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वन विभाग का वाइल्डलाइफ विंग शिमला से धर्मशाला शिफ्ट
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कांगड़ा को हिमाचल की टूरिज्म कैपिटल बनाने की दिशा में एक और कदम
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कैबिनेट मंत्री रैंक आरएस बाली के नेतृत्व में टूरिज्म के साथ कांगड़ा का राजनीतिक कद लगातार बढ़ रहा है
Kangra Politics: हिमाचल प्रदेश सरकार ने एक और बड़ा प्रशासनिक निर्णय लेते हुए वन विभाग के वाइल्डलाइफ विंग के मुख्यालय को शिमला से धर्मशाला स्थानांतरित करने को मंजूरी दे दी है। यह फैसला न केवल कांगड़ा जिले की बढ़ती प्रशासनिक अहमियत को दर्शाता है, बल्कि यह संकेत भी देता है कि आने वाले समय में कांगड़ा राज्य की राजनीति और विकास का केंद्र बनता जा रहा है।
धर्मशाला में यह विभाग पुराने सरकारी भवन में कार्य करेगा। सरकार ने संकेत दिए हैं कि आने वाले समय में कुछ और कार्यालयों को भी कांगड़ा में स्थानांतरित किया जाएगा। इससे पहले भी शांता कुमार सरकार के समय में शिक्षा बोर्ड को शिमला से धर्मशाला शिफ्ट किया गया था।
मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खू द्वारा कांगड़ा जिले के लिए की गई घोषणाएं और परियोजनाएं यह दिखाती हैं कि राज्य सरकार अब इस जिले को प्रशासनिक और आर्थिक रूप से सशक्त बनाने में जुटी है। सुक्खू कांगड़ा में शीतकालीन प्रवास पर भी रहे और करोड़ों रुपये की घोषणाएं कर रहे हैं।
कांगड़ा को अब आधिकारिक रूप से पर्यटन मुख्यालय (Tourism Headquarters) घोषित किया गया है और इसे हिमाचल की टूरिज्म कैपिटल के रूप में विकसित किया जा रहा है। यहां जूलॉजिकल पार्क, हेलिपोर्ट, फोरलेन परियोजनाएं, और ढगवार में 300 करोड़ रुपये का मिल्क प्रोसेसिंग प्लांट जैसी योजनाएं धरातल पर उतर रही हैं।
इस तेजी से बढ़ते विकास के पीछे एक और नाम तेजी से उभर रहा है — आरएस बाली। नगरोटा से विधायक और राज्य सरकार में कैबिनेट मंत्री आरएस बाली, अपने क्षेत्रीय विकास कार्यों , पर्यटन में नए आयाम स्थापित करने और युवा ऊर्जा के कारण प्रदेश की राजनीति में तेजी से ऊंचाई पर जा रहे हैं। उन्हें न केवल कांगड़ा का चेहरा, बल्कि आने वाले वर्षों में प्रदेश की राजनीति का भविष्य माना जा रहा है।
वहीं, देहरा विधानसभा क्षेत्र के बनखंडी में अंतरराष्ट्रीय जूलॉजिकल पार्क की आधारशिला हो या टूरिज्म की नई परिभाषा गढ़ना — उनकी सक्रियता और दृष्टिकोण ने कांगड़ा को नई पहचान दी है।
शिमला को प्रशासनिक राजधानी बनाए रखने के साथ-साथ, अब कांगड़ा को विकास, पर्यटन और राजनीतिक केंद्र के रूप में विकसित किया जा रहा है। यह हिमाचल की राजनीति के पावर बैलेंस को केंद्रीय पहाड़ों से मैदानी कांगड़ा की ओर शिफ्ट करने का संकेत भी माना जा रहा है।