प्रदेश के वन क्षेत्र में प्राकृतिक कारणों से क्षतिग्रस्त पेड़ों के बचाव एवं इनके समुचित प्रबन्धन के लिए प्रदेश सरकार ने मानक संचालन प्रक्रिया तैयार की है। इसमें ऐसे पेड़ों के कटान से लेकर इन्हें बिक्री के लिए उपलब्ध करवाने तक की प्रक्रिया को समयबद्ध एवं शीघ्र पूर्ण करने पर विशेष ध्यान केन्द्रित किया गया है। निर्धारित समय अवधि में इस प्रक्रिया की कड़ाई से अनुपालना सुनिश्चित करने के लिए वन विभाग के अधिकारियों की जवाबदेही भी तय की गई है।
मुख्यमंत्री ठाकुर सुखविंदर सिंह सुक्खू का कहना है कि वनों में प्राकृतिक कारणों से क्षतिग्रस्त पेड़ों के निपटान तथा बिक्री में देरी से प्रदेश को भारी वित्तीय हानि होती है। उन्होंने कहा कि नई मानक संचालन प्रक्रिया से स्थानीय स्तर पर इमारती लकड़ी की उपलब्धता सुनिश्चित होगी तथा परिवहन व्यय में कमी, राजस्व में वृद्धि तथा स्थानीय स्तर पर कार्यरत कर्मियों की क्षमता में भी वृद्धि सुनिश्चित होगी।
नई मानक संचालन प्रक्रिया के अन्तर्गत ऐसे क्षतिग्रस्त पेड़ों का चरणबद्ध तरीके से प्रबन्धन सुनिश्चित किया जाएगा। प्रारम्भिक स्तर पर प्रदेश के चार वृत्तों हमीरपुर, धर्मशाला, सोलन एवं शिमला के पांच वन मण्डलों के अन्तर्गत सात वन परिक्षेत्रों में यह मानक संचालन प्रक्रिया प्रथम सितम्बर, 2023 से पायलट आधार पर शुरू की जाएगी। इससे अगले चरण में प्रथम जुलाई, 2024 से इसे पूर्ण रूप से प्रदेश के छह वन वृत्तों के 70 वन परिक्षेत्रों तक विस्तारित किया जाएगा।
नई मानक संचालन प्रक्रिया के तहत किसी वन परिक्षेत्र में 25 से कम क्षतिग्रस्त पेड़ों के निपटाने के लिए एक निश्चित समय सारिणी तैयार की गई है, जिसमें पेड़ों के चिन्हांकन से लेकर इनके अन्तिम निपटान तक 30 दिनों की अवधि तय की गई है। माह के पहले सात दिनों में वन रक्षक और वन निगम के कर्मचारी आपसी सहयोग से इससे संबंधित ब्यौरा तैयार करेंगे।
आगामी तीन दिनों में उप वन परिक्षेत्राधिकारी ऐसे पेड़ों का चिन्हांकन करेंगे और इससे संबंधित सूची वन परिक्षेत्राधिकारी को अगले तीन दिनों में सौंपेंगे। वन परिक्षेत्राधिकारी सात दिनों के भीतर पेड़ों के कटान, इन्हें लट्ठों में बदलने और निर्दिष्ट डिपो तक उत्पाद के परिवहन से संबंधित सभी प्रक्रियाओं को पूर्ण करेंगे। यह सब प्रक्रिया पूर्व निर्धारित दरों के तहत संबंधित वन मण्डलाधिकारी के समन्वय से तय समय अवधि में पूर्ण की जाएगी।
प्रभावी निपटान के लिए वन परिक्षेत्राधिकारी वन मण्डलाधिकारी को सूचित करेंगे और वह माह की 22 एवं 23 तारीख को वन निगम में अपने समवर्ती से सम्पर्क कर निष्कर्षण लागत और परिवहन व्यय निर्धारित करने के बारे में अवगत करवाएंगे। इसके साथ ही वन मण्डलाधिकारी निष्कर्षण, परिवहन लागत और रॉयल्टी के आधार पर बिल तैयार कर इसे वन निगम के मण्डलीय प्रबन्धक को भेजेंगे।
बिल की अदायगी पर माह की 24 से 26 तारीख के मध्य उत्पादित माल वन निगम को भेज दिया जाएगा। यदि वन निगम इसे लेने से मना करता है तो वन परिक्षेत्राधिकारी माह की 27 एवं 28 तारीख को विभागीय स्तर पर नीलामी की प्रक्रिया आरम्भ करेगा और इसके लिए हिमाचल प्रदेश वन विभाग के प्रबन्धन विंग द्वारा आरक्षित मूल्य निर्धारित किया जाएगा।
इस प्रक्रिया को विस्तार देते हुए पेड़ों के चिन्हांकन, निष्कर्षण और निपटान से संबंधित डाटा एकत्र करने के लिए एक समर्पित वेब पोर्टल भी विकसित किया जाएगा। क्षतिग्रस्त पेड़ों की जियो टैगिंग के माध्यम से लिए गए छायाचित्रों को इस पोर्टल पर अपलोड किया जाएगा.
वहीं परिक्षेत्र डिपो अथवा सड़क किनारे के डिपो में एकत्र की गई इमारती लकड़ियों के लॉट के बारे में भी इसमें जानकारी संकलित की जाएगी। सूचना प्रौद्योगिकी आधारित इस सेवा से क्षतिग्रस्त पेड़ों के प्रबन्धन से जुड़े लागत-लाभ के आकलन की भी सुविधा मिल सकेगी।