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मंडीः पांगणा मे उत्साह से मनाया गया हरितालिका का त्योहार

बीरबल शर्मा |

जिला मंडी की ऐतिहासिक नगरी और सुकेत रियासत के सेन वंशीय 52 शासकों की कर्म स्थली पांगणा में साल भर मनाए जाने वाले त्योहारों मे सद्भाव शांति, सहकारिता और प्राचीन परंपरा के दर्शन होते हैं। इन्हीं त्योहारों मे आज चिड़ियो के नाम से मनाए जाने वाले ‘‘चिड़त्री ‘‘पर्व की देश राज गुप्ता जी के घर मे विशेष रौनक है। व्रत धारण करने वाली महिलाएं और कुंवारी लड़कियां देशराज के घर मे मिट्टी से बनाई चिड़ियों और शिव-पार्वती की मूर्तियों की ऋतु फलों, बिल्व पत्र , धतुरे और अन्य पुष्पों से पूजा करने के बाद घर लौटकर फलाहार (भरेसे की दड़ीटी, साबूदाने का मीठा, दही के साथ बनाए खट्टेआलू, गरी-छुआरे और सूखे मेवों को दूध में पकाकर बनाए गए ‘‘खवाणी‘‘) आदि हल्का खाना खाकर दिन भर के प्रदोष उपवास का रात्रि में पारण किया।

वहीं, निराहार रहकर और रात्रि जागरण से भी व्रत धारण करने वाली महिलाएं और कन्याएं फल और दूध ग्रहण कर व्रत पूर्ण करती हैं। संस्कृति  मर्मज्ञ डॉक्टर जगदीश शर्मा का कहना है कि चिड़त्री की तैयारी एक सप्ताह पूर्व शुरू हो जाती है। शुभ मुहूर्त मे चिकनी मिट्टी लाकर इसमें रूई मिलाकर पानी से गूंथकर चिड़ियां (मोर ,बतख आदि) और वन्य जीव-जंतु और शिव-पार्वती के श्री विग्रह बनाकर सूखने के बाद विभिन्न रंगो से सज्जित किए जाते है।एक सप्ताह पूर्व ही एक गमले मे पूजा के लिए ‘‘सतनाजा‘‘(हरियाली) बीजकर इसकी नवीन कोपलो को चिड़त्री की पूजा के बाद "शेष" के रूप मे भेँट किया जाता है। आज सुबह मिट्टी से निर्मित चिड़ियों को कन्याओं में वितरित कर चिड़त्री का त्योहार संपन्न हो गया।

महिलाएं इस व्रत को जहां अखण्ड सौभाग्य के लिए करती हैं वहीं कंवारी लड़कियां अपने मन के अनुरूप वर प्राप्ती के लिए चिड़त्री का व्रत करती हैँ। सुकेत संस्कृति साहित्य एवं जन कल्याण मंच पांगणा के अध्यक्ष डॉक्टर हिमेन्द्र बाली ‘‘हिम‘‘ का कहना है पार्वती ने शिव को पतिरूप मे प्राप्त करने के लिए इस व्रत को किया था। अनेक स्थानों पर सुहाग चाहने वाली स्त्रियां शिव-शंकर की मूर्तियां बनाकर  पूजन करती हैं और व्रत करने वाली स्त्रियां माता पार्वती के समान सुखपूर्वक जीवन यापन कर अंत समय में शिवालिक प्रस्थान करती हैं।