रेप पीड़िताओं की पहचान सार्वजनिक करने और उनके साथ होने वाले सामाजिक भेदभाव को लेकर सर्वोच्च अदालत ने कड़ी प्रतिक्रिया दी। सर्वोच्च अदालत ने रेप पीड़िताओं के नाम, तस्वीर सार्वजनिक करने पर सख्त आपत्ति जाहिर की और कहा कि जांच एजेंसी, पुलिस या मीडिया के द्वारा किसी भी सूरत में रेप पीड़िताओं की पहचान सार्वजनिक नहीं की जानी चाहिए। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि रेप पीड़िताओं को सामाजिक भेदभाव का सामना करना पड़ता है, यह बहुत दुखद है।
सुप्रीम कोर्ट ने समाज की मानसिकता में भी बदलाव की बात कही। कोर्ट ने कहा, 'यह बहुत दुखद है कि समाज में रेप पीड़िताओं के साथ आरोपी की तरह व्यवहार किया जाता है। उन्हें सामाजिक बहिष्कार का सामना करना पड़ता है। इस मानसिकता में बदलाव होना ही चाहिए।'
सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र-राज्य सरकारों और संघ शासित प्रदेशों को रेप पीड़िताओं के कल्याण और पुनर्वास के लिए महत्वपूर्ण निर्देश दिया। कोर्ट ने कहा कि प्रत्येक जिले में रेप पीड़िताओं के लिए एक वन स्टॉप सेंटर बनना चाहिए। यहां रेप से संबंधित मुद्दों का समाधान होना चाहिए और पीड़िताओं के पुनर्वास के लिए व्यवस्था होनी चाहिए।