायक होगा। यह लोगों के लिए सीख है कि एनएएफएलडी को शुरू में ही रोक देने के लिए कम मीठा खाएं।