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अद्‌भुत रचनाकार और जीवंत हैं जिनकी रचनाएं वो है अमृता प्रीतम

समाचार फर्स्ट डेस्क |

भारतीय साहित्य जगत में अमृता प्रीतम एक ऐसा नाम है, जिन्हें  पढ़ना एक अद्‌भुत एहसास है। आज उनकी जयंती का शताब्दी साल है। इस मौके पर हम उन्हें याद करते हुए बात करेंगे कुछ उनकी, कुछ   उनकी रचनाओं की।
अमृता प्रीतम एक ऐसी साहित्यकार हैं जिन्होंने अपने जीवन में सौ से ज्यादा पुस्तकें लिखीं और उनकी रचनाओं का कई भाषाओं में अनुवाद हुआ। उन्हें 1956 में साहित्य अकादमी पुस्कार से नवाजा गया और 1969 में उन्हें पद्मश्री मिला। इसके अलावा 1982 में साहित्य का सर्वोच्च पुरस्कार ज्ञानपीठ पुरस्कार ‘कागज़ ते कैनवस’ के लिए दिया गया और 2004 में उन्हें देश का दूसरा सबसे बड़ा पुरस्कार पद्मविभूषण भी दिया गया।

अमृता ने अपनी रचनाओं में ना सिर्फ स्त्री मन को अभिव्यक्ति दी बल्कि भारत-पाकिस्तान बंटबारे के दर्द को भी बखूबी उकेरा। उन्हें अपनी पंजाबी कविता ‘अज्ज आखां वारिस शाह नूं’ के लिए बहुत प्रसिद्धि मिली।  इस कविता में भारत विभाजन के समय पंजाब में हुए नरसंहार का अत्यंत मार्मिक चित्रण किया है। यह रचना ना सिर्फ भारत बल्कि पाकिस्तान में भी बहुत सराही गयी।

जन्म

अमृता प्रीतम का जन्म 31 अगस्त 1919 को गुजरांवाला पंजाब में हुआ था। 86 साल की उम्र में उनका निधन 31 अक्तूबर 2005 को हुआ था। अमृता का बचपन लाहौर में बीता। अमृता ने काफी कम उम्र से ही लिखना प्रारंभ कर दिया था और उनकी रचनाएं पत्रिकाओं और अखबारों में छपती थीं।

शादी

अमृता की शादी प्रीतम सिंह से हुई थी जिसके कारण उनका नाम अमृता प्रीतम हुआ। लेकिन उनकी शादी सफल नहीं रही। उनके बाद अमृता की निकटता साहिर लुधियानवी से हुई। जिनके बारे में अपनी आत्मकथा में अमृता ने लिखा है कि एक रात साहिर घर आया था, वह बीमार था उसे बुखार था। मैंने उसके गले और छाती पर विक्स मला था। उस वक्त एक औरत के तौर पर मुझे ऐसा लगा था मैं पूरी जिंदगी ऐसे ही गुजार सकती हूं। अमृता प्रीतम ने साहिर के लिए कई कविताएं लिखीं, लेकिन इनका साथ भी हमेशा का नहीं हो सका।

फिर इमरोज (इंदरजीत सिंह) जो पेशे से चित्रकार थे अमृता के दोस्त बने और आजीवन उनके साथ रहे। लगभग 40 साल इनका साथ रहा। इमरोज ने अभूतपूर्व तरीके से अपना प्रेम निभाया, हालांकि उन्हें यह मालूम था कि अमृता के मन में साहिर बसते थे। अमृता के जीवन में साहिर और इमरोज का बहुत खास स्थान है और अपनी आत्मकथा- ‘रसीदी टिकट’ में उन्होंने बेबाकी से इसका जिक्र किया है। अमृता के जीवन में एक और आदमी बहुत खास था, वह था उनका पाकिस्तानी दोस्त अफरोज। अमृता प्रीतम ने अपनी आत्मकथा में उनका जिक्र किया है। अमृता ने अपनी आत्मकथा में लिखा है कि उनका यह खास दोस्त था, जिसने साहिर के जाने के बाद उन्हें मानसिक सहारा दिया।

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अमृता की कविताएं प्रेम में पगी हुई हैं। अपनी आत्मकथा रसीदी टिकट में अमृता प्रीतम ने अपनी शादी और प्रेम का खुले तौर पर वर्णन किया है। अमृता ने प्रेम को जिया है, यही कारण है कि उनकी रचनाएं प्रेम में आकंठ डूबी हैं।

अमृता की चर्चित कृतियां-

उपन्यास- पांच बरस लंबी सड़क, पिंजर, अदालत, कोरे कागज़, उन्चास दिन, सागर और सीपियां

आत्मकथा-रसीदी टिकट कहानी संग्रह- कहानियाँ जो कहानियाँ नहीं हैं, कहानियों के आँगन मेंसंस्मरण- कच्चा आंगन, एक थी सारा

उपन्यास- डॉक्टर देव,पिंजर,आह्लणा , आशू, इक सिनोही,बुलावा,बंद दरवाज़ा प्रमुख हैं।

कविता संग्रह : लोक पीड़, मैं जमा तू , लामियाँ वतन, कस्तूरी, सुनहुड़े (साहित्य अकादमी पुरस्कार प्राप्त कविता संग्रह तथा कागज़ ते कैनवस ज्ञानपीठ पुरस्कार प्राप्त कविता संग्रह सहित 18 कविता संग्रह।